Hindi Kavita
हिंदी कविता
1. ऐसा वर दो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
भगवन् हमको ऐसा वर दो।
जग के सारे सद्गुण भर दो॥
हम फूलों जैसे मुस्कायें,
सब पर प्रेम सुगंध लुटायें,
हम परहित कर खुशी मनायें,
ऐसे भाव हृदय में भर दो।
भगवन् हमको ऐसा वर दो॥
दीपक बनें, लड़े हम तम से,
ज्योर्तिमय हो यह जग हम से,
कभी न हम घबरायें गम से,
तन मन सबल हमारे कर दो।
भगवन्, हमको ऐसा वर दो॥
सत्य मार्ग पर बढ़ते जायें,
सबको हीं सन्मार्ग दिखायें,
सब मिलकर जीवन फल पायें,
ऐसे ज्ञान, बुद्धि से भर दो।
भगवन, हमको ऐसा वर दो॥
2. मीठी बातें - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मीठे मीठे बोल सुनाती,
फिरती डाली डाली।
सब का ही मन मोहित करती
प्यारी कोयल काली ॥
बाग बाग में, पेड़ पेड़ पर,
मधुर सुरो में गाती।
रुप नहीं, गुण प्यारे सबको
सबको यह समझाती॥
मीठी मीठी बातें कहकर
सब कितना सुख पाते।
मीठी मीठी बातें सुनकर
सब अपने हो जाते॥
कहती कोयल प्यारे बच्चो!
तुम भी मीठा बोलो।
प्यार भरी बातों से तुम भी
सब के प्यारे हो लो॥
3. उपवन के फूल - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हम उपवन के फूल मनोहर
सब के मन को भाते।
सब के जीवन में आशा की
किरणें नई जगाते
हिलमिल-हिलमिल महकाते हैं
मिलकर क्यारी-क्यारी।
सदा दूसरों के सुख दें,
यह चाहत रही हमारी
कांटो से घिरने पर भी,
सीखा हमने मुस्काना।
सारे भेद मिटाकर सीखा
सब पर नेह लुटाना॥
तुम भी जीवन जियो फूल सा,
सब को गले लगाओ।
प्रेम-गंध से इस दुनियाँ का
हर कोना महकाओ॥
4. पेड़ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
पेड़ बहुत ही हितकारी हैं,
आओ, पेड़ लगायें।
स्वच्छ वायु, फल, फूल, दवाएँ
हम बदले में पायें॥
पर्यावरण संतुलित रखते,
मेघ बुलाकर लाते।
छाया देकर तेज धूप से
सबको पेड़ बचाते॥
कई तरह की और जरूरत
करते रहते पूरी।
सुगम बनातें सबका जीवन
होते पेड़ जरूरी॥
पेडों के इन उपकारों को
हम भी नहीं भुलायें।
आओ, रक्षा करें वनों की
आओं, पेड़ लगायें॥
5. पापा, मुझे पतंग दिला दो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
पापा, मुझे पतंग दिला दो,
भैया रोज उड़ाते हैं।
मुझे नहीं छूने देते हैं,
दिखला जीभ, चिढ़ाते हैं॥
एक नहीं लेने वाली मैं,
मुझको कई दिलाना जी।
छोटी सी चकरी दिलवाना,
मांझा बड़ा दिलाना जी॥
नारंगी और नीली, पीली
हरी, बैंगनी,भूरी,काली।
कई रंग,आकार कई हों,
भारत के नक्शे वाली ॥
कट जायेंगी कई पतंगे,
जब मेरी लहरायेगी।
चंदा मामा तक जा करके
भारत-ध्वज फहरायेगी॥
6. चिड़िया - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
घर में आती जाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
तिनके लेकर नीड़ बनाती,
अपना घर परिवार सजाती,
दाने चुन चुन लाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
सुबह सुबह जल्दी जग जाती,
मीठे स्वर में गाना गाती,
हर दिन सुख बरसाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
कभी नहीं वह आलस करती,
मेहनत से वह कभी न डरती,
रोज काम पर जाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
हँसना, गाना कभी न भूलो,
साहस हो तो नभ को छूलो,
सबको यह सिखलाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
7. देश हमारा - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सुखद, मनोरम, सबका प्यारा।
हरा, भरा यह देश हमारा॥
नई सुबह ले सूरज आता,
धरती पर सोना बरसाता,
खग-कुल गीत खुशी के गाता,
बहती सुख की अविरल धारा।
हरा, भरा यह देश हमारा॥
बहती है पुरवाई प्यारी,
खिल जाती फूलों की क्यारी,
