Hindi Kavita
हिंदी कविता
ख़्वाब देखूं, ख़्वाब-सी ताबीर हो सकती नहीं - वसीम बरेलवी
Khwab dekhun, khwab si tabeer ho sakti nahi - Waseem Barelvi
ख़्वाब देखूं, ख़्वाब-सी ताबीर हो सकती नही
जो बदल जाये, मेरी तक़्दीर हो सकती नही
मेरी जािनब हों निगाहे, दिल मे कोई और हो
रौंदते जाते हो रिश्ते , तोडते जाते हो दिल
इस तरह तो कोई भी तामीर हो सकती नही
कुछ भी सुनने के लिए राज़ी नही है सािमईन
आज जलसे मे कोई तक़रीर हो सकती नही
मै मुख़ाितब हूं, तो मेरा नाम भी होगा कही
इस क़दर बेरबत यह तह्रीर हो सकती नह
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