क़तरा अब एहतिजाज करे भी तो क्या मिले - वसीम बरेलवी Qatra ab Ehitjaaj Kare Bhi - Waseem Barelvi

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क़तरा अब एहतिजाज करे भी तो क्या मिले - वसीम बरेलवी
Qatra ab Ehitjaaj Kare Bhi - Waseem Barelvi


क़तरा अब एहतिजाज करे भी तो क्या मिले
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले

हर शख्स दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ
फिर यह भी चाहता है उसे रास्ता मिले

इस आरज़ू ने और तमाशा बना दिया
जो भील मिले हमारी तरफ देखता मिले
Wasim-Barelvi

दुनिया को दूसरों की नज़र से न देखिये
चेहरे न पढ़ सके तो किताबों में क्या मिले

रिश्तों को बार बार समझने की आरज़ू
कहती है फिर मिले तो कोई बेवफ़ा मिले।

इस दौर-ए-मुंसिफ़ी में ज़रूरी नहीं 'वसीम'
जिस शख्स की ख़ता हो उसी को सज़ा मिले

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