तितली बनती राजदुलारी,
भ्रमर सिखाते भाई चारा।
हरा, भरा यह देश हमारा॥
हिम के शिखर चमकते रहते,
नदियाँ बहती, झरने बहते,
“चलते रहो” सभी से कहते,
सबकी ही आँखो का तारा।
हरा, भरा यह देश हमारा॥
इसकी प्यारी छटा अपरिमित,
नये नये सपने सजते नित,
सब मिलकर चाहे सबका हित,
यह खुशियों का आँगन सारा।
हरा, भरा यह देश हमारा॥
8. भोजन - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आओ बच्चो, तुम्हें सिखायें
भोजन का विज्ञानं ।
भोजन से ही ताकत आती
भोजन से मुस्कान ।
कार्बोहाइड्रेड और विटामिन
भोजन से ही पाते,
खनिज, वसा, प्रोटीन मिलें
जब अच्छा भोजन खाते,
भोजन से ही जीवन चलता,
बचती सबकी जान ।
भोजन से ही ताकत आती
भोजन से मुस्कान ।
सदा संतुलित भोजन देता
पोषक तत्व जरूरी,
इस शरीर की सभी जरूरत
भोजन करता पूरी,
सही समय पर करते रहना
तुम बढ़िया जलपान।
भोजन से ही ताकत आती
भोजन से मुस्कान ।
अच्छा भोजन करके ही
रोगो से हम लड़ पाते,
मन को स्वस्थ बनाता भोजन
तब ढंग से पढ़ पाते,
प्यारे बच्चो, कभी न रहना
तुम इससे अनजान।
भोजन से ही ताकत आती
भोजन से मुस्कान ।
9. पढ़ना अच्छा रहता है - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
गाँव गाँव और नगर नगर।
गली गली और डगर डगर॥
चलो, सभी मिलकर जायें।
मिलकर सबको समझायें॥
अनपढ़ रहना ठीक नहीं।
अनपढ़ की कब पूछ कहीं॥
जो अनपढ़ रह जाता है।
जीवन भर पछताता है॥
लड़का हो या लड़की हो।
चलो, सिखायें सब ही को॥
हर कोई यह कहता है।
पढ़ना अच्छा रहता है॥
बिना-पढ़ा पछताता है।
पढ़ा-लिखा सुख पाता है॥
मिलकर विद्यालय जायें।
पढ़ लिख कर सब सुख पायें॥
10. मुर्गा बोला - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मुर्गा बोला- मुन्ने राजा
सुबह हो गई, बाहर आजा
कभी देर तक सोना मत
कभी आलसी होना मत
पढ़ो, लिखो, जाओ स्कूल
इसमें कभी न करना भूल
11. आओ, मिलकर दीप जलाएँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आओ, मिलकर दीप जलाएँ।
अंधकार को दूर भगाएँ ।।
नन्हे नन्हे दीप हमारे
क्या सूरज से कुछ कम होंगे,
सारी अड़चन मिट जायेंगी
एक साथ जब हम सब होंगे,
आओ, साहस से भर जाएँ।
आओ, मिलकर दीप जलाएँ।
हमसे कभी नहीं जीतेगी
अंधकार की काली सत्ता,
यदि हम सभी ठान लें मन में
हम ही जीतेंगे अलबत्ता,
चलो, जीत के पर्व मनाएँ ।
आओ, मिलकर दीप जलाएँ ।।
कुछ भी कठिन नहीं होता है
यदि प्रयास हो सच्चे अपने,
जिसने किया, उसी ने पाया,
सच हो जाते सारे सपने,
फिर फिर सुन्दर स्वप्न सजाएँ ।
आओ, मिलकर दीप जलाएँ ।।
12. वर्षा आई - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
रिमझिम रिमझिम वर्षा आई।
ठण्डी हवा बही सुखदाई ।।
बाहर निकला मेंढक गाता,
उसके पास नहीं था छाता,
सर पर बूँदें पड़ी दनादन
तब घर में लौटा शर्माता,
उसकी माँ ने डाँट लगाई।
रिमझिम रिमझिम वर्षा आई ।।
पंचम स्वर में कोयल बोली,
नाच उठी मोरों की टोली,
गधा रंभाया ढेंचू ढेंचू
सबको सूझी हँसी ठिठोली,
सब बोले अब चुपकर भाई ।
रिमझिम रिमझिम वर्षा आई।।
गुड़िया बोली - चाचा आओ,
लो, कागज़ लो, नाव बनाओ,
कंकड़ का नाविक बैठाकर
फिर पानी में नाव चलाओ,
नाव चली, गुड़िया मुसकाई ।
रिमझिम रिमझिम वर्षा आई ।।
13. चींटी - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नन्हीं काली, हिम्मतवाली,
चींटी बड़ी निराली है ।
दौड़ लगाती, कभी न थकती,
वह कितनी बलशाली है ।।
बहुत अधिक मेहनत करती है,
लेकिन थोड़ा खाती है।
जब उसको गुस्सा आता है
हाथी से लड़ जाती है ।।
जल्दी जगती रोज सवेरे,
देर रात को सोती ।
खुद से अधिक भार ले जाती
बड़ी साहसी होती ।।
