Hindi Kavita
हिंदी कविता
ख़लील जिब्रान की कविता हिन्दी में
Khalil Gibran Poem
बच्चे : Bachchey - Khalil Gibran
1.
तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे बच्चे नहीं हैं
वह तो जीवन की अपनी आकांक्षा के बेटे बेटियां हैं
वह तुम्हारे द्वारा आते हैं लेकिन तुमसे नहीं,
वह तुम्हारे पास रहते हैं लेकिन तुम्हारे नहीं
तुम उनके शरीरों को घर दे सकते हो
तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो लेकिन अपनी सोच नहीं
क्योंकि उनकी अपनी सोच होती है
तुम उनके शरीरों को घर दे सकते हो, आत्माओं को नहीं
क्योंकि उनकी आत्माएं आने वाले कल के घरों में रहती हैं
जहां तुम नहीं जा सकते, सपनों में भी नहीं
तुम उनके जैसा बनने की कोशिश कर सकते हो,
पर उन्हें अपने जैसा नहीं बना सकते,
क्योंकि जिन्दगी पीछे नहीं जाती,
न ही बीते कल से मिलती है
तीर चलाने वाला निशाना साधता है
तुम वह कमान हो जिससे तुम्हारे बच्चे
जीवित तीरों की तरह छूट कर निकलते हैं
तीर चलाने वाला निशाना साधता है एक असीमित राह पर
और अपनी शक्ति से तुम्हें जहां चाहे उधर मोड़ देता है
ताकि उसका तीर तेज़ी से दूर जाये
स्वयं को उस तीरन्दाज़ की मर्ज़ी पर खुशी से मुड़ने दो,
क्योंकि वह उड़ने वाले तीर से प्यार करता है
और स्थिर कमान को भी चाहता है
('अमर उजाला' से)
2.
तुम्हारे बच्चे तुम्हारे नहीं हैं
वे जिन्दगी की खुद की चाहत के बच्चे और बच्चियां हैं
वे तुम्हारे पास आये हैं पर वे तुमसे नहीं आये हैं
और हालांकि वे तुमसे आये हैं पर तुमसे बावस्ता नहीं हैं
तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो पर अपने विचार नहीं.
उनके पास अपने विचार हैं.
तुम उनके शरीर को घर दे सकते हो पर उनकी आत्मा को नहीं.
उनकी आत्मा आने वाले कल के घर में घूमती है
जिसे तुम नहीं देख सकते,अपने सपनों में भी नहीं.
तुम उनके जैसा होने की कोशिश कर सकते हो,
पर उन्हें अप्ने जैसा नहीं बना सकते.
जिन्दगी पीछे नहीं जाती और न ही बीते कल में ठहरती है.
तुम एक धनुष हो जिससे तुम्हारे बच्चे जिन्दा तीर की तरह आगे जाते हैं .
धनुर्धर अनन्त के रास्ते पर लक्ष्य देखता है,
और वह तुम्हें अपनी शक्ति के साथ खेंचता है कि तीर सीधा और दूर तलक जाये.
अपने भले के लिये अपने को धनुर्धर के हाथों में सौंप दो.
वह जिस तरह खिंचते हुए तीर से प्यार करता है,
उतना ही प्यार उस धनुष से भी करता है जो स्थिर रहता है.
(अनुवाद:विनीता यशस्वी)
3.
आपके बच्चे वास्तव में आपके बच्चे नहीं हैं
वे स्वतः प्रवाहित जीवन में पुत्र और पुत्रियाँ हैं
वे आए हैं मगर आपसे होकर नहीं
आप उन पर अपना स्नेह तो थोप सकते हैं मगर विचार नहीं
क्योंकि वे स्वयं भी विचारवान हैं, विवेकशील हैं
आप उनकी देह को कैद कर सकते हैं, मगर आत्मा को नहीं
क्योंकि उनकी आत्मा आने वाले कल में विचरती है
जहाँ तक आप नहीं पहुँच सकते, सपने में भी नहीं.
आप उन जैसा बन्ने का प्रयास तो कर सकते हैं
लेकिन उन्हें अपने जैसा नहीं बना सकते.
क्योंकि समय कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता
न वह अतीत से रूककर दो बातें करता है.
आप वह धनुष हैं, जिस पर आपके बच्चे
तीर की भांति चढ़कर भविष्य की और जाते हैं
धनुर्धारी अनंत के पथ पर निशाना लगता है
और वह पूरी कोशिश करता है कि उसका तीर तेज़ी से
दूर और दूर और दूर तक जाये.
धनुर्धारी के हाथों में कसे हुए अपने धनुष को
खुशियों के लिए कसा रहने दो
उस समय भी जब वह तीर को उड़ते देख प्रसन्न हो .
