Hindi Kavita
हिंदी कविता
बावजूद मधुशाला के, कवि बच्चन जी - वीरेन डंगवाल Viren Dangwal Part 14
चांद की चकल्लस से
कुछ सुंदर हुई रात
थोड़ी-सी हवा चली
और मजा आ गया
बालकनी से दीखा
सुदूर भूरे रंग का अंधकार
जिसे भेदते दाखिल होती थी
महानगर में
अंतहीन-सी लगती कतार मोटर गाडियों की
वैसे ही इस तरफ से भी जाती थी
याद आए कुछ चेहरे
भूलें भी कुछ कसकीं
जी में आया यह भी
कवि बच्चन में कुछ तो है
बावजूद मधुशाला के !
खुद को ढूँढना - वीरेन डंगवाल
एक शीतोष्ण हंसी में
जो आती गोया
पहाड़ों के पार से
सीधे कानों फिर इन शब्दों में
ढूंढना खुद को
खुद की परछाई में
एक न लिए गए चुम्बन में
अपराध की तरह ढूंढना
चुपचाप गुजरो इधर से
यहां आंखों में मोटा काजल
और बेंदी पहनी सधवाएं
धो रही हैं
रेत से अपने गाढ़े चिपचिपे केश
वर्षा की प्रतीक्षा में
कहनानन्द - वीरेन डंगवाल
अपनी ही देह
मजे देवे
अपना ही जिस्म
सताता है
यह बात कोई
न नवीं, नक्को
आनन्द जरा-सा
कहन का है.
स्याही ताल (कविता) - वीरेन डंगवाल
मेरे मुंतजिर थे
रात के फैले हुए सियह बाजू
स्याह होंठ
थरथराते स्याह वक्ष
डबडबाता हुआ स्याह पेट
और जंघाएं स्याह
मैं नमक की खोज में निकला था
रात ने मुझे जा गिराया
स्याही के ताल में
एस० एम० एस० - वीरेन डंगवाल
सिर्फ लिख हुआ पुकारता है
लिक्खे की नोक ही छू सकती है
नक्षत्रों को
अब बित्ते भर के इस प्लास्टिक-बैट्री को ही देखो
गोया बना है गेंदे का गमकता फूल !
ये
लिखत का ही कमाल है
कैसा बखत आन पड़ा है
कि प्रेम और मैत्री का सुदूर संदेसा भी
आंखे भर देता है
बेईमान बकबक को महान बताने वाले
इस जमाने में
लिक्खा ही है
जो तुम्हारी सांसों में समा सकेगा
लिहाजा एक मूर्खतापूर्ण कार्रवाई के बतौर
मैं एक एस एम एस लिख भेजता हूं
पूरी दुनिया को
सभी भाषाओं में
‘भूख और अत्याचार का अन्त हो
घृणा का नाश हो
रहो सच्चे प्यार रहो
सबके हृदयों में
दुर्लभ मासूमियत बन कर’
तिनतल्ला शयनयान छह खीसोंवाली पतलून - वीरेन डंगवाल
तिलतल्ला शयनयान
छह खीसों वाली पतलून
शुरूआती सर्दी की सुबह-सुबह आठ बजे
लम्बी यात्रा वाली यह ट्रेन
झाग-भरे मुंह में टूथ बुरूश भांचता
पतली गर्दन पर डाले तौलिया फिल्मी अदा से
सण्डास के बाहर आईने में निहारता
मुदित मन छवि अपनी
खुद की समझ में दुनियादारी में सिद्धहस्त हो चुका
पंजाब से लौटता वह युवा कामगार
पिचके गालों वाला
छह खीसों वाली पतलून
तिनतल्ला शयनयान
झाड़े चला जा रहा वह छोटा बच्चा छोटे से झाडू से
मूंगफली के छिक्कल पूड़ी के टुकड़े प्याले प्लास्टिक के
और मार गन्द-मन्द
डब्बे के इस छोर से झाड़ता-बटोरता बढ़ रहा आगे
खुद में ही खेदजनक कल्मश-सा वह बच्चा
