महफिल-ए-शमा - अशोक गौड़ अकेला Mahfil-A-Shama - Ashok Gaur Akela

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महफिल-ए-शमा - अशोक गौड़ अकेला (पार्ट १ )
Mahfil-A-Shama - Ashok Gaur Akela (Part 2)

किससे कहूँ बता..."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला

नगमा-ए-दास्तान, किससे कहूँ बता

तेरी नहीं तो फिर किसकी है रज़ा

दरख्तों से गिरे पत्ते, गम किसको सुनाये

हाल मेरा ऐसा, किसी से कह न पायें

पसीना था गुलाब, कभी मेरे चमन का

आती थी बार-बार, वह मेरे कूचे से

रूठेगी कब तक

चाँदनी-चंदा, चकोर से

मिलाओ न निगाह अपनी

किसी दिल फरेब से

हो रही बेताब नजरें....."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला

 

हो रही बेताब नज़रे

उनके नज़र के सामने

है हलाहल आज

अपने नज़र के सामने

हो रहीं बेताब.

आये कैसे, जाये कैसे कोई

उनके नज़र के सामने

घायल हुए नज़र से

खंजर नहीं है सामने

हो रहीं बेताब..

 

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आबरू अब तक बची है

उनके नज़र के सामने

नज़रों से नज़र न मिलें जब

वह हों नज़र के सामने

हो रहीं बेताब..

है बड़ा खतरा कि जब

वह हों नज़र के सामने

गश खाकर गिर चुके

कितने नज़र के सामने

नज़रों से पी मदहोश हूँ

उनके नज़र के सामने

कातिल है तेरी नज़र

कह सकता नहीं

नज़र के सामने

हो रहा बेकाबू ज़िगर

उनके नज़र के सामने

प्यार करता हूँ बखूबी

कह सकता नहीं

नज़र के सामने

  

दिल मेरा लूटकर......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला

 

दिल मेरा लूटकर

पैगाम मुझको दे गए

करता हूँ मोहब्बत तुझसे

हैरान मुझको कर गए

दिल मेरा लूटकर...

नज़रों के तीर से

दिल को घायल कर गये

मरहम किसी के हाथ से

फिर वह भिजवा गए

दिल मेरा लूटकर....

क्या खता थी हमारी

हम पूछकर भी क्या करें

मुस्कराकर फिर अदायें

वह मुझे दिखला गए

दिल मेरा लूटकर....

दिल पर निशाना

आज फिर वह कर गये

दौर उल्फत में तबाही

दिल का हम करते गए

दिल मेरा लूटकर...

हाल है अब यह तबाही

नींद आती है नहीं

बेचैन हूँ फिर देखने को

दीदार अब होता नहीं

दिल मेरा लूटकर...

डरता हूँ रूसवाये मुहब्बत

जिन्दगी के खेल में

दुनियाँ में होगी जलालत

इस मुहब्बत के खेल में

दिल मेरा लूटकर....

गर्दिशे उम्मीद में

जीता रहा हूँ आज तक

फूल अब कैसे खिलेगा

"अकेला" आशियाने में


जुवाँ पर जो आके रूक गई......."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

जुवाँ पर आके जो रूक गई

वह मेरे दिल में समाई हुई है

चाहो न मुझको तो कुछ भी नहीं

अपनी चाहत से पूँछो तो खुद हो यकी

मिलती नहीं हैं नजरें तेरी

निगाहें शर्म से झुक जाती क्यों तेरी

दिल क्यों धड़कता है रह-रह तेरी

जरा खुद से तो पूँछो, तो हो यकी

कुछ भी कहो तुम अपने लिए

लगती हो तुम मुझको कितनी हँसी

चंदा भी शर्माये, जब देखे तुझे

चाँदनी भी देखो लज़ाई हुई है

जुवाँ पर आके.....

सम्हल- सम्हल कर चल, ओ दिले नादान

राह है कठिन.. मंजिल है दूर

जिन्दगी है छोटी.. . धूल गर्द में सनी

चलता चला चल. चलता चला चल

 

सम्हल- सम्हल कर चल

गुनाह से तू डर

कर न जिन्दगी से

शिकवा तू अब

चलता-चला चल..

 

सम्हल- सम्हल कर चल ओ दिले नादान - २

यह जिन्दगी और जिन्दगी का सफर ..

है... किसलिए किसलिए

राहों में कभी फूल, कभी कॉंटें,

है तो.... किसलिए- किसलिए

सम्हल- सम्हलकर चल.

