मुझ से मुझ तक - वसीम बरेलवी Mujhse Mujhtak - Wasim Barelvi

Hindi Kavita

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मुझ से मुझ तक - वसीम बरेलवी 
Mujhse Mujhtak - Wasim Barelvi

लफ्ज़ और एहसास के बीच का फ़ासिला तय करने की कोशिश का नाम ही शायरी है। मेरे नज़दीक यही वो मक़ाम है, जहां फ़नकार आंसू को ज़बान और मुस्कुराहट को इमकान दिया करता है। मगर ये बेनाम फ़ासिला तय करने में कभी कभी उम्रे बीत जाती हैं और बात नहीं बनती। मैंने शायरी को अपने हस्सासे- वुजूद का इज़हारिया जाना और अपनी हद तक शेरी-खुलूस से बेवफ़ाई नहीं की। यही मेरी कमाई है और मुझे आपके रूबरू लाई है।
Wasim-Barelvi
ज़िन्दगी की हमाज़ेहती से आंखें चार करने में दिये की लौ की तरह हवाओं से लड़ना मेरा मुक़द्दर ज़रूर रहा, मगर कहीं कोई एहतजाजी ताक़त थी, जो मुझे संभाले रही और बिखरने से बचाये रही। मेरे शेरों में ये कैफ़ियत तलाश करना मुश्किल नहीं होना चाहिए। फूल से बात करने, कली से हमकलाम होने, घटाओं के साथ पैंग बढ़ाने, भीगते मौसमों से खुल खेलने, झरनों की मौसिक़ी में खो जाने और हर हुस्न को अपनी आंखों की अमानत जानने वाले मिजाज़े का अलमिया यह था कि जब ज़िन्दगी की धूप आंखों में उतरी, तो अज़ीयतों के लब खुल गये, मंज़र चुभने लगे और ख़्वाब आPनी बेबसी का ऐलान करते दिखे, बदलती मानवियतो के हाथों तस्वीरें बनती रहीं, बिगड़ती रहीं, लेकिन रंग भर तस्वीर में न भर पाया। क्या खोया, क्या पाया, यह तो न पूछिए, हां, इतना ज़रूर है कि हिस्सीयाती सतह पर शकस्तोरेख़्त ने मेरे शऊर की आबयारी में क्या रोल अदा किया, इसका पता आप ही लगा सकेंगे। शायरी मदद न करती, तो ज़िन्दगी के अज़ाब जानलेवा साबित हो सकते थे। वह तो ये कहिये कि ज़रिय-ए-इज़हार ने तवाजुन बरक़रार रखने में मदद की और जांसोज़ धूप में एक बेज़बान शजर की तरह सिर उठाकर खड़े रहने की तौफ़ीक़ अता की।

वसीम कैसे मेरी मंज़िलें क़रीब आतीं
तमाम उम्र इरादे मेरे सफ़र में रहे।

यह भी एक बड़ा सच है कि फ़नकार अपने अलावा सभी का दोस्त होता है, इसीलिए तख़लीक़कारी और दुनियादारी में कभी नहीं बनती। अब रही नफ़ा और नुकसान की बात, तो इसके पैमाने फ़नकार की दुनिया में और हैं, दुनियादारों की दुनिया में और। यह सब कहकर मैं अपनी फ़ितरी बेनियाज़ी और शबोरोज़ की मसरूफियत के लिए जवाज़े ज़रूर तलाश कर रहा हूँ मगर हक़ यह है कि मुतमइन मैं खुद भी नहीं, फिर भला आप क्यों होने लगे?
बहरहाल मेरी फ़िक्री शबबेदारियों का यह इज़हार पेशे ख़िदमत है। शबबेदारियों के ये इज़हारिये अगर आपकी मतजससि खिलवतों के वज़्ज़दार हमसफ़र बन सके, तो मेरी खुदफरेबी बड़े कर्ब से बच जायेगी।

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