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बेरोजगारों का नववर्ष - सुव्रत शुक्ल
Berojgaro ka Navvarsh - Suvrat Shukla
तुम राजा, क्या कहना तुम्हारा, असली जश्न तुम्हारा होगा।
बैठे बेरोजगार यहां पर, क्या नववर्ष हमारा होगा।।
2019 फिर 20 आ गया, भर्ती के इंतजार में।
20 गया फिर 21 आ गया, गए सभी फिर भाड़ में।
गुजरे तीन साल हैं कैसे, पूछो हमारे मन से।
आंखो के नीचे काले घेरों से, झुलस रहे इस तन से।
टूटा सा घर, सपने अधूरे क्या ये दर्द तुम्हारा होगा।
बैठे बेरोजगार यहां पर क्या नववर्ष हमारा होगा।।
सोचा करते थे, जब जाते थे बीटीसी कॉलेज हम।
होगी टीईटी, सीटेट होगा, पास करेंगे पढ़ेंगे हम।
चार बार तो पास कर चुके, नौकरी अभी न पाई।
तड़प मची रहती मन में, कितनी भी करो पढ़ाई।
किसी काम में मन नहीं लगता चिंता है बस घेरे।
मम्मी पापा की टूटती उम्मीदें, टूटे सपने मेरे।
लोग हमारे ऊपर हंसते क्षमता पर शक करते।
क्या जी रहे, उम्र कट रही, निःसहाय क्या करते।
बेरोजगार, निठल्ला कहकर क्या सम्मान तुम्हारा होगा?
बैठे बेरोजगार यहां हम, क्या नववर्ष हमारा होगा।।
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