 

सोचता हूँ यही, दिन-रात

कभी गर्म कभी सर्द है हवायें

कभी धूप, कभी छाँव की है फिजायें

कभी नजदीकियाँ, कभी दूरियाँ

कैसी-कैसी है यहाँ मजबूरियाँ

 

सम्हल- सम्हल कर चल

गुनाह से तू डर

कर न जिन्दगी से

शिकवा तू अब

  

आजा ऐ ! महफिल-ए-शमा......."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

आजा ! आजा !! ऐ महफिल-ए-शमा

महफिल, तेरा इन्तज़ार करती है

तेरे न आने से... मौसम, बेमौत मरती है।

हसीन तेरे गलियों के फूल,

 

काँटो से नज़र आते हैं

आशिक है जो तेरे इतने बेमौत मारे जाते है

आजा ! आजा!! ए महफिल-ए-शमा

महफिल तेरा इन्तज़ार करती है

काश! तुमको यह खबर होती

मौसम तेरा इन्तजार करते हैं।

बहारें भी तुझपर निसार होते हैं

 

शाम-ए-शहर तुझको सलाम करते है

आजा! आजा!! ऐ महफिल-ए-शमा

महफिल तेरा इन्तजार करती है

 

तेरे आने पर, चाँद-तारे भी रश्क करते हैं।

अम्बर से उतरने को, पल-पल तरसते है

शबनम रातभर तेरा, यूँ ही, इन्तजार करती है।

दिन निकलते ही, अपने घर को लौट जाती है

 

आजा! आजा !! ऐ महफिल-ए-शमा

महफ़िल तेरा इन्तज़ार करती है

खुशनसीब हो तुम इतनी,

तुम पर कितने मरते है

आशिकों के दिल,

प्यार में ही जलते है

बहार तुमसे दुनियाँ की

नज़ाकत की तू रानी है

फसल-ए-बहार मौसम ही

तेरे प्यार की निशानी है

आजा! आजा !! ऐ महफिले-ए-शमा

महफिल तेरा इन्तजार करती है

  

दिया जले तो जले.."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

दिया जले तो जले

जब अँधेरी रात हो

दिल जले तो जले

जब जवाँ दिल साथ हो

दिया जले तो जले

ठंडी-२ हवा चले

दीवानों के दिल मचले

दिल जले तो जले

जब दिल में प्यार पले

दिया जले तो जले.

मौसम बदले न बदले

मौसम सुहाना हो

तेरी हो याद दिल में

दिल में याराना हो

दिया जले तो जले..

 

तेरा मेरा याराना

जीने का बहाना है

दुनियाँ माने न माने

प्यार खुशी का खजाना है

दिया जले तो जले…

  

मैं तुझे सराहूँ..."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

मैं तुझे सराहूँ, तू मुझे सराहे

यह मेरा दीवानापन है या दिल्लगी

तूही बता दें, ऐ मेरी जिन्दगी

सराहे न सराहे कोई

मैं तुझे सराहूँ

जिन्दगी की ख्वाबों में

मैं तुझे सजाऊँ

 

तू मेरे जिन्दगी का पहला पहला मीत है

तू मेरे जिन्दगी का पहला- पहला गीत है

नज़रों ने देखा तुझको

नज़रों ने परखा तुझको

तुम मेरे प्यार की

पहली कड़ी हो

 

दिल की धड़कन से टटोला तुझको

तुम मेरे ख्वाबों की पहली तस्वीर हो

 

तुम सुन्दरता में सुन्दर से सुन्दरतम् हो

मेरी निगाहों और दिल के अन्दर हो

बागों के बहारों में मौसम के नज़रों में

तेरा शबाब बेमिसाल हैं

 

तू मेरे जिन्दगी का, पहला- पहला मीत है

तू मेरे जिन्दगी का, पहला पहला गीत है

  

जिन्दगी चार दिन की......."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

जिन्दगी चार दिन की, किसी से प्यार कर ले

कब किसका निकल जाये, जनाज़ा

तू अभी से सोच ले

 

अभी आधी रात है बाकी

रह न जाये प्यास बाकी

आता है देखकर शरूर

अब कैसा इन्तज़ार साकी

 

अभी तो होश है बाकी

लुटा न अबतक साकी

पैमाना छलक न जाये

न हो जाये खाली

 

आज की रात जवां

है मदहोश समां

मैं खो जाऊँ तुझमें

तू खो जाये मुझमें

 

