Hindi Kavita
हिंदी कविता
भोंदू जी की सर्दियाँ - वीरेन डंगवाल Viren Dangwal Part 11
आ गई हरी सब्जियों की बहार
पराठे मूली के, मिर्च, नीबू का अचार
मुलायम आवाज में गाने लगे मुंह-अंधेरे
कउए सुबह का राग शीतल कठोर
धूल और ओस से लथपथ बेर के बूढ़े पेड़ में
पक रहे चुपके से विचित्र सुगन्धवाले फल
फेरे लगाने लगी गिलहरी चोर
बहुत दिनों बाद कटा कोहरा खिला घाम
कलियुग में ऐसे ही आते हैं सियाराम
नया सूट पहन बाबू साहब ने
नई घरवाली को दिखलाया बांका ठाठ
अचार से परांठे खाये सर पर हेल्मेट पहना
फिर दहेज की मोटर साइकिल पर इतराते
ठिठुरते हुए दफ्तर को चले
भोंदू की तरह
कविता है यह - वीरेन डंगवाल
जरा सम्हल कर
धीरज से पढ़
बार-बार पढ़
ठहर-ठहर कर
आंख मूंद कर आंख खोल कर,
गल्प नहीं है
कविता है यह.
उन्वान - वीरेन डंगवाल
हवाएं उड़ानों का उन्वान हैं
या लम्बी समुद्र-यात्राओं का
पत्तियां
पतझड़ ही नहीं
वसन्त का भी उन्वान हैं
जैसे गाढ़ा-भूरा बादल वर्षा का
अंधकार उन्वान है
चमकीली पन्नियों में लिपटे हमारे समय का
गोकि उसे रोज दिखा-पढ़ा कर
ठण्डा किया जाता है क्रोध को
जो खुद एक अमूर्त महानता का सक्षम उन्वान है
एक अद्भुत प्रतीक्षा में
सम्भल कर हाथ लगाना होता है
आग के उन्वान को
वरना वह लील सकता है पूरे पन्ने को
जो या तो कोरा है
या हाशियों तक
उलट-पुलट भरा है
और हाथ !
वह तो आदमी का ऐसा उन्वान है
जो जहां रहे
अपनी हस्ती को झलकाता है अलग ही
उसके ही नीचे
नतशिर रह आई हैं
पूरी सभ्यताएं
और
आगे भी रहेंगी
पलटे हुए रूपक में नख-दन्त कथा - वीरेन डंगवाल
बिल्ली शरीफ भी हो सकती है कोई चूहा बदमाश भी हो सकता है
चूहे मारना भी बिल्ली का काम समझा जाता है
कुछ लोग तो सिर्फ इसी गुण-धर्म के लिए
बिल्ली पालते हैं
मेरा पता पूछते-पूछते आ ही पहुंचा दुःख
नामुमकिन था उसे झांसा दे पाना
उसे रामलोटन ने बताया होगा
जो गली के बाहर
चाय-बिस्कुट की रेहड़ी लगाता है मुंह-अंधेरे से
अपने छह वर्ष के बेटे के साथ
उसको बिल्ली ने बताया होगा
जो सारी रात गश्त करती है इलाके के घरों में
सब कुछ देखती अपनी पारदर्शी आंखों से
अपनी बिल्ली भाषा में सब कुछ सुनती-समझती-अनुवाद
करती रह-रह लोगों के गंभीर रहस्य
और देर रात की खुसफुसाती टेलीफोन-मंत्रणाएं
रहस्य लोक की वह सम्राज्ञी
सिर्फ उसकी कामातुर चीत्कारें सुनाई दी हैं साल में एकाध बार
कठिन रातों में
उसे मिथुनरत नहीं देखा कभी किसी मनुष्य ने
उसकी इस शुचिता के लिए कदाचरण वाले
गली के कुत्ते भी उसका सम्मान करते हैं
प्रगट शत्रुता के बावजूद
इस पीली-पर-पीली धारीदार खाल वाली
बिल्ली का स्नेह सम्बन्ध रामलोटन के बेटे से मुझे पता है
बाप की नजर बचाकर उसको थोड़ा-बहुत दूध देते
अनेक बार मैंने उसे देखा है
इस देख लेने के लिए मुझसे कुछ अनात्मीयता भी
रखता है वह बालक
बिल्ली को तो खैर बता दिया होगा
पिछवाड़े के अभी खाली पड़े प्लॉट के
झाड़-झंखाड़ और मलबे के बीच
बिल बनाकर रहने वाले मोटे कत्थई चूहे ने
जो कबाड़ के उस ढेर का बौना बादशाह रहा आया
उसकी इजाजत के बिना नामुमकिन
किसी चुहिया का भी पूंछ फटकारना
उस तीस बाय चालीस फुट के
कूड़ा साम्राज्य में
सूअर सरीखी उसकी गरदन और लम्बी कड़ी पूंछ !
