विविध - माँ भाग 28 - मुनव्वर राना | Vividh - Maa Part 28 - Munawwar Rana
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आये
कोयल बोले या गौरेय्या अच्छा लगता है
अपने गाँव में सब कुछ भैया अच्छा लगता है
ख़ानदानी विरासत के नीलाम पर आप अपने को तैयार करते हुए
उस हवेली के सारे मकीं रो दिये उस हवेली को बाज़ार करते हुए
उड़ने से परिंदे को शजर रोक रहा है
घर वाले तो ख़ामोश हैं घर रोक रहा है
वो चाहती है कि आँगन में मौत हो मेरी
कहाँ की मिट्टी है मिझको कहाँ बुलाती है
नुमाइश पर बदन की यूँ कोई तैयार क्यों होता
अगर सब घर हो जाते तो ये बाज़ार क्यों होता
कच्चा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आये
अँधेरी रात में अक्सर सुनहरी मिशअलें लेकर
परोंदों कीमुसीबत का पता जुगनू लगाते हैं
तूने सारी बाज़ियाँ जीती हैं मुझपे बैठ कर
अब मैं बूढ़ा हो रहा हूँ अस्तबल भी चाहिए
मोहाजिरो! यही तारीख़ है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा