सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता - वसीम बरेलवी Sabhi Ko Dhoop Se Bachne Ko - Waseem Barelvi

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सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता - वसीम बरेलवी
Sabhi Ko Dhoop Se Bachne Ko - Waseem Barelvi


सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता

कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है
हर एक मारका बातों से सर नहीं होता

मैं उस की आँख का आँसू न बन सका वर्ना
मुझे भी ख़ाक में मिलने का डर नहीं होता
Wasim-Barelvi

मुझे तलाश करोगे तो फिर न पाओगे
मैं इक सदा हूँ सदाओं का घर नहीं होता

हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है
किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता

मैं उस मकान में रहता हूँ और ज़िंदा हूँ
'वसीम' जिस में हवा का गुज़र नहीं होता।

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