मैं लड़की हूं - सुव्रत शुक्ल | Mai Ladki Hoon - Suvrat Shukla

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मैं लड़की हूं - सुव्रत शुक्ल | Mai Ladki Hoon - Suvrat Shukla

तुमसे पहले दुनिया में आई,
बाबू चुप चाप खड़े थे,
मां दर्द से बेहाल थी,
पर अम्मा भगवान के मूर्ति के सामने दहाड़े मार कर रो रही थी,
पता नहीं क्यों?

तुम मेरे बाद आए,
शायद पूरे छः साल बाद,
सबसे ज्यादा मैं प्यार करती थी तुम्हे,
गोद में लिए दुलारा करती थी तुम्हें,
एक दिन अचानक मेरी गोदी से गिर गए तुम,
उस दिन अम्मा ने बहुत मारा था मुझे,
बाबू तब भी चुपचाप खड़े थे, मां शांत थी,
मेरी गलती सब देख रहे थे पर उसके पीछे का प्यार नहीं,
पता नहीं क्यों?

मैं पास के सरकारी स्कूल में ,
पढ़ रही थी,
तुम भी मेरे साथ जाते थे,
तुम समझदार हुए , शहर चले गए इंग्लिश मीडियम में,
मैं तब भी सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी,
मैं भी शहर में पढ़ना चाहती थी, पर पढ़ न सकी,
पता नहीं क्यों?

तुम शहर चले गए,
नौकरी की तैयारी करने,
बाबू चले गए मेरे लिए रिश्ता देखने,
फिर खिचड़ी पर तुम आए थे,
उस दिन मां रो रही थी,
तुम परीक्षा देने जा रहे थे
और मै ससुराल ,
मैं भी नौकरी करना चाहती थी,
खुद पर निर्भर होना चाहती थी,
पर हो न सकी ,
पता नहीं क्यों?

इस बार घर में एक साथ दो खुशियां आई ,
बाजे बज रहे थे, घर में गीत गाए जा रहे थे,
तुम  मास्टर बन गए थे और मैं मां।
इस बार नहीं पूछूंगी पता नहीं क्यों?
मुझे मिल चुका उत्तर,
क्योंकि "मैं लड़की हूं"।

       -  सुव्रत शुक्ल 


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