उड़ता परिंदा - सुव्रत शुक्ल | Udta Parinda - Suvrat Shukla

Hindi Kavita

Hindi Kavita
हिंदी कविता

Suvrat-Shukla

उड़ता परिंदा - सुव्रत शुक्ल | Udta Parinda - Suvrat Shukla

वह जिसको हमने जोड़ा है,
हर रिश्ता होता है जिंदा,
जीवन भर संग संग चलता है,
जैसे उड़ता हुआ परिंदा।।
हाथ लगा पकड़ा यदि कसकर,
मर जायेगा तड़प तड़प कर।
ढीला किया हाथ यदि तुमने,
दूर चला जायेगा उड़कर।।
उसको अगर प्यार से पकड़ा,
जीवनभर संग रहता जिंदा,
जैसे उड़ता हुआ परिंदा।।
क्या मजाल गैरों की इतनी,
दुःखा सकें वो दिल को मेरे।
पर देखा मैने ,अपने थे,
दिल को तोड़ गए थे मेरे।।
नहीं जरूरी हर संबंधी ,
शुभचिंतक हो सकें तुम्हारे।
कई बहुत चिंतित होते है,
शुभ शुभ होते देख तुम्हारे।।
 गैरों के दानों का आदी,
हो यदि अपना कोई परिंदा।
मत करना संकोच कभी तुम,
कर देना आजाद परिंदा।।
विश्वासों पर टिका हुआ है, 
रिश्तों का सागर यह जिंदा ,
जैसे उड़ता हुआ परिंदा।।             

          -सुव्रत शुक्ल

(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Suvrat Shukla) #icon=(link) #color=(#2339bd)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!