मुझे अपने हृदय लगाओ तुम - सुव्रत शुक्ल | Mujhe Apne Hriday Lagao Tum - Suvrat Shukla

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मुझे अपने हृदय लगाओ तुम - सुव्रत शुक्ल | Mujhe Apne Hriday Lagao Tum - Suvrat Shukla

दुग्ध उदधि की मीन भांति
मधुकर गति की कर रहे प्राप्ति
ये नयन तुम्हारे बड़े मुखर
इनको रोको थोड़ा पल भर।

कुछ पल अनिमेष इन्हें रोको
मुझको कुछ कहना है देखो
जो बात हृदय में अब तक थी
सुनलो उसको मुझको देखो।

हे प्रिये ! कहूं किस भांति अहो
अब याद करूं किस भांति कहो 
तुम रवि समान दिन की जननी
मैं चंद्र, मिलन यह कैसे हो।

यह हृदय दर्द अब सह सहकर
होने को चला कठिन प्रस्तर
मेरी तो तनिक न सुनता है
बस माला तेरी जपता है।

बोली सुनकर "हे प्राणप्रिये!"
तुम मुख मलीन किस हेतु किए
आऊंगी  लेकर    पुष्पहार
जीवन अर्पित तुम्हे बार बार।

बिन आप यहां सब नीरस है
तुम हो तो जीवन में रस है
आधार तुम्ही हो जीवन के
स्वामी हो मेरे तन मन के।

यह शीश चरण में धरती हूं
तुम्हें जीवन अर्पण करती हूं
अब खोल अधर मुस्काओ तुम
मुझे अपने हृदय लगाओ तुम।

         - सुव्रत शुक्ल

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