क्योंकि वह उस धनुष को भी उतना ही प्यार करता है
जो हिले डुले बगैर उसके पास रहता है
(अनुवाद: डॉ. पुनीत बिसारिया)प्रेम1.
प्रेम : Prem - Khalil Gibran
किसी पर नियंत्रण नहीं रखता
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
तब अलमित्रा ने कहा,
हमें प्रेम के विषय में बताओ
तब उसने अपना सिर उठाया
और उन लोगों की ओर देखा
उन सबों पर शांति बरस पड़ी
फिर उसने गंभीर स्वर में कहा
प्रेम का संकेत मिलते ही अनुगामी बन जाओ उसका
हालाँकि उसके रास्ते कठिन और दुर्गम हैं
और जब उसकी बाँहें घेरें तुम्हें
समर्पण कर दो
हालाँकि उसके पंखों में छिपे तलवार
तुम्हें लहूलुहान कर सकते हैं, फिर भी
और जब वह शब्दों में प्रकट हो
उसमें विश्वास रखो
हालाँकि उसके शब्द तुम्हारे सपनों को
तार-तार कर सकते हैं
जैसे उत्तरी बर्फीली हवा उपवन को
बरबाद कर देती है।
क्योंकि प्रेम यदि तुम्हें सम्राट बना सकता है
तो तुम्हारा बलिदान भी ले सकता है।
प्रेम कभी देता है विस्तार
तो कभी काट देता है पर।
जैसे वह, तुम्हारे शिखर तक उठता है
और धूप में काँपती कोमलतम शाखा
तक को बचाता है
वैसे ही, वह तुम्हारी गहराई तक उतरता है
और जमीन से तुम्हारी जड़ों को हिला देता है
अनाज के पूला की तरह,
वह तुम्हें इकट्ठा करता है अपने लिए
वह तुम्हें यंत्र में डालता है ताकि
तुम अपने आवरण के बाहर आ जाओ।
वह छानता है तुम्हें
और तुम्हारे आवरण से मुक्त करता है तुम्हें
वह पीसता है तुम्हें, उज्जवल बनाने को।
वह गूँधता है तुम्हें, नरम बनाने तक
और तब तुम्हें अपनी पवित्र अग्नि को सौंपता है
जहाँ से तुम ईश्वर के पावन भोज की
पवित्र रोटी बन सकते हो!
प्रेम यह सब तुम्हारे साथ करेगा
ताकि तुम हृदय के रहस्यों को समझ सको
और इस 'ज्ञान' से ही तुम
अस्तित्व के हृदय का अंश हो जाओगे।
लेकिन यदि तुम भयभीत हो
और तुम प्रेम में सिर्फ शांति और आनंद चाहते हो
तो तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि
अपनी 'निजता' को ढक लो
और प्रेम के उस यातना-स्थल से बाहर चले जाओ
चले जाओ ऋतुहीन उस दुनिया में
जहाँ तुम्हारी हँसी में
तुम्हारी संपूर्ण खुशी प्रकट नहीं होती
न ही तुम्हारे रुदन में
तुम्हारे संपूर्ण आँसू ही बहते हैं
प्रेम न तो स्वयं के अतिरिक्त कुछ देता है
न ही प्रेम स्वयं के अलावा कुछ लेता है
प्रेम किसी पर नियंत्रण नहीं रखता
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
चूँकि प्रेम के लिए बस प्रेम ही पर्याप्त है।
जब तुम प्रेम में हो, यह मत कहो
कि ईश्वर मेरे हृदय में हैं
बल्कि कहो कि
'मैं ईश्वर के हृदय में हूँ'।
यह मत सोचो कि तुम प्रेम को
उसकी राह बता सकते हो
बल्कि यदि प्रेम तु्म्हें योग्य समझेगा
तो वह स्वयं तुम्हें तुम्हारा रास्ता बताएगा
'स्वयं' की परिपूर्णता के अतिरिक्त
प्रेम की कोई और अभिलाषा नहीं
लेकिन यदि तुम प्रेम करते हो
फिर भी इच्छाएँ हों ही
तो उनका रूपांतरण ऐसे करो
कि ये पिघलकर उस झरने की तरह बहे
जो मधुर स्वर में गा रही हो रात्रि के लिए
करुणा के अतिरेक की पीड़ा समझने को
प्रेम के बोध से स्वयं को घायल होने दो
बहने दो अपना रक्त
अपनी ही इच्छा से सहर्ष
सुबह ऐसे जागो कि
हृदय उड़ने में हो समर्थ
और अनुगृहीत हो एक और
प्यार-भरे दिन के लिए
दोपहर विश्राम-भरा और प्रेम के
भावातिरेक से समाधिस्थ हो
और शाम को कृतज्ञतापूर्वक
घर लौट जाओ
इसके उपरांत सो जाना है
प्रियतम के लिए
हृदय में प्रार्थना और ओठों पर
प्रशंसा का गीत लिए हुए ।
(अनुवाद- विजयलक्ष्मी शर्मा)
2.
