Mausam Aate Jaate Hain Nida Fazli

Hindi Kavita

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हिंदी कविता

Mausam Aate Jaate Hain Nida Fazli
मौसम आते जाते हैं निदा फ़ाज़ली(toc)
 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - Nida Fazli

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
 
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता
 
तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता
 
कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता
 
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता
 
चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता
 
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबा नहीं मिलता
 
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता
 

इन्सान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी Nida Fazli

(पाकिस्तान से लौटने के बाद )
 
इन्सान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी
अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी
 
खूँख्वार दरिंदों के फ़क़त नाम अलग हैं
शहरों में बयाबान यहाँ भी है वहाँ भी
 
रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत
हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी
 
हिन्दू भी मज़े में हैमुसलमाँ भी मज़े में
इन्सान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी
 
उठता है दिलो-जाँ से धुआँ दोनों तरफ़ ही
ये 'मीर' का दीवान यहाँ भी है वहाँ भी
 
(देख तो दिल कि जाँ से उठता है,
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है-'मीर')

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे Nida Fazli

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से अजनबी रहे
 
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे
 
nida-fazli

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे
 
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे
 
हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे
 

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलोNida Fazli

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
 
इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो
 
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
 
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
 
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
 
हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
 
कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
 

हम हैं कुछ अपने लिए कुछ हैं ज़माने के लिए Nida Fazli

हम हैं कुछ अपने लिए कुछ हैं ज़माने के लिए
घर से बाहर की फ़ज़ा हँसने-हँसाने के लिए
 
यूँ लुटाते न फिरो मोतियों वाले मौसम
ये नगीने तो हैं रातों को सजाने के लिए
 
अब जहाँ भी हैं वहीं तक लिखो रूदाद-ए-सफ़र
हम तो निकले थे कहीं और ही जाने के लिए
 
मेज़ पर ताश के पत्तों-सी सजी है दुनिया
कोई खोने के लिए है कोई पाने के लिए
 
तुमसे छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था
तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिए
 

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है Nida Fazli

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
तुम को भूल न पायेंगे हम, ऐसा लगता है
 
ऐसा भी इक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना-सा लगता है
 
तुम क्या बिछड़े भूल गये रिश्तों की शराफ़त हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है
 
अब भी यूँ मिलते हैं हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है
 
और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही
चलता-फिरता शहर अचानक तनहा लगता है
 

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता Nida Fazli

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
 
सब कुछ तो है क्या ढूँढ़ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता
 
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता
 
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता
 
वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा, न बदन है
वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यों नहीं जाता
 

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी Nida Fazli

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी
 
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी
 
हर तरफ़ भागते दौडते रास्ते
हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी
 
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी
 
ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी
 

मन बैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम दुश्वारी है Nida Fazli

मन बैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो, बहुत बड़ी फ़नकारी है
 
औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है
 
जब-जब मौसम झूमा हमने कपड़े फाड़े, शोर किया
हर मौसम शाइस्ता3 रहना कोरी दुनियादारी है
 
ऐब नहीं है उसमें कोई, लाल-परी ना फूल-गली
ये मत पूछो वो अच्छा है या अच्छी नादारी है
 

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं Nida Fazli

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं
 
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं
 
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से
किसको मालूम, कहाँ के हैं, किधर के हम हैं
 
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं
कभी धरती के, कभी चाँद नगर के हम हैं
 
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं
 
गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं
 

दिल में न हो ज़ुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती Nida Fazli

दिल में न हो ज़ुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
खै‍‌‌रात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती ‍‌
 
कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी खफा हैं
हर एक से अपनी भी तबियत नहीं मिलती
 
देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती
 
हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती
 
निकला करो ये शम्अ लिए घर से भी बाहर
तन्हाई सजाने को मुसीबत नहीं मिलती
 

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ Nida Fazli

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ
 
होता है यूँ भी, रास्ता खुलता नहीं कहीं
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ
 
साहिल की गीली रेत पर बच्चों के खेल-सा
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ
 
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ
 
धुँधली-सी एक याद किसी क़ब्र का दिया
और! मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ
 

अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए Nida Fazli

अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए
 
जिन चिरागों को हवाओं का कोई खौफ़ नहीं
उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाए
 
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए
 
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में
और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए
 
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए

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