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हिंदी कविता
मेरी धूपों के सर को रिदा कौन दे - वसीम बरेलवी
Meri Dhoopo Ke Sar Ko Rida Kaun De - Waseem Barelvi
मेरी धूपों के सर को रिदा कौन दे
नींद में यह मुझे फूल सा कौन दे
खुद चलो, तो चलो, आसरा कौन दे
भीड़ के दौर में रास्ता कौन दे
ज़ुल्म किसने किया कौन मज़लूम था
यह ज़माना अकेले मुसाफ़िर का है
इस ज़माने को फिर रहनुमा कौन दे
दिल सभी का दुखा है,मगर ऐ 'वसीम'
देखना है उसे बद्दुआ कौन दे।
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