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इन्सान - सुव्रत शुक्ल | Insaan - Suvrat Shukla
तुम तो ठहरे सीधे सच्चे,
जग का ना तुमको तनिक ज्ञान।
जो भी मिल जाएं राहों में,
उनसे रहना तुम सावधान।
आने वाले नव आगंतुक,
धरती पर रहना सावधान।
ईश्वर की अनुपम रचना किन्तु,
परतों में खुलता है इन्सान।।
क्षण में मिलकर , अपना कहते हैं,
पहले कुछ पल में थे अनजान।
मत करना निर्णय त्वरित कभी,
परतों में खुलता है इन्सान।।
फट गया हृदय, बह अश्रु चले,
कांपी धरती, डोला आसमान।
जिनको प्रतिक्षण पूजा करते,
उनकी खातिर हम तृण समान।
कर दिया हमारा चूर्ण चूर्ण ,
जो शेष हृदय में था अभिमान।
फिर सोचा यह तो होना था ,
परतों में खुलता है इन्सान।
- सुव्रत शुक्ल
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