जब प्रेम तुम्हें बुलाये, उसके साथ जाओ,
चाहे उसका मार्ग कठोर और बेहद कठिन ही क्यों न हो।
और जब उसके पंख तुम्हें अपने में समेट लें ,उनमें समा जाओ.
हालांकि उसके पंखों में छिपी तलवार तुम्हें घायल कर सकती है।
और जब वो तुमसे मुखातिब हो , उस पर विश्वास करो
चाहे उसकी आवाज़ तुम्हारे सपनों को ऐसे बिखेर क्यों न दे
जैसे उत्तरी हवा बागीचे को बर्बाद कर देती है।
यदि प्रेम तुम्हे ताज पहनाता है तो यह तुम्हें सलीब पर भी लटकायेगा,
यदि यह तुम्हें बड़ा करता है तो यह तुम्हारी काट-छांट भी करेगा।
जैसे यह तुम्हारी ऊँचाई तक पहुँच कर सूरज में कांप रही नर्म शाखाओं को सहलाता है,
वैसे ही यह तुम्हारी जड़ों तक उतर कर उन्हें ज़मीन से हिला भी देता है.
यह तुम्हें मक्के की पूलियों की तरह अपने में समेटता है,
निरावरण कर देने के लिये तुम्हें कूटता है।
यह तुम्हें तुम्हारे छिलकों से आज़ाद करता है।
यह तुम्हें पीसता है उजलेपन के लिये
यह तुम्हें तब तक गूंथता है जब तक तुम इकतार नहीं हो जाते।
और तब यह तुम्हें उसकी पवित्र आग में झोंक देगा,
ताकि तुम भगवान की पवित्र दावत में उसकी पवित्र रोटी बनो।
यह सभी चीजें तुम्हें प्रेम देंगी ताकि तुम अपने दिल के राज़ जान सको,
और यह ज्ञान ज़िन्दगी के दिल का टुकड़ा बनेगा।
पर यदि तुम अपने डर में सिर्फ प्रेम की शांति और प्रेम का सुख तलाशोगे,
तब फिर तुम्हारे लिये अच्छा होगा कि तुम अपनी नग्नता को ढक लो
और प्यार की पिसने वाली ज़मीन से निकल जाओ।
मौसम-विहीन संसार में तुम हँसोगे,
पर तुम्हारी सम्पूर्ण हंसी नहीं , और रोओगे, पर तुम्हारे सम्पूर्ण आंसू नहीं
प्रेम स्वयं के सिवा कुछ नहीं देगा और कुछ नहीं लेगा स्वयं से।
प्रेम नियंत्रण नहीं रखता न ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है;
प्रेम के लिये प्रेम में होना काफी है।
जब तुम प्रेम में होगे तब तुम्हें नहीं कहना चाहिये
‘भगवान मेरे दिल में है’ तुम्हें कहना चाहिये ‘मैं भगवान के दिल में हूँ।’
और यह नहीं सोचो की तुम सीधा प्रेम तक जा सकते हो,
प्रेम के लिये, यदि वह तुम्हें अमोल पायेगा तो सीधा तुम तक आ जायेगा।
प्रेम की स्वयं को सम्पूर्ण करने के सिवा कोई ख्वाहिश नहीं होती।
पर यदि तुम प्रेम करते हो
और ख़्वाहिश करना जरूरी हो तो, इन्हें अपनी ख़्वाहिश बनाओ:
पिघलो और एक छोटी सी नदी की तरह बहो
जो रात को अपना संगीत सुनाती है।
बहुत अधिक प्रेम का दर्द जानो।
स्वयं के प्रेम की समझ से स्वयं को घायल करो ;
और खुशी-खुशी अपने को लहूलुहान कर दो।
सुबह उठो खुले दिल के साथ
और एक और अच्छे दिन के लिये शुक्रिया कहो ;
शाम को आराम करते हुए
और प्रेम के आनन्द का ध्यान करते हुए ;
अहसान के साथ घर वापस लौटो ;
और फिर सो जाओ एक प्रार्थना के साथ उन प्रियजनों के लिये
जो तुम्हारे दिलों में रहते हैं
और अपने होंठों पर प्रेम का गाना गाते हुए।
(अनुवाद: विनीता यशस्वी)
आंसू और मुस्कान (A Tear and A Smile) : Aansu aur Muskaan - Khalil Gibran
नहीं करूंगा आदान-प्रदान
अपने हृदय के दुखों का सामूहिक सुखों से
नहीं परिवर्तित होने दूंगा
अपने प्रत्यंग से बहती उदासी से उपजे
आंसुओं को अट्टाहस में
मैं चाहता हूँ मेरे जीवन में शेष रहे
बस एक आंसू और एक मुस्कान !
