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क्या डरना - सुव्रत शुक्ल | Kya Darna - Suvrat Shukla
चल दिया सफर जब तय करने,
तीखे काटों से क्या डरना।
ओखल में सिर को डाल दिया,
मूसल गिरने से क्या डरना।।
राहें हो मुश्किल भरी अगर,
हिम्मत दूनी बढ़ जाती है।
राहों को रोके कोई,
जुर्रत दूनी बढ़ जाती है।।
मधुमय वाणी बोले कोई,
तो धन क्या प्राण लुटा दें हम।
पर अकड़ दिखाई अगर हमें,
क्षण में फिर धूल चटा दें हम।।
यदि आ जाओ बिकने पर,
कीमत घट जाती है अक्सर।
न हुआ इरादा बिकने का ,
कीमत लगती है फिर बढ़कर।।
हम पार्थ, सारथी मधुसूदन,
फिर कुरुभूमि में क्या डरना।
जीतेंगे या सीखेंगे हम,
आगे बढ़ने से क्या डरना।।
- सुव्रत शुक्ल
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