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उड़ता परिंदा - सुव्रत शुक्ल | Udta Parinda - Suvrat Shukla
वह जिसको हमने जोड़ा है,
हर रिश्ता होता है जिंदा,
जीवन भर संग संग चलता है,
जैसे उड़ता हुआ परिंदा।।
हाथ लगा पकड़ा यदि कसकर,
ढीला किया हाथ यदि तुमने,
दूर चला जायेगा उड़कर।।
उसको अगर प्यार से पकड़ा,
जीवनभर संग रहता जिंदा,
जैसे उड़ता हुआ परिंदा।।
क्या मजाल गैरों की इतनी,
दुःखा सकें वो दिल को मेरे।
पर देखा मैने ,अपने थे,
दिल को तोड़ गए थे मेरे।।
नहीं जरूरी हर संबंधी ,
शुभचिंतक हो सकें तुम्हारे।
कई बहुत चिंतित होते है,
शुभ शुभ होते देख तुम्हारे।।
गैरों के दानों का आदी,
हो यदि अपना कोई परिंदा।
मत करना संकोच कभी तुम,
कर देना आजाद परिंदा।।
विश्वासों पर टिका हुआ है,
रिश्तों का सागर यह जिंदा ,
जैसे उड़ता हुआ परिंदा।।
-सुव्रत शुक्ल
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