वह - माँ भाग 26 - मुनव्वर राना | Vah - Maa Part 26 - Munawwar Rana

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वह - माँ भाग 26 - मुनव्वर राना | Vah - Maa Part 26 - Munawwar Rana

किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी

हमें मालूम है तुमको ये बीमारी नहीं होगी


नीम का पेड़ था बरसात थी और झूला था

गाँव में गुज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था


हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं

जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं


तुझे अकेले पढ़ूँ कोई हम सबक न रहे

मैं चाहता हूँ कि तुझ पर किसी का हक़ न रहे


वो अपने काँधों पे कुन्बे का बोझ रखता है

इसी लिए तो क़दम सोच कर उठाता है


आँखें तो उसको घर से निकलने नहीं देतीं

आँसू हैं कि सामान—ए—सफ़र बाँधे हुए हैं


सफ़ेदी आ गई बालों में उसके

वो बाइज़्ज़त घराना चाहता था


न जाने कौन सी मजबूरियाँ परदेस लाई थीं

वह जितनी देर तक ज़िन्दा रहा घर याद करता था


तलाश करते हैं उनको ज़रूरतों वाले

कहाँ गये वो पुराने शराफ़तों वाले


वो ख़ुश है कि बाज़ार में गाली मुझे दे दी

मैं ख़ुश हूँ एहसान की क़ीमत निकल आई

Jane Mane Kavi (medium-bt) Hindi Kavita (medium-bt) Munawwar Rana(link)

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