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हिंदी कविता
जो लड़ रहे अभी तक उनको हमारा वंदन - सुव्रत शुक्ल
Jo Lad rahe abhi tak unko hamara vandan - Suvrat Shukla
आए हैं बंधु जो भी करने यहां प्रर्दशन।
जो लड़ रहे अभी तक उनको हमारा वंदन।।
बैठे हैं बेरोजगार इस जहां में दो बरस से।
करके प्रशिक्षण पूरा,हम नौकरी को तरसते।
कोई नहीं सुझाया जब मार्ग तब चले हम।
जो लड़ रहे अभी तक उनको हमारा वंदन।।
अगणित दिनों से आप सब , कैसे टिके यहां पर।
हड्डी कंपाती सर्दी, घुटता सदा यहां दम।
तुमसे हुए हैं प्रेरित, ले आए जूथ ये हम।
जो लड़ रहे अभी तक उनको हमारा वंदन।।
शासन बना बधिर है, ना सुन सकेगा हमको।
आवाज उठाने अपनी, आना पड़ेगा सबको।
हम सत्य पर चले हैं, मिट्टी सजा के चंदन।
जो लड़ रहे अभी तक उनको हमारा वंदन।।
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