चींटी कहती - प्यारे बच्चो,
मिलकर कदम बढ़ाओ ।
मेहनत करो, न हिम्मत हारो,
जो चाहो वह पाओ।।
14. सूरज - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बड़े सवेरे सूरज आता ।
किरणों से जग को चमकाता ।
जैसे हो सोने की थाली,
नभ में बिखरा देता लाली,
देख देख जन जन सुख पाता ।
बड़े सवेरे सूरज आता ।।
खुश हो होकर चिड़ियाँ गांतीं,
फूलों की क्यारी खिल जातीं,
उन फूलों पर भोंरा गाता ।
बड़े सवेरे सूरज आता ।।
बरसातों में छुप छुप जाता,
जाड़ों में कुछ ज्यादा भाता,
पर गर्मी में खूब सताता ।
बड़े सवेरे सूरज आता ।।
सब में भर देता है सपने,
सब लगते कामों में अपने,
सूरज है जीवन का दाता ।
बड़े सवेरे सूरज आता ।।
15. मीठे और रसीले आम - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मीठे और रसीले आम, दादाजी के बाग़ में ।
हम जाते जब होती शाम, दादाजी के बाग़ में ।।
कच्चे और पके आमों से
झुकीं बाग़ की डाली,
रात और दिन करते रहते
दो माली रखवाली,
तोते आते रोज तमाम, दादाजी के बाग़ में ।
मीठे और रसीले आम, दादाजी के बाग़ में ।।
अच्छे लगते आम रसभरे
हम सब मिल कर खाते,
आम फलों का राजा होता
दादाजी समझाते,
नीलम,केसर, लँगड़ा आम, दादाजी के बाग़ में ।
मीठे और रसीले आम, दादाजी के बाग़ में ।।
आम बहुत गुणकारी होता
सेहत सही बनाता,
और आम के पत्तों से भी
रोग दूर हो जाता,
गुठली के मिल जाते दाम, दादाजी के बाग़ में ।
मीठे और रसीले आम, दादाजी के बाग़ में ।।
16. नया वर्ष - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नये वर्ष की नयी सुबह ने
रंग बिखराये नये नये ।
सब में नये नये सूरज ने
स्वप्न जगाये नये नये ।।
नयी उमंगें, नयी तरंगें,
नयी ताल,संगीत नया ।
सब में जगीं नयी आशाएं
नयी बहारें, गीत नया ।।
नयी चाह है, नयी राह है,
नयी सोच, हर बात नयी ।
नया जागरण, नयी दिशाएँ,
नयी लगन,सौगात नयी ।।
सब में नयी नेह-धारायें
लेकर आया वर्ष नया ।
नया लगा हर एक नज़ारा,
सब में छाया हर्ष नया ।।
17. नया सवेरा लाना तुम - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं
मूल्य समय का पहचानो।
पल पल का उपयोग करो तुम
यह संदेश मेरा मानो ॥
जो चलते हैं सदा, निरन्तर
बाजी जीत वही पाते।
और आलसी रहते पीछे
मन मसोस कर पछताते॥
कुछ भी नहीं असम्भव जग में,
यदि मन में विश्वास अटल।
शीश झुकायेंगे पर्वत भी,
चरण धोयेगा सागरजल॥
बहुत सो लिये अब तो जागो,
नया सवेरा लाना तुम।
फिर से समय नहीं आता है,
कभी भूल मत जाना तुम॥
18. अंतरिक्ष की सैर - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नभ के तारे कई देखकर
एक दिन बबलू बोला।
अंतरिक्ष की सैर करें, माँ
ले आ उड़न खटोला॥
कितने प्यारे लगते हैं
ये आसमान के तारे।
कौतूहल पैदा करते हैं
मन में रोज हमारे॥
झिलमिल झिलमिल करते रहते
हर दिन हमें इशारे।
रोज भेज देते हैं हम तक
किरणों के हरकारे॥
कोई ग्रह तो होगा ऐसा
जिस पर होगी बस्ती।
माँ,बच्चों के साथ वहाँ
मैं खूब करुँगा मस्ती॥
वहाँ नये बच्चों से मिलकर
कितना सुख पाऊँगा।
नये खेल सिखूँगा मैं,
कुछ उनको सिखलाऊँगा॥
19. तिरंगा - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
जन-गण-मन का मान तिरंगा।
हम सब की पहचान तिरंगा॥
भरता नया जोश केसरिया
कहता उनकी अमिट कहानी,
मातृभूमि हित तन मन दे कर
अमर हो गए जो बलिदानी,
वीरों का सम्मान तिरंगा।
हम सब की पहचान तिरंगा॥
श्वेत रंग सबको समझाता
सदा सत्य ही ध्येय हमारा,
है कुटुंब यह जग सारा ही
बहे प्रेम की अविरल धारा,
मानवता का गान तिरंगा।
हम सब की पहचान तिरंगा॥
हरे रंग की हरियाली से
जन जन में ख़ुशहाली छाए,