रातों में तमाम बार टूटी हुई नींद में
अचकचाए आतंक से उसे मैंने देखा
सतर्क रूआब के साथ अपने कमरे का मुआयना करते
या चांदनी रात में बित्ता भर आंगन में अकारण दौड़ते
बगैर रत्ती-भर डर या शर्म के
उसे मालूम थी मेरी सारी औकात
मेरे खाली-भरे डब्बों के सब भेद
उसे पता थे
उसके चूहा ज्ञानकोश से संचित थीं
कुतरने की तमाम आनुवंशिक प्रविधियां
जिन्हें उसने अपनी आलोचक मेधा से
नई धार दे दी थी
यों उससे भी मेरा एक शत्रुतापूर्ण मैत्री सम्बन्ध था
बीती रात आखिर मार ही डाला ताबड़तोड़ झपट्टों से उसे
पीली-पर-पीली धारीदार बिल्ली ने
नाली के मुहाने पर
हर बार की तरह
कामयाबी से फरार होने के क्षणमात्र पहले
मैं रजाई ओढे़ हूं अपने चूहा विहीन कमरे में
मेरे नथुनों में भर रही है कुतरी हुई रूई की गंध
दम घुट रहा है मेरा
मुझे उबकाई
और रूलाई दोनों आ रही हैं.
वृक्क - वीरेन डंगवाल
वृक्क कहने से बात ही बदल जाती है
गुर्दे तो बकरे के भी होते हैं
अपने पीछे ही डॉक्टर ने
लगाया हुआ है वह लाल-नीला नक्शा
जिसमें सेम के बीच जैसे वृक्कों की आंतरिक संरचना
बड़ी सफाई से दिखाई गई है
तुम डॉक्टर से बातें करते हुए भी
देख लेते हो कि
कितनी चक्करदार गलियों से
छनने के बाद
देह में दौड़ता है खून और उत्सर्जन के रास्ते पर जाता है पेशाब
सारी खतरनाक सचाइयां इतनी ही आसान होती हैं
सारी अतीव सुंदरताएं भी
अलबत्ता उन्हें आसान बनाने का काम
बेइन्तिहा जटिल होता है
और स्वस्थ गुर्दों वाले प्रसन्न ज्ञानी ही उसे अंजाम दे पाते हैं
केले का पेड़ हाथी की याद - वीरेन डंगवाल
नीचे वाले पत्ते गाढ़े-हरे
झालर-झालर हुए मार बूंदों की खाकर
तुरही जैसा बंधा-बंधा
बढ़ रहा सुकोमल पात नवेला
उस पर देखो
एक काले मोटे चींटे की दौड़ अकेली
फूल खिलेगा फिर से वह सांवला-बैंजनी
सिकुड़े बक्कल वाला
रक्तिम घाव छिपाए
भीतर की परतों में
नोकीला-नतशिर केले का फूल सजीला !
लटका हुआ सूंड पर अपनी, कुल गुलदस्ता
अजब ढंग से याद दिलाएगा हाथी की
कैसी अजब याद वह हाथी की
खेलते हुए बच्चों के कलरव बीच
कॉलोनी के पार्क में
केले का पेड़ हाथी की याद - वीरेन डंगवाल
नीचे वाले पत्ते गाढ़े-हरे
झालर-झालर हुए मार बूंदों की खाकर
तुरही जैसा बंधा-बंधा
बढ़ रहा सुकोमल पात नवेला
उस पर देखो
एक काले मोटे चींटे की दौड़ अकेली
फूल खिलेगा फिर से वह सांवला-बैंजनी
सिकुड़े बक्कल वाला
रक्तिम घाव छिपाए
भीतर की परतों में
नोकीला-नतशिर केले का फूल सजीला !
लटका हुआ सूंड पर अपनी, कुल गुलदस्ता
अजब ढंग से याद दिलाएगा हाथी की
कैसी अजब याद वह हाथी की
खेलते हुए बच्चों के कलरव बीच
कॉलोनी के पार्क में
सैनिक अनुपस्थिति में छावनी - वीरेन डंगवाल
लाम पर गई है पलटन
बैरकें सूनी पड़ी हैं
निर्भ्रान्त और इत्मीनान से
सड़क पार कर रही बन्दरों की एक डार
एक शैतान शिशु बन्दर
चकल्लस में बार-बार
अपनी माँ की पीठ पर बैठा जा रहा
डाँट भी खा रहा बार-बार
छावनी एक साथ कितनी निरापद
और कितनी असहाय
अपने सैनिकों के बगैर
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Viren Dangwal) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(स्याही ताल Part 10 Link Button) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(स्याही ताल Part 12 Link Button) #icon=(link) #color=(#2339bd)
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