Hindi Kavita
हिंदी कविता
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते - वसीम बरेलवी
Tumhari Raah Mein Mitti Ke Ghar Nahi Aate - Waseem Barelvi
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते
मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते
जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते
बिसाते-इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आता
यह और बात कि बचने के घर नहीं आते
वसीम जहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो लेके एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
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