Hindi Kavita
हिंदी कविता
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता - वसीम बरेलवी
Wo Mere Ghar Nahi Aata Main Uske Ghar Nahi Jata - Wasim Barelvi
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता
घरों की तर्बियत क्या आ गई टीवी के हाथों में
खुले थे शहर में सौ दर मगर इक हद के अंदर ही
कहाँ जाता अगर मैं लौट के फिर घर नहीं जाता
मोहब्बत के ये आँसू हैं उन्हें आँखों में रहने दो
शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता
'वसीम' उस से कहो दुनिया बहुत महदूद है मेरी
किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता।
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