हो सदैव धन धान्य अपरिमित
हर ऋतु सुख लेकर ही आए,
अमित सुखों की खान तिरंगा।
हम सब की पहचान तिरंगा॥
कहता चक्र कि गति जीवन है,
उठो, बढ़ो, फिर मंज़िल पाओ,
यदि बाधाएँ आयें पथ में,
वीर, न तुम मन में घबराओ,
साहस का प्रतिमान तिरंगा।
हम सब की पहचान तिरंगा॥
20. बढ़े चलो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
भारती के लाल! तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
बढ़े चलो, डगर डगर,
न मन में हो अगर-मगर,
कभी न हार मानना,
हों कोटि विघ्न भी अगर,
तेज-पुंज-भाल, तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
खाइयों का डर किसे,
पहाड़ रोकता किसे,
तुम प्रचण्ड शक्ति हो,
न काल का भी भय जिसे,
काल के भी काल, तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
अंधकार हो अगर,
तो दीप से जले चलो,
तुम विजय वरेण्य ही हो,
लक्ष्य तक चले चलो,
सबसे बेमिसाल, तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
21. चिड़ियाघर - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
चिड़ियाघर देखने शहर में
नन्हा सोनू आया।
उसे पिता ने बड़े प्यार से,
केला एक दिलाया॥
रंग बिरंगी चिड़िया देखी,
देखा मोटू हाथी।
हिरण देख कर सोचा मन में,
खेलूँ बन कर साथी॥
शेर और चीता जब देखा,
तब थोड़ा घबराया।
मोर और बत्तखों ने उसके
मन को खूब लुभाया॥
पर सोनू जब लगा देखने,
बन्दर खड़ा अकेला।
दाँत दिखाता आया बन्दर,
छीन ले गया केला॥
22. प्यारे बच्चे, जागो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
कुकङू कुकङू कहता मुर्गा
प्यारे बच्चे जागो ।
ठीक नहीं है ज्यादा सोना
झटपट आलस त्यागो ।।
सुन्दर होता समय सुबह का
सुख का झरना झरता ।
नव उत्साह जगाता मन में
नयी ऊर्जा भरता ।।
सुखकर हवा, सुबह की लाली,
खिलते फूल मनोहर ।
मस्ती करते भ्रमर, तितलियाँ,
लगते कितने सुन्दर ।।
पक्षी गाते, खुशी मनाते,
उड़ते नील गगन में ।
जल्दी जगने से आ जाते
अनगिन सुख जीवन में ।।
तन मन स्वस्थ सबल हो जाते
सभी काम बन जाते ।
जल्दी जगकर खुशियाँ आतीं,
उन्नति के दिन आते ।।
23. मैया, मैं भी कृष्ण बनूँगा - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मैया, मैं भी कृष्ण बनूँगा
बंशी, मुझे दिलाना माँ।
अच्छा लगता गाय चराना,
मुझको गोकुल जाना, माँ॥
ग्वालों के संग में खेलूँगा,
यमुना बीच नहाऊँगा।
नाथूंगा मैं विषधर काले,
गेंद छुड़ाकर लाऊँगा॥
चोरी चुपके माखन खाकर
शक्तिवान बन जाऊँगा।
मारूँगा मैं असुर कई,
फिर सुरपुर कंस पठाऊँगा॥
राधा के संग भी खेलूँगा,
पर बंशी न दिखाऊँगा।
नाचूँगा मैं दे दे ताली,
सबको खूब रिझाऊँगा॥
24. सीख - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
वर्षा आई, बंदर भीगा,
लगा काँपने थर थर थर।
बयां घोंसले से यूं बोली
भैया क्यों न बनाते घर॥
गुस्से में भर बंदर कूदा,
पास घोंसले के आया।
तार तार कर दिया घोंसला
बड़े जोर से चिल्लाया॥
बेघर की हो भीगी चिड़िया,
दे बन्दर को सीख भली।
मूरख को भी क्या समझाना,
यही सोच लाचार चली॥
सीख उसे दो जो समझे भी,
जिसे जरूरत हो भरपूर।
नादानों से दूरी अच्छी,
सदा कहावत है मशहूर॥
25. चन्दा मामा - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मेरे प्यारे चंदा मामा!
जब रातों में आते हो।
झिलमिल तारों के संग मिलकर
मंद मंद मुस्काते हो॥
सदा खेलते आँख मिचौनी,
हर दिन रूप बदलते हो।
और कभी गायब हो जाते,
हमको कैसा छलते हो॥
तुमसे अपना रिश्ता कैसा
सब उलझन में रहते हैं।
दादा-दादी,मम्मी-पापा
सब ही मामा कहते हैं।
तुम्हें देखता हूँ रजनी भर,
भला कहाँ सो पाता हूँ।
शीतलता के परम-पुंज!
