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इनकार - सुव्रत शुक्ल | Inkar - Suvrat Shukla
चार वर्ण से बना शब्द चलता जिससे संसार।
तृण से तेज जलाने वाला होता है इनकार।।
हो इनकार प्यार का, प्रियतम
से या प्रेयसी वाला,
दोनों करते जला , सदा ही
बिना प्रज्ज्वलित ज्वाला।
यदि स्वीकार हुआ आग्रह तो हृदय करे झनकार।
कोई युवा नौकरी खातिर
कहां नहीं भटका वह आखिर।
होकर भी कितना भी शिक्षित
उसको मिला चयन यदि किंचित।
तो उसका गुण जग है गाता
वही अन्यथा ताने पाता।
तुझमें क्षमता नहीं , पड़े हो इसीलिए बेकार।
तृण से तेज जलाने वाला होता है इनकार।।
कोई कितना भले सगा हो
कोई कितना गले लगा हो
बहुत श्रेष्ठ है धन की माया
नहीं कोई इससे बच पाया
वजन देख कर जेबों का रिश्ते होते स्वीकार।
तृण से तेज जलाने वाला होता है इनकार।।
- सुव्रत शुक्ला
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