Hindi Kavita
हिंदी कविता
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता - वसीम बरेलवी
Sabhi Ko Dhoop Se Bachne Ko - Waseem Barelvi
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता
कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है
हर एक मारका बातों से सर नहीं होता
मैं उस की आँख का आँसू न बन सका वर्ना
मुझे तलाश करोगे तो फिर न पाओगे
मैं इक सदा हूँ सदाओं का घर नहीं होता
हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है
किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता
मैं उस मकान में रहता हूँ और ज़िंदा हूँ
'वसीम' जिस में हवा का गुज़र नहीं होता।
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