Hindi Kavita
हिंदी कविता
हद से बढ़ के तअल्लुक़ निभाया नहीं - वसीम बरेलवी
had se badh ke taalluq nibhaaya nahin - Waseem Barelvi
हद से बढ़ के तअल्लुक़ निभाया नहीं
मैंने इतना भी खुद को गंवाया नहीं
जाते जाते मुझे कैसा हक़ दे गया
वो पराया भी हो के पराया नहीं
प्यार को छोड़ के बाक़ी हर खेल में
जितना खोना पड़ा, उतना पाया नहीं।
वापसी का सफ़र कितना दुश्वार था
चाहकर भी उसे भूल पाया नहीं
उम्र सारी तमाशों में गुज़री मगर
मैंने खुद को तमाशा बनाया नहीं
ज़िन्दगी का ये लम्बा सफ़र और 'वसीम'
ज़ेब में दो क़दम का किराया नहीं।
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