अब ऐसा घर के दरीचों को बन्द क्या रखना - वसीम बरेलवी Ab Aisa Ghar Ke Dareechon Ko - Waseem Barelvi

Hindi Kavita
0

Hindi Kavita
हिंदी कविता

अब ऐसा घर के दरीचों को बन्द क्या रखना - वसीम बरेलवी
Ab Aisa Ghar Ke Dareechon Ko - Waseem Barelvi


अब ऐसा घर के दरीचों को बन्द क्या रखना
हवा के आने का कोई तो रास्ता रखना।

तअल्लुक़ात कभी एक से नहीं रहते
उसे गंवा के भी जीने का हौसला रखना
Wasim-Barelvi
जब अपने लोग ही आएंगे लूटने के लिए
तो दोस्ती का तक़ाज़ा है घर खुला रखना

यह कुरबतें ही बड़े इम्तिहान लेती हैं
किसी से वास्ता रखना तो दूर का रखना

तमाम झगड़े यहां मिल्कियत के होते हैं
कहीं भी रहना मगर घर किराये का रखना

बड़े बड़ों को यहां हाथ तापना होंगे
जले मकानों को कुछ दिन हूँ ही जल रखना

'वसीम' दिल्ली की सड़कों पे रात भारी है
सिरहाने मीर का दीवान ही खुला रखना।

(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Wasim Barelvi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(मेरा क्या - बरेलवी) #icon=(link) #color=(#2339bd)

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!