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सरकार - सुव्रत शुक्ल | Sarkar - Suvrat Shukla
जनहित जिनका मुद्दा हो,
और जाति पांति बेकार।
वही हमारे नेता होंगे,
जिनके हृदय सिहर से जाते,
सुनकर आर्त पुकार,
जो बांटा करते दुःख जन के,
वही रहे सरकार।।
नेता बनकर, शपथ ग्रहण कर,
हो जाते छूमंतर,
नज़रे जिनको देख न पाती,
पांच बरस के अंदर।।
आ जाता चुनाव जब सिर पर,
आ कदमों में गिरते हैं।
अपने ही हित साधने वाले,
फिर कितना गिरते हैं।।
बूढ़े सुखमय जीवन जीएं,
बहनें निर्भय घूम सके।
युवकों को मिल सके नौकरी,
और मंजिल को चूम सकें।।
समय समय पर भर्ती आए,
तैयारी सार्थक हो,
हर किसान मुस्काए उसका,
भी जीना सार्थक हो।।
जो करेगा कार्य हित में जन के,
उसकी जीत होगी।
मान भी उसका करेंगे,
और उसीसे प्रीत होगी।।
होने वाले महाराज से ,
बस इतनी दरकार ।
भूख,शान्ति, शिक्षा मुद्दा हो,
यशदायी अपनी सरकार।।
- सुव्रत शुक्ल
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