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परिचित आभास - सुव्रत शुक्ल | Parichit Abhas - Suvrat Shukla
पूछेगा हमसे कोई जब,
क्या है अस्तित्व तुम्हारा?
बंद करूंगा आंखे अपनी ,
चलते चलते थक जायेंगे पग,
नज़र कुछ नही आयेगा।
साथ छोड़ जायेंगें सब,
अंधेरा सा छा जाएगा।।
ना होगा कोई पास अपने,
ना होगा कोई सहारा।
मिट्टी को तिलक बना कर के,
मैं लूंगा नाम तुम्हारा।।
कण कण क्षण क्षण में मैंने,
हर जगह तुम्हीं को पाया है।
तुमसे शायद संबंध कोई ,
अनजाना सा बन आया है।।
शायद "परिचित आभास" कोई,
तुममें मुझको मिल जाता है।
नीरस , क्लांत यह हृदय मेरा,
मिलकर तुमसे खिल जाता है।।
तुम कौन? कहां से आए हो?
क्या परिचय? कहो तुम्हारा।
इनसे मतलब कुछ नहीं मुझे,
बस लूंगा नाम तुम्हारा।।
- सुव्रत शुक्ल
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