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हिंदी कविता
आवाज़ से लबों का बहुत फ़ासिला न था - वसीम बरेलवी
Aawaazo Ka Labon Se Bahut Faasila Na Tha – Waseem Barelvi
आवाज़ से लबों का बहुत फ़ासिला न था
लेकिन वो ख़ौफ़ था कि बोलता न था
आंसू को ऐतबार के क़ाबिल समझ लिया
मैं खुद ही छोटा निकला तेरा ग़म बड़ा न था
उसने ही मुझको देखा ज़माने की आंख से
उन अजनबीयातों के सताये हैं इन दिनों
जैसे कभी किसी से कोई वासिता न था
हर मोड़ पर उम्मीद थी, हर सोच आरज़ू
खुद से फरार का भी कोई रास्ता न था
अपना यह अलमिया है कि हम ज़ेहनी तौर पर
उस शहर में रहे, जो अभी तक बसा न था
कैसी गिरावटों पे खड़ी थीं, मगर 'वसीम'
ऊँची इमारतों से कोई पूछता न था।
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