ख़ुद - माँ भाग 17 - मुनव्वर राना | Khud - Maa Part 17 - Munawwar Rana
हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है
कच्चे समर शजर से अलग कर दि्ये गये
हम कमसिनी में घर से अलग कर दि्ये गये
गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते
हम रात में छुप कर कहीं बाहर नहीं जाते
हमारे साथ चल कर देख लें ये भी चमन वाले
यहाँ अब कोयला चुनते हैं फूलों —से बदन वाले
इतना रोये थे लिपट कर दर—ओ—दीवार से हम
शहर में आके बहुत दिन रहे बीमार —से हम
मैं अपने बच्चों से आँखें मिला नहीं सकता
मैं ख़ाली जेब लिए अपने घर न जाऊँगा
हम एक तितली की ख़ातिर भटकते फिरते थे
कभी न आयेंगे वो दिन शरारतों वाले
मुझे सँभालने वाला कहाँ से आयेगा
मैं गिर रहा हूँ पुरानी इमारतों की तरह
पैरों को मेरे दीदा—ए—तर बाँधे हुए है
ज़ंजीर की सूरत मुझे घर बाँधे हुए है
दिल ऐसा कि सीधे किए जूते भी बड़ों के
ज़िद इतनी कि खुद ताज उठा कर नहीं पहना