मैं सपनों में खो जाता हूँ॥
26. जागरण - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
उठो सुबह सूरज से पहले,
नित्य कर्म से निवृत हो लो।
नित्य नहाओ ठण्डे जल से,
पढ़ने बैठो, पुस्तक खोलो॥
करो नाश्ता,कपड़े बदलो,
सही समय जाओ स्कूल।
करो पढ़ाई खूब लगा मन,
इसमें करो न बिल्कुल भूल॥
खेलो खेल शाम को प्रति दिन
तन और मन होंगे बलवान।
ठीक समय से खाना खाओ,
फिर से पढ़ो, बढ़ाओ ज्ञान॥
द्वार प्रगति के खुल जायेंगे,
करो हौंसला,लगन लगाओ।
लक्ष्य पास में ही पाओगे
बढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ॥
27. रेल - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सबको मंजिल तक ले जाती,
सबको घर पहुँचाती।
रेल दूर रहने वालों को
आपस में मिलवाती॥
सिगनल हरा देख चल देती,
लाल देख रुक जाती।
सीटी बजा बुलाती सबको
सरपट दौड़ लगाती ॥
जब अपनी ही धुन में चलती
कितनी प्यारी लगती।
रेल देख कर सबके मन में
नयी लगन सी जगती ॥
रेल सभी से कहती जैसे
रुको न, दौड़ लगाओ।
कठिन नहीं है कोई मंजिल,
मेहनत से सब पाओ॥
28. तितली - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
रंग बिरंगी चंचल तितली
सबके मन को हरती ।
फूल फूल पर उड़ती रहती
जीवन में रंग भरती॥
जाने किस मस्ती में डूबी
फिरती है इठलाती।
आखिर किसे खोजती रहती
हरदम दौड़ लगाती॥
पीछे पीछे दौड़ लगाता
हर बच्चा मतवाला ।
तितली है या जादूगरनी
सब पर जादू डाला॥
काश, पंख होते अपने
तितली सी मस्ती करते।
हम भी औरों के जीवन में
खुशियों के रंग भरते॥
29. गुब्बारे - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मम्मी, वह देखो गुब्बारे !
आया गुब्बारे वाला।
गुड़िया लेगी, मैं भी लूँगा,
मचल रहा मन मतवाला॥
रंग रंग के, प्यारे प्यारे,
कुछ पतले से, कुछ मोटे।
लिए हुए आकार बहुत से,
कुछ लम्बे हैं, कुछ छोटे॥
मम्मी, मैं ले लूँ पीला या
फिर नीला लेकर खेलूँ।
गुड़िया को दो चार दिला दो,
मन करता मैं सब ले लूँ॥
कुछ पर बिन्दु, कुछ पर रेखा
किसी किसी पर हैं तारे।
मम्मी, तुम कितनी प्यारी हो,
दिलवा दो न गुब्बारे॥
30. वर दो, लड़ने जाऊँगा - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हल्दी घाटी किधर पिताजी,
मैं भी लड़ने जाऊँगा।
घोड़ा, भाला मुझे दिला दो,
मैं राणा बन जाऊँगा ॥
बैरी के छक्के छूटेंगे,
जब भाला चमकाऊँगा।
भाग जायेंगे शत्रु डर कर
समर भूमि जब जाऊँगा॥
इतने पर भी डटे रहे वह
तो फिर रण होगा भारी।
कट कर शीश अनेक गिरेंगे
देखेगी दुनियाँ सारी॥
चाहे शीश कटे मेरा भी,
तनिक नहीं घबराऊँगा।
पिता, आपका वीर पुत्र हूँ,
वर दो, लड़ने जाऊँगा॥
31. सपने - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
जब सोती हूँ मम्मी के संग,
मुझे रोज आते हैं सपने।
करती बात चाँद तारों से,
परीलोक ले जाते सपने॥
इन्द्रधनुष पर सरपट दौड़ूँ
बादल को बांहो में भर के।
उड़न खटोला में उड़ घूँमूँ,
सखियों के संग बातें करके॥
परी मुस्कराकर कहती हैं -
नयी नयी हर रोज कहानी।
सिंहासन पर पास बिठाती,
मुझको परीलोक की रानी॥
किन्तु जाग जाती हूँ झटपट
सुन मम्मी - स्वर कानों अपने।
कितने मनमोहक लगते हैं
जगने पर भी प्यारे सपने॥
32. साईकिल - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
अम्मा, साईकिल दिलवा दो
पापा नहीं दिलाते हैं।
छोटा है तू, गिर जायेगा,
यह कह कर बहकाते हैं॥
रोज चलाते सौरभ भैया,
चोट कहीं लग पाती है।
अम्मा, मैं नादान नहीं हूँ,
मुझे साइ्रकिल आती है॥
पापा की बिल्कुल मत सुनना,
बस मम्मी से बात करो।
घर आये साईकिल मेरी,
तुम ऐसे हालात करो॥
दादाजी से पैसे ले लो,
या उनसे ही मंगवाना।
देखो अम्मां, ना मत कहना,
मुझे नहीं खाना खाना॥
