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हिंदी कविता
श्वास में बसी तुम - सुव्रत शुक्ल
Shvas mai basi tum - Suvrat Shukla
तुम हो मेरी ज्योति नेत्र की, तुम्हीं आस और श्वास हो।
श्वास-श्वास में वास तुम्हारा , तुम्हीं हृदय के पास हो।।
शशि समान स्निग्ध वर्णमय, युगल नयन कारे-प्यारे।
गजगामिनी पद बढ़े तुम्हारे, उस छवि पर जाएं वारे।
पीकर भी रहती अशांत ,तुम वही ह्रदय की प्यास हो।
श्वास-श्वास में वास तुम्हारा, तुम्हीं हृदय के पास हो।।
तीर्थ, पुण्य, भगवान सभीकुछ , तुममें सदा समाए हैं।
वास हृदय में दे दो अपने, शरण तुम्हारे आएं हैं।
नष्टप्राय इस क्षीणकाय में, जीवन का आभास हो।
श्वास-श्वास में वास तुम्हारा , तुम्हीं हृदय के पास हो।।
जीवन करते तुम्हें समर्पण, सात जन्म हो एक हो।
तुम्हीं मिलो, कुछ और न चाहूं, यही साथ बस नेक हो।
मन मेरा आराधे तुमको, हृदय तुम्हारा वास हो
श्वास-श्वास में वास तुम्हारा , तुम्हीं हृदय के पास हो।।
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