Hindi Kavita
हिंदी कविता
मुझे बता दे मेरा दौर मुख़्तसर कर दे - वसीम बरेलवी
Mujhe Bujha De Mera Daur - Wasim Barelvi
मुझे बुझा दे, मेरा दौर मुख़्तसर कर दे
मगर िदये की तरह मुझको मौतबर कर दे
बिखरते-टूटते िरश्तों की उम्र ही कितनी
मैं तेरी शाम है , आजा, मेरी सहर कर दे
जुदाइयों की यह राते तो काटनी होंगी
कहािनयों को कोई कै से मुख़्तसर कर दे
तेरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा है
कि जैसे बचचा किताबे इधर-उधर कर दे
'वसीम' किसने कहा था कि यूं ग़ज़ल कहकर
यह फ़ूल-जैसी ज़मी आंसुओ से तर कर द
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