33. हम नन्हे नन्हे बच्चे - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हम नन्हे-नन्हे बच्चे
भारत की नव आशाएँ।
हम विकास पथ पर लिखेंगे
नित नव परिभाषाएँ॥
पहुंचेंगे हम तारों तक,
सागर-मंथन कर डालें।
हम सब मिलकर प्रकृति-गर्भ से,
अगणित रत्न निकालें॥
आदर्शों को अपनाकर
दें नये अर्थ जीवन को।
प्रेम और खुशियों से भर दें
हम जग के जन जन को॥
दिग्दिगन्त तक कीर्ति पताका
अपनी फहरायेंगे।
मिलकर अखिल विश्व में
ध्वज भारत का लहरायेंगे॥
34. प्यारी नानी - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
कितनी प्यारी बूढ़ी नानी
हमें कहानी कहती हैं।
जाते हम छुट्टी के दिन में
दूर गाँव वह रहती हैं॥
उनके आँगन लगे हुए हैं
तुलसी और अमरूद, अनार।
और पास में शिव का मंदिर
पूजा करतीं घंटे चार॥
हमको देती दूध, मिठाई
पूड़ी खीर बनाती हैं।
कभी शाम को नानी हमको
खेत दिखाकर लाती हैं॥
कभी कभी हमकों समझातीं
जब हम करते नादानी।
पैसे देकर चीज दिलातीं
कितनी प्यारी हैं नानी॥
35. दीवाली - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आयी दीवाली मनभावन
भाँति भाँति घर वार सजे।
जगमग जगमग हुई रोशनी
कितने बंदनवार सजे॥
दादा लाए कई मिठाई,
खील, बताशे भी लाए।
फुलझड़ियाँ, बम, चक्र, पटाखे
अम्मां ने ही मंगवाए॥
गुड़िया ने छोड़ी फुलझड़ियाँ,
शेष पटाखे भैया ने।
धूम धड़ाका हुआ जोर का,
डाँट लगाई मैया ने॥
सबने मिल की लक्ष्मी पूजा,
काली रजनी उजियाली।
कितनी रौनक कितनी मस्ती
फिर फिर आये दीवाली॥
36. प्रेम सुधा बरसायें - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
गुन गुन गुन गुन करता भौंरा
उपवन उपवन जाता।
कली-कली पर, फूल फूल पर
गीत मिलन के गाता॥
रंग, रुप, गुण धर्म अलग हैं
साम्य नहीं दिख पाता।
फिर भी भौंरा फूलों के संग
कितना नेह लुटाता॥
मस्ती में डूबा सा भौंरा
जैसे सबसे कहता।
मिलकर रहना इस दुनिया में
कितना सुखमय रहता॥
आओ, सीखे भौंरे से हम
मन के भेद मिटायें।
सुखमय बने सभी का जीवन
प्रेम-सुधा बरसायें॥
37. पानी - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
पानी से हर बूँद बनी है,
पानी का ही सागर ।
नभ में बादल दौड़ लगाते,
भर पानी की गागर॥
पानी से ही बहते झरने,
नदियाँ नाले बहते।
ताल-तलैया, झील, सरोवर
पानी से शुभ रहते॥
पानी से ही फसलें उगतीं,
हर वन उपवन फलता।
पानी से ही इस वसुधा पर
सबका जीवन चलता॥
आओ, बचत करें पानी की
पानी उत्तम धन है।
पानी से ही यह जग सुन्दर
पानी से जीवन है॥
38. गाड़ी - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
डैडी, तुम भी गाड़ी ले लो
सभी घूमने जायेंगे।
जब हौरन बोलेगा पीं पीं
राहगीर हट जायेंगे ॥
देखेंगे हिमगिरि के झरने,
चाट पकोड़ी खायेंगे।
पर डैडी बस यह मत कहना
जल्दी वापस आयेंगे॥
देवदार के पेड़ों के संग
फोटो कई खिचायेंगे।
जब लौटेंगे वापस घर को
चीज कई हम लायेंगे ॥
मम्मी, तुम क्या सोच रही हो,
पहनो बासंती साड़ी।
चलो संग डैडी के तुम भी,
आओ ले आयें गाड़ी॥
39. बादल - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सागर से गागर भर लाते
बादल काले काले।
लाते साथ हवा के घोड़े
दम खम, फुर्ती वाले॥
कभी खेत में, कभी बाग में,
कभी गाँव में जाते।
कहीं निकलते सहमे सहमे,
कहीं दहाड़ लगाते॥
कहीं छिड़कते नन्हीं बूँदें,
कहीं छमा-छम पानी।
कहीं कहीं सूखा रह जाता
जब करते नादानी
जहाँ कहीं भी जाते बादल
मोर पपीहा गाते।
सब के जीवन में खुशियों के
इन्द्रधनुष बिखराते॥
बड़े प्यार से कहती धरती
“आओ, बादल, आओ।
तुम अपनी जल की गागर से
सबकी प्यास बुझाओ॥"
40. बारिश - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आसमान में बादल छाए ।
सूरज दादा नजर न आए ।।