अभी आधी रात है बाकी

रह न जाये प्यास बाकी

तू मेरा प्यार ले ले

मै तेरा प्यार ले लूँ

 

तू दिल मेरे नाम लिख दे

मैं सारी उमर तेरे नाम लिख दूँ

दिल क्या चीज है

यह सांस तेरे नाम लिख दूँ

 

जिन्दगी चार दिन की है

किसी से प्यार कर ले

'अकेला' जिन्दगी अपने नाम लिख ले

  

नज़रों के पैमाने से.. "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

नज़रों के पैमाने से.... कब तक पिलायेगी

सारी दुनियाँ को..... . खबर हो जायेगी

 

जीना मुश्किल होगा दुनियाँ की नज़रों में .

इतना न गिराना चाहूँ.. लोगों की निगाहों में

 

क्यों तू बुलायें मुझे चाँदनी रातों में

ठंडी-ठंडी हवा बहे.. मौसम के इशारे से

 

खुशबू रात-रानी की नस नस में बसे

अदा तेरी मुझे खूबसूरत गज़ल सी लगे

 

शाम से रात हुई, रात से सवेरा

मेरे दिल से न गया, तेरी यादों का बसेरा

 

जहाँ भी तू जाये, वहाँ मेरा दिल

अब जाना है, तू बड़ी कातिल

 

कभी मेरे दिल से खेले

कभी मेरे जज़बात से

मेरे दिल पर डाका डाला

नज़रों के वार से

 

अभी तू मान जा

खुद पर अहसान कर

दिल की दिल में रहने दे

नजरों की नज़रों तक

 

नजरो के पैमाने से, कब तक पिलायेगी

'अकेला' क्या,

सारी दुनियाँ को खबर हो जायेगी

  

एक दरिया आग की....."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

एक दरिया आग की, दूजा है पानी

प्यार में आती है, फिर भी रवानी

 

एक शोला, एक शबनम

रह रही थीं साथ में

दास्तान किससे कहें

जब कुछ न लगे हाथ में

 

दिल में तपन प्यार की

आँखों में शबनम मोती सी

दोनो ही हैं साथ पर

एक गगन की, दूजे सागर की

 

एक दरिया आग की..

 

पत्थर से झरे, झरने का पानी

दोनो एक दूजे में, दें रवानी

एक दरिया आग की, दूजा है पानी

प्यार में आती है फिर भी रवानी

 

नदिया बही मिलने समुन्दर को

एक मीठा, दूजा खारा पानी

फिर भी दुनियाँ दीवानी

एक दूजे को न जानी

 

एक दरिया आग की दूजा है पानी

'अकेला' प्यार में आती है, फिर भी रवानी

 

किस-किस को डसा है....."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

आते है मुझे रोज़, बुलाने वह शाम को

करते है बदनाम मुझे, हर गली मुकाम पे

 

यह क्या जुनून है, प्यार का, बता मुझे

किस-किस को डसा है, अपने प्यार के फ़न से

 

कत्ले आम हो गई है, दीवानों की जिन्दगी

दिखते नहीं क्यों खून के छींटे, निगाह से

 

जलते है जलने वाले, शमां की चाह में

'अकेला' भी जल रहा, किसी की चाह में

 

कैसे भूल जाऊँ ......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला

 

कैसे भूल जाऊँ मैं, तेरे चेहरे का शबाब

तू है मेरी नज़रों में, कितनी लाज़वाब

 

आता है शरूर, तेरे नज़रों के जाम से

फैली है फिजां में बहार, तेरे आने से

 

भटके कई हैं राही, तेरे खुश्बू-ए-चमन से

हटती नहीं निगाह क्यों, तेरे बदन से

 

तेरे आँचल से खेलती हैं, मदमस्त हवायें

रिमझिम फुहार से हैं, मस्त फिजायें

 

तरसे हैं दीवाने, तेरे दीदार-ए-नज़र को

धरती पर चाँद उतरा, खुदा के फजल से

  

जवानी ने क्या-क्या......."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

जवानी ने क्या-क्या गुल खिलायें

देखी तेरी दीवानगी

दिलों में अब तक दबी थी

सरगम की ताज़गी

 

रूप की रानी है

तेरे सांसों से है सवेरा

इन्तज़ार है वादियों में

जहाँ तेरा है बसेरा

 

बादलों के बीच से

छन-छन कर आ रही है चाँदनी

तन्हाइयों में बैठकर

गाऊँ मैं कैसी रागिनी

 