बढ़ा चला आ रहा इस तिनतल्ला शयनयान में
आई फिर वह आई
तीन बरस की बेटी नटिनी की
गालों में ऊंगली से लाल रंग के टुपके
भोली प्यारी आंखों में मोटा-मोटा काजल
तीन बरस की बेटी नटिनी की आई गलियारे में
डिब्बे के इस छोर से उस छोर तक दौड़ी
अपनी मुण्डी हिलाती साभिनय
कुछ भी बोले बगैर
फिर थोड़े करतब कुछ कठिन कलाबाजियां
पीछे से ताल ठोंकती युवती अम्मा
दफ्ती के डिब्बे पर
आगे वह तीन बरस की भोली-प्यारी बेटी नटिनी की
हैरत से सभी वाह-वाह-वाह-वाह
भेजो जी, भेजो इन्हें ओलम्पिक में
तीन बरस की बेटी नटिनी की
मैंने भी सोचा कुछ रख दूं
उस पसरी हुई
लाल टुपका लगी नन्हीं गदेली पर
‘रूपिया-दो रूपिया’
पर खुदरा न था
जेब में एक हाथ डाले सहलाता किया वह बड़ा नोट
दूसरे हाथ से बच्ची के सर पर
प्रोत्साहन-भरी थपकी
जो ताल की तरह तो नहीं
मगर कुछ बजी मेरे ही भीतर
धत्-धत् ! धत्-धत्-धत्
तिनतल्ला शयनयान
छह खीसों वाली पतलून
प्रेम के बारे में एक शब्द भी नहीं - वीरेन डंगवाल
शहद के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूंगा
वह
जो बहुश्रुत संकलन था
सहस्त्र पुष्प कोषों में संचित रहस्य रस का
जो न पारदर्शी न ठोस न गाढ़ा न द्रव
न जाने कब
एक तर्जनी की पोर से
चखी थी उसकी श्यानता
गई नहीं अब भी वह
काकु से तालु से
जीभ के बींचों-बीच से
आंखों की शीतलता में भी वही
प्रेम के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूंगा.
प्राण-सखा - वीरेन डंगवाल
समय कठिन
प्राण सखा आंखें मत फेर
टोक-टोक जितना भी जी चाहे टोक पर आंखे मत फेर !
इन दुबले पांवों को
हाथों को
पकड़-जकड़
चढ़ी चली आती है अकड़ भरी
लालच की बेल
शुरू हुआ
इस नासपीटे वसन्ता का
सर्व अधिक कठिन खेल
आच्छादित हो जाएंगे खिड़की-दरवाजे
जहरीले नीले चित्ताकर्षक फूलों से
फूटेंगी दीवारें
सोच नहीं इससे क्या होना-जाना है
समय अभी
हेर-हेर-टेर
मुझे टेर
प्राण सखा !
काव्य-शास्त्री - वीरेन डंगवाल
चुमे फटे ओंठ सन गए रस से
चैन आन पड़ा
संग नशा भी आया
ऊपर से छटा अनुप्रास की !
वाह-वाह
बार-बार होवे
इस विरोधाभस की पुनरूक्ति
होती रहे
लॉरी बेकर - वीरेन डंगवाल
स्थापत्य कुछ नहीं
सिवा मिट्टी घास काठ पानी
और तुम्हारी आत्मा के
जो रोशनी और प्रीतिकर अंधेरे से बनी है
सबसे जरूरी चीज है
वो खयाल
जिसे तुम शक्ल देते हो पहले
सिर्फ हवा में,
लिहाजा हवा भी सबसे जरूरी चीजों में एक है
बाकी सारे नगीने तो बकवास हैं
सारे प्रपंच
पाखण्ड
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Viren Dangwal) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(स्याही ताल Part 13 Link Button) #icon=(link) #color=(#2339bd)
Tags