छम छम छम छम बरसा पानी ।
राहगीर ने छतरी तानी ।।
फैल गई सुंदर हरियाली ।
हवा बही सुख देने वाली ।।
पत्ते, फूल, पेड़ मुसकाये।
चिड़ियों ने मिल गाने गाये ।।
झील भरी, नदिया लहराई ।
चाचा जी ने नाव चलाई ।।
खेल खेल बच्चे मुसकाये ।
ऐसी बारिश फिर फिर आये ।।
41. संकल्प - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
उठ उठ गिर गिर गिर गिर उठ उठ,
गिरि की गोदी से निकल निकल ।
मन में अविचल संकल्प लिये,
बहती नदिया कल-कल, कल-कल ।।
पथ में काँटे या फूल मिलें,
चाहे पत्थर राहें रोकें ।
चलती नदिया अपनी धुन में,
कितनी भी बाधाएं टोकें ।।
रुकती न कभी, थकती न कभी,
बढ़ती जाती हँसती गाती ।
दायें मुड़ती, बायें मुड़ती,
आखिर अपनी मंजिल पाती ।।
समझाती नदी सदा सबको,
तन मन में नई उमंग भरो ।
श्रम से सब कुछ मिल जाता है,
तुम भी मन में संकल्प करो ।।
42. हम भी परहित करना सीखें - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सूरज अपनी नव-किरणों से
बिखरा देता जग में लाली ।
बूँदों के मोती बिखराकर
बादल फैलाता हरियाली ।।
धरती के उपकार असीमित
सबको दाना पानी देती ।
अपने आंचल के आश्रय में
सबके सारे दुःख हर लेती ।।
उपवन सदा सुगंध लुटाकर
सबकी सांसें सुरभित करता ।
खग-कुल मिलकर गीत सुनाता
सबके मन में खुशियां भरता ।।
हम भी परहित करना सीखें,
मिलकर सब पर नेह लुटायें ।
औरों के दुःख दर्द मिटाकर
इस धरती को स्वर्ग बनायें ।।
43. भला कौन है सिरजनहार - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हर दिन सूरज को प्राची से,
बड़े सबेरे लाता कौन ?
ओस-कणों के मोहक मोती
धरती पर बिखराता कौन ?
कौन बताता सुबह हो गयी,
कलिकाओ मुस्काओ तुम ।
अलि तुम प्रेम-गीत दुहराओ,
पुष्प सुगंध लुटाओ तुम ।।
बहो झूमकर ओ पुरवाई
झूम उठें जन जन के तन ।
किसके कहने पर गा गा कर
खग सुखमय करते जीवन ।।
इस लुभावने सुन्दर जग का
भला कौन है सिरजनहार ।
उस अनाम को शत शत वंदन,
उसका बार बार आभार ।।
44. साहस - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मत अन्धकार से डरो कभी,
जुगनू सा स्वयंप्रकाश बनो ।
काँटों से भला वितृष्णा क्यों
फूलों की मधुर सुवास बनो ।।
चिंता करने की बात नहीं,
यदि आ जायें रातें काली ।
आशा का चन्दा उगने पर
फैलेगी मनहर उजियाली ।।
तूफान मिलेंगे जीवन में,
पर तनिक नहीं घबराना है ।
साहस की नौका साथ लिए
आगे ही बढ़ते जाना है ।।
साहस वह एक परम गुण है,
जो जीवन श्रेष्ठ बनाता है ।
साहस ही है वह महामंत्र,
जो जीत सदैव दिलाता है ।।
हे वीर-सपूतो उठो, उठो,
साहस से तन-मन-प्राण भरो ।
चाहो तो सब कुछ संभव है,
उत्कर्ष करो, उत्कर्ष करो ।।
45. हम हैं वीर सिपाही - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
अटल इरादे, फौलादी तन, साहस, चिर तरुणाई ।
थर्राते हैं दुश्मन सारे, जब हम लें अंगडाई ।।
नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।
हम रण में अड़ जाने वाले,
सिंहों से लड़ जाने वाले,
गीत विजय के गाने वाले,
जब दुश्मन ने शीश उठाया, हमने धूल चटाई ।
नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।।
हम रिपु दल में बढ़ते जाते,
तूफानों से हम टकराते,
पर्वत हमको रोक न पाते,
हम नभ तक की दूरी नापें, सागर की गहराई ।
नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।।
हम हैं सफल मनोरथ वाले,
हमें न रोकें बरछी भाले,
हमने नाथे विषधर काले,
हमसे लड़कर रिपु पछताए, देते फिरे दुहाई ।
नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।।
देश प्रेम में जीते मरते,
बलिदानों से कभी न डरते,
मन में जोश अपरिमित भरते,
विषम परिस्थितियों में चलकर हमने मंजिल पाई ।
नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे, हम हैं वीर सिपाही ।।
46. आओ, मिलकर खेलें खेल - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आओ, मिलकर खेलें खेल ।
सारे मिलकर खेलें खेल ।।
मिलकर कदम बढ़ायेंगे,
आगे बढ़ते जायेंगे,
नहीं रुकेगी अपनी रेल ।
आओ, मिलकर खेलें खेल ।।
चोर सिपाही खेलेंगे,
सच्चे को ताकत देंगे,
पर झूठे को होगी जेल ।
आओ, मिलकर खेलें खेल ।।
तनिक नहीं घबरायेंगे,
शिखरों पर चढ़ जायेंगे,
बाधाओं को पीछे ठेल ।
आओ, मिलकर खेलें खेल ।।
तन, मन स्वस्थ बनायेंगे,
गीत खुशी के गायेंगे,
मिलकर दुःख भी लेंगे झेल ।
आओ, मिलकर खेलें खेल ।।
47. पिचकारी नयी दिलायी - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
फागुन आया, बनी होलिका,
फिर उसमें दी आग ।
सबके अंदर उठी उमंगें,
और बढ़ा अनुराग ।
रंग लगाकर गले मिले सब,
गालों मला गुलाल ।
ढोल नगाड़े बजा बजाकर
सबने किया धमाल ।।
चबूतरे पर रख पिचकारी
गयी भारती अंदर ।
पिचकारी ले चढ़ा पेड़ पर
काले मुँह का बंदर ।।
अमन, अनुज, अनुराग
और राघव नाचे दे ताली।
खिसियाकर रो पड़ी भारती,
मुँह पर छायी लाली ।।
दादाजी ने पुचकारी वह,
सब को डांट लगायी ।
फिर दुकान से एक नयी
पिचकारी उसे दिलायी ।।
48. मेला - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सोनू मोनू गये शहर में,
वहाँ लगा था मेला ।
सजी हुई थीं सभी दुकानें,
लगे हुए थे ठेला ।।
चाट पकौड़ी, पानी पूरी,
आइस्क्रीम, मिठाई ।
खट्टी मीठी गोल रसभरी
दोनों ने मिल खाई ।।
रंग बिरंगे गुब्बारों ने
उनको खूब लुभाया ।
जादूगर का खेल देखकर
मन में अचरज आया ।।
वहाँ हँसाता घूम रहा था
लाल टोप का जोकर ।
मेले से घर वापस आये
वे दोनों खुश होकर ।।
49. सूरज और कलियाँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सात रंग के घोड़ों पर चढ़
सजधज सूरज आया ।
उपवन में सोयी कलियों को
उसने यूँ समझाया ।।
प्यारी कलियों आँखे खोलो,
उठा रात का पहरा ।
सबका ही मन मोह रहा है
यह शुभ समय सुनहरा ।।
सबको ही सुख बाँट रही है
मनभावन पुरवाई ।
चंचल पंख हिलाती तितली
प्यार बाँटने आई ।।
कलियों ! तुम मुस्कान बिखेरो,
हँसकर साथ निभाओ ।
औरों को कुछ खुशी बाँटकर
जीवन का सुख पाओ ।।
50. जीवन सुगम बनायें - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हिलमिल हिलमिल चाँद सितारे
रहते साथ गगन में ।
गाते और फुदकते पंछी
मिलकर रहते वन में ।।
रंग रंग के, ढंग ढंग के
सुमन साथ में खिलते ।
उपवन और मनोहर लगता
जब तितली दल मिलते ।।
घूम घूमकर, झूम झूम जब
सागर में मिल जातीं ।
और तरंगित होती नदियां
सागर ही कहलातीं ।।
हम भी आपस में मिलजुल कर
जीवन सुगम बनायें ।
हँसते गाते जीवन पथ पर
आगे बढ़ते जायें ।।
51. नई सदी के बच्चे - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नई सदी के बच्चे हैं हम
मिलकर साथ चलेंगे ।
प्रगति के रथ को हम मिलकर
नई दिशाएं देंगे ।
जल, थल, नभ में काम करेंगे
जो चाहें पायेंगे ।
सदा राष्ट्र की विजय पताका
मिलकर फहरायेंगे ।।
हर कुरीति, हर आडम्बर को
मिलकर नष्ट करेंगे ।
सबके मन में नई उमंगें,
सपने नये भरेंगे ।।
नई सदी के बच्चे हैं हम,
नव प्रतिमान गढ़ेंगे ।
सबसे प्यारा देश हमारा,
सबको बतला देंगे ।।
52. गौरैया - त्रिलोक सिंह ठकुरेला
घर में आई गौरैया ।
झूम उठा छोटा भैया ।।
गौरैया भी झूम गयी ।
सारे घर में घूम गयी ।।
फिर मुंडेर पर जा बैठी ।
फिर आंगन में आ बैठी ।।
कितनी प्यारी वह सचमुच ।
खोज रही थी शायद कुछ ।।
गौरैया ने गीत सुनाया ।
भैया दाना लेकर आया ।।
दाना रखा कटोरे में ।
पानी रखा सकोरे में ।।
फुर्र उड़ी वह ले दाना ।
सबने मन में सुख माना ।।
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