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हिंदी कविता
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं - वसीम बरेलवी
Khul Ke Milne Ka Saleeka Aapko Aata Nahi - Waseem Barelvi
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं
और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं
वो समझता था उसे पा कर ही मैं रह जाऊँगा
जा दिखा दुनिया को मुझ को क्या दिखाता है ग़ुरूर
तू समुंदर है तो है मैं तो मगर प्यासा नहीं
कोई भी दस्तक करे आहट हो या आवाज़ दे
मेरे हाथों में मिरा घर तो है दरवाज़ा नहीं
अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों
और जब ऐसा किया मैं ने तो शरमाया नहीं
उस की महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिन के चराग़
मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता नहीं
तुझ से क्या बिछड़ा मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई
अब कोई मौसम मिले तो मुझ से शरमाता नहीं।
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