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हिंदी कविता
संघर्ष - सुव्रत शुक्ल | Sangharsh - Suvrat Shukla
राहें कांटों से भरी हुई,
पर पग न रुके हमारे।
सीढ़ी समझा कांटों को ,
बढ़ जाते कदम हमारे।।
राहें थी कठिन पता था ,
पग भी डग-मग-डग होते
ईश्वर ने थामी थी बाहें,
फिर हम साहस क्यों खोते।
आंधी तूफ़ान बहुत आए,
लगता अब कश्ती जायेगी
आशायें ही बस शेष बची थी,
वो कितना साथ निभायेगी।
हिम्मत खोते हिम्मत करते,
कुछ इसी तरह का सफर रहा।
उठ गए कभी, या कभी पड़े,
पर हार न माने, किसी जगह।।
कुछ नवीन संबंध जुड़े,
संग काल बहुत कुछ छूट गए।
कुछ ने तो तोड़ दिया हमको ,
कुछ संघर्षों में खुद टूट गए।।
जो सच में थे अपने वो तो,
संघर्षों में भी साथ रहे।
जो झूठे , दिखलाया करते थे,
वो किए बहाने भाग गए।।
ये समय हमारा संघर्षों का,
शिक्षक है इसको जानो,
अपने हैं कौन पराए हैं,
इसी भांति उनको पहचानो।।
- सुव्रत शुक्ल
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