वही तोता - वीरेन डंगवाल Wahi Tota - Viren Dangwal Part 3

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हिंदी कविता

वही तोता -वीरेन डंगवाल
Wahi Tota - Viren Dangwal Part 3

फलों से लदा है अमरूद का पेड़ इस भादो मास में
भीगी हुई पत्तियों से बचता उन्‍हीं में छिपता भी
कुतरता सतर्क बेतकल्‍लुफी से
फुनगी के पास के
पके हुए फल वह तोता
वहां से उड़ने में आसानी होगी उसे
किसी भी आकस्मिकता में

मैं पहचानता हूं उसे
उसका श्‍यामल सर और कंठीदार गला
उसकी शाही अदा
किसी खूब पके छोटे फल को
एक पंजे में पकड़कर कुतरने की
उसका भव्‍य अकेलापन
सर्दियों की फसल में भी आता था वह वही
पिछली बरसात में भी
लौटकर आया हुआ कोई अनजान आदमी होता
तो शायद इतने भरोसे से मैं यह बात
कह न पाता
या शायद
उसी से पूछता
Viren-Dangwal

पेप्पोर रद्दी पेप्पोर - वीरेन डंगवाल

पेप्पोर रद्दी पेप्पोर
पहर अभी बीता ही है
पर चौंधा मार रही है धूप
खड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़
उरूज पर आ पहुंचा है बैसाख
सुन पड़ती है सड़क से
किसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकार
गोया एक फरियाद है अजान-सी
एक फरियाद है एक फरियाद
कुछ थोड़ा और भरती मुझे
अवसाद और अकेलेपन से

फ्यूंली–एक - वीरेन डंगवाल

वसन्‍त आ गया है
खिले हैं ये चटक पीले फूल
गीतों के बाहर भीः

'मैं तुम्‍हें प्‍यार करता हूं'-
 
जोर से बोल देना चाहता हूं मैं भी
नीचे घाटी की ओर मुंह करके
'तुम्‍हें प्‍यार करता हूं
ओ मुरी सुआ
ओ मेरी पींजरा
ओ मेरे प्राणों की चोर जेब!...'
बोल देना चाहता हूं मैं पर बोलता नहीं

साठ की वय एक लम्‍बा पेंच है
जिसका नोकीला सिरा घूम कर तिरछा धंसा हुआ
ईश्‍वर के माथे पर.

फ्यूंली–दो - वीरेन डंगवाल

फागुन में जब वे खतरनाक उतारों से
घास काट कर लाएंगी
तो गट्ठर में बंध आयेंगे
वे फूल भी.

भीटों में घास के बीच में ही छिपे होते हैं
उनके झाड़

वसन्‍त्‍ के वे विनम्र कांटें भी
पसंद आते हैं मवेशियों को
फूलों की तो बात ही क्‍या कहना

बल्कि
जब चारे के बीच दिखती है नांद में
वह मसली हुई पीताभा
तब
खुशी से गोरूओं का नथुने फुंकारना
और कान फटफटाना तो देखो !

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