Hindi Kavita
हिंदी कविता
माँ - सुव्रत शुक्ल | Maa - Suvrat Shukla
दुनियां घूमी नापा जग को,
कहीं नहीं विश्राम मिला,
सिर रखा मां की गोदी में,
मित्र भले लाखों हों जाएं,
रिश्ते कितने बने भले,
बिंदु मात्र स्नेह मिले न,
जो जननी के अंक मिले।।
सारे दुःख घट जाते मां के,
देख देख अपनी औलाद,
कर देती बच्चे को अपने,
आशीर्वादों से फौलाद।।
वैदेही कुलवधु रघुकुल की,
वन में संतति को जाया।
त्याग, वीरता, संयम , करुणा
मर्यादा और नीति सिखाया।।
देखो अपनी भारत माता,
जिनकी गोदी में खेलें हम।
खाएं जिनके अन्न अमृतसम,
निर्मल,शीतल नीर पिए हम।।
माता ही अवतार प्रभु का ,
मां ही इस जीवन का सार।
जब तक मां है, सिर पर छत है,
बिन मां सूना है संसार।।
- सुव्रत शुक्ल
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