वक्त की सरगर्मियाँ

यादों की फिसलती तसवीरें

बदल रही है सांसों की

सरगमी लकीरें

 

मौसम के बदले है रूख

रह-रह गुलशन के

रूठी है डालीयाँ

तो खिले कहाँ... . कलियों के गुंचे

 

इन्तजार की घड़ियों में

तेरा ही तो बसेरा है

तुम ही अपनी नहीं तो

क्या तेरा, क्या मेरा है

 

रूप की रानी है तू

तेरे सांसों से सवेरा है

इन्तज़ार है 'अकेला' जहाँ तेरा बसेरा है

  

मंद-मंद यह हवा......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

मंद-मंद यह हवा चली

तेरे पग-पग पड़ने से

कलियों ने मुस्कान बिखेरे

तेरे होंठ के हिलने को

 

झूम उठी लता लतिकायें

तेरे कान के कुण्डल से

घटा झूम तुझे देखने आई

तेरे जुल्फ़ धनेरे जो

 

चंचल सावन बरस गई

अंग-अंग दर्शाने को

चंचल चितवन खुले जो तेरा

दिल मेरा धड़काने को

 

चंचल नयन बावरे तेरे

चाँदनी देख लजाई रे

फूलों पर छिटकी शबनम

तुझे देख बौराने को

 

मंद-मंद यह हवा चली

पग के नूपुर बजने से

नयनों से पिला गई जो मदिरा

दिल मेरा तड़पाने को

  

नयनों के दो मोती ....."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

नयनों के दो मोती, कब तक अलग रहेंगे

प्यार के डोर में बँध जा, नयन से नयन मिलेंगे

नयनों के दो मोती..

 

फूलों की पंखुडियाँ कब तक आबाद रहेंगी

जब तक दो लबो में प्यार की मुस्कान रहेंगी

 

चाँदनी धरा पर मुस्कायें

जब झील में चाँद दिखे

प्रेम का यह सुखद मिलन

रोशन जग को करे

नयनों के दो मोती..

 

यह दिल है दरिया और प्यार है सागर

खारे आंसू में भी, मिलेंगे प्यार के मोती

नयनों के दो मोती

 

'अकेला' कब तक अलग रहेंगे

  

चंदा देखूँ रात-रात भर........"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

चंदा देखूँ रात-रात भर

पर लगा न हँसी

नज़रों में तस्वीर तेरी

मुदत से जो थी बसी

आज हो तुम सामने

मेरे दिल में आस जगी

 

तेरे मुसकानों से

सारा जग हँसी लगे

तेरे कदमों की आहट से

पग-पग फूल खिलें

 

कश्ती लगी किनारे

मझधार में जो थी फँसी

तेरे सांसो की सरगम से

दिल की धड़कन, जवाँ

 

बहकने लगे चांद तारे

जब भी गेसू तेरे खुले

खिल-खिला खिली हर कली

जब भी तेरे होंठ हिले

 

'अकेला' चंदा देखूँ रात-रात भर

पर लगा कभी न हँसी

नयनों में तस्वीर तेरी

मुदत से जो थी, बसी

  

मुझको खुद पर एतबार नही...."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

मुझको खुद पर एतबार नहीं, क्या करूँ

प्रेम का तुझसे मैं बोलो बोलो

इज़हार कैसे करूँ कैसे करूँ, कैसे करूँ,

 

बदनाम हो चुकी हैं प्यार की गलियाँ

डर लगता है इसलिये, चलना तेरी गलियाँ

माना कि प्यार तेरा, बदनाम नहीं है

फिर भी मुझे अपने पर, एतबार नहीं है

 

चाहत है हर किसी को प्यार तो मिले

मुझको अपने नसीब पर, एतबार नहीं हैं

 

खुदा ने प्यार से फूलों को खिलाया

जफा की राह चल, लोगों ने डराया

 

तू और तेरा प्यार, रहे सलामत,

खुदा की कसम

मैं जी लूँगा खुशी से, तेरी चाहत की कसम

अकेला' मुझको नहीं एतबार, क्या करूँ..

  

लेता हूँ तेरा नाम मैं......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

लेता हूँ तेरा नाम मैं, सुबह और शाम

धड़कता है अब यह दिल, तेरे ही नाम

 

जब भी आता है, जुबाँ पर तेरा नाम

धड़कता है यह दिल, सुबह और शाम

 

नाकामियों ने पहरे तमाम लगाये

उम्मीदों के