वक्त - सुव्रत शुक्ल | Waqt - Suvrat Shukla

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Suvrat-Shukla

वक्त - सुव्रत शुक्ल | Waqt - Suvrat Shukla


जीवन को यूं देख देख कर
मैं तो चकित हुआ करता था
खो जाता हूं मैं अतीत में 
वह भी वक्त हुआ करता था।।

चांद कभी उज्ज्वल पावन था,
वह था दागविहीन कभी।
पैर हुआ करते पेड़ों में,
चलते थे वे सभी, कभी।
सूरज नहीं तपा करता था।
वह भी वक्त हुआ करता था।।

पर्वत भी बोला करते थे,
पत्थर में भी दिल होते थे।
नदियां गाने गाया करती,
झरने संगीत सुनाते थे।
सागर भी मधुर हुआ करता था।
वह भी वक्त हुआ करता था।।

प्रेम सहित मिलकर सब रहते,
बंधन रहित स्त्रियां थीं।
हर बालक होता राम यहां,
बेटियां यहां पर देवी थीं।
संस्कार नहीं मरा करता था।
 वह भी वक्त हुआ करता था।।

हसरत थी कभी हमें उनकी,
चाहत थी प्राणों से बढ़कर।
अब सिर न कभी झुकाऊं मैं,
आओ यदि ईश्वर भी बनकर।।
तब राहें बहुत तका करता था।
वह भी वक्त हुआ करता था।।
   

    _   सुव्रत शुक्ला 



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