एक आंसू, मेरे हृदय को शुद्ध करने और
जीवन की रहस्यमयी गूढ़ बातों को समझने के लिए
एक मुस्कान, अपने जैसे पुत्रों के समीप पहुंचने और
ईश्वर-स्तुति के प्रतीक रूप में ढल जाने के लिए
एक आंसू, टूटे दिलों के विलाप से जोड़ता
एक मुस्कान, संकेत मेरे अस्तित्व की प्रसन्नता का
मैं चाहूंगा मर जाऊं, उत्कंठा और तृष्णा में
पर न जीऊं, थकान और निराशा में
बसी रहे सौंदर्य और प्रेम की क्षुधा
मेरे अंतर आत्मा की गहराईयों में
क्योंकि संतुष्ट व्यक्ति सबसे व्यथित होता है
तड़प और लालसा में लिप्त लोगों की
आहें सुनी हैं मैंने और
उससे ज़्यादा मधुर कोई गीत नहीं है
संध्या समय कुसुम अपनी पंखुड़ियां समेट
अपनी चाहत को गले लगाए सो जाती है
और भोर की पहली आहट पर अपने
अधर खोल सूर्य का चुम्बन लेती है
पुष्प का जीवन केवल लालसा और पूर्ति
एक आंसू और एक मुस्कान
सागर का जल वाष्प बनकर उठता है
एकत्र हो मेघ बन धरती को घेर लेता है
पहाड़ियों और घाटियों में बादल बन मंडराता है
बस, जब तक मखमली हवा छू न ले उसे
तब रूदन करता धराशायी होता है खेतों में
और मिल जाता है नदी-नालों में
फिर से सागर में विलीन होने, अपने घर लौटने
बादल का जीवन केवल वियोग और मिलन
एक आंसू और एक मुस्कान
और ऐसी ही है, परम आत्मा से पृथक हो
विश्व-तत्वों में भटकती आत्मा
बादलों की भांति दुखों के पर्वत पार करती है
और खुशियों के मैदानों में वायुरूपी मृत्यु का
आलिंगन कर लौट जाती है वहीं, जहां से
उद्गम हुआ था इसका
प्रेम और सौंदर्य के सागर – परमात्मा में !
(अनुवाद- अनुपमा सरकार)
पराजय (Defeat) : Parajay - Khalil Gibran
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरे एकांत, मेरे अलगाव
तुम मुझे प्रिय हो,
हज़ारों जीत की खुशियों से
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरे आत्म ज्ञान, मेरे विद्रोह
तुम मुझे अहसास दिलाते हो
कि मैं अब भी ज़िंदा हूँ
कि मेरे पैर अब भी चपल हैं
और हम बंदी नहीं है
कुम्हलाते जीत की
तुमुल ध्वनियों के
तुममें पाया है मैने एकांत
नकारे जाने का उल्लास
और तिरस्कृत किए जाने का आह्लाद
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरी चमकती तलवार और मेरे कवच
तुम्हारी आँखों में
मैने पढ़ा है
विजयी होना गुलाम होना है
और समझे जाना
सीमाओं में बंधना
एक पके फल की तरह
डाली से टूट
संभावनाओ से विलग हो जाना है
पराजय, ओ मेरे निडर पराजय
तुमने मेरा गीत सुना है
मेरे आँसू और मेरी चुप्पी देखी है
तुम, सिर्फ़ तुम मुझे
पंखों पे लगी चोट की कहानी कहते हो
हहराते समुद्र की, काली रात
और जलते हुए पहाड़ों की
और सिर्फ़ तुम्हारी वजह से
मैं अपनी आत्मा की
ऊँची और पथरीली सीढ़ियाँ चढ़ता हूँ
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरे शाश्वत साहस
मैं और तुम अट्टहास करेंगे
झंझावतों के साथ
और साथ साथ ही हम
कब्र खोदेंगे उनकी
जो हमारे साथ और हमारे भीतर ही
मृत्यु को प्राप्त होगा
और सूरज के साथ खड़े होकर
अपराजेय हो जाएँगे.
(अनुवाद: रंजना मिश्र)
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