कोशिश और परिणाम - सुव्रत शुक्ल | Koshish ka Parinam - Suvrat Shukla

Hindi Kavita

Hindi Kavita
हिंदी कविता

Suvrat-Shukla

कोशिश और परिणाम - सुव्रत शुक्ल | Koshish ka Parinam - Suvrat Shukla

मिट्टी का दीपक छोटा सा,
टिम टिम जलकर बुझ जाता है।
कोशिश करता चिर जलने की,
चिर काल नहीं टिक पाता है।

सूरज प्रकाश का है सागर,
जगमग जग को वह करता है।
चिरयुग से बना चिरंतन वह,
उसकी पूजा जग करता है ।

अकिंचन यदि, कोई राही,
गंतव्य नहीं यदि पाता है।
मेहनत की उसकी कद्र नहीं,
उसकी जग हंसी उड़ाता है ।

दूजा संभ्रांत पथिक, पथ पर
साधनयुत हो कर आता है,
क्षण में तय कर लेता है पथ को,
फिर जग उसके गुण गाता है।

सच है शायद दुनिया का यह,
परिणामों को मिलते ईनाम।
कोशिशें यहां तड़पा करती,
हैं जश्न किया करते परिणाम।

कलियुग में साधन है बढ़कर,
साधना यहां अब पूज्य नहीं।
सम्मान नहीं मिलता श्रम को,
जो विजयी हुआ, बस पूज्य वही।।             

                          - सुव्रत शुक्ल


(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Suvrat Shukla) #icon=(link) #color=(#2339bd)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!