Hindi Kavita
हिंदी कविता
प्रेमाश्रु-वर्षण - भारतेंदु हरिश्चंद्र
Premashru Varshan - Bharatendu Harishchandra
1. सखी री मोरा बोलन लागे - भारतेंदु हरिश्चंद्र
सखी री मोरा बोलन लागे।
मनु पावस कों टेरि बोलावत, तासों अति अनुरागे।
किधौं स्याम-घन देखि देखि कै, नाचि रहे मद पागे।
2. देखि सखि चंदा उदय भयो - भारतेंदु हरिश्चंद्र
देखि सखि चंदा उदय भयो।
कबहूँ प्रगट लखात कबहुँ बदरी की ओट भयो।
करत प्रकास कबहुँ कुंजन में छन-छ्न छिपि-छिपि जाय।
मनु प्यारी मुख-चंद देखि के घूँघट करत लजाय।
अहो अलौकिक वह रितु-सोभा कछु बरनी नहिं जात।
'हरीचंद' हरि सों मिलिबे कों मन मेरो ललचात॥
3. सखी अब आनंद को रितु ऐहै - भारतेंदु हरिश्चंद्र
सखी अब आनंद को रितु ऐहै।
बहु दिन ग्रीसम तप्यो सखी री सब तन-ताप नसैहै।
ऐ हैं री झुकि के बादर अरु चलिहैं सीतल पौन।
कोयलि कुहुकि कुहुकि बोलैंगीं बैठि कुंज के भौन।
बोलैंगे पपिहा पिउ-पिउ बन अरु बोलैंगे मोर।
'हरीचंद' यह रितु छबि लखि कै मिलिहैं नंदकिसोर॥
4. सखी री कछु तो तपन जुड़ानी - भारतेंदु हरिश्चंद्र
सखी री कछु तो तपन जुड़ानी।
जब सों सीरी पवन चली है तब सों कछु मन मानी।
कछु रितु बदल गई आली री मनु बरसैगो पानी।
'हरीचंद' नभ दौरन लागे बरसा कै अगवानी॥
5. भोजन कीजै प्रान-पिआरी - भारतेंदु हरिश्चंद्र
भोजन कीजै प्रान-पिआरी।
भई बड़ी बार हिंडोले झूलत आज भयो श्रम भारी।
बिंजन मीठे दूध सुहातो लीजै भानु-दुलारी।
स्याम-स्याम चरन कमलन पर 'हरीचंद' बलिहारी॥
6. एरी आजु झूलै छै जी श्याम हिंडोरें - भारतेंदु हरिश्चंद्र
एरी आजु झूलै छै जी श्याम हिंडोरें।
बृंदाबन री सघन कुंज में जमुना जी लेत हिलोरें।
संग थारे बृषभानु-नंदिनी सोहै छै रंग गोरे।
'हरीचंद' जीवन-धन वारी मुख लखतीं चित चोरे॥
7. सखी री ठाढ़े नंद-कुमार - भारतेंदु हरिश्चंद्र
सखी री ठाढ़े नंद-कुमार।
सुभग स्याम घन सुख रस बरसत चितवन माँझ अपार।
नटवर नवल टिपारो सिर पर लकी छबि लाजत मार।
'हरीचंद' बलि बूँद निवारत जब बरसत घन-धार॥
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Bharatendu Harishchandra) #icon=(link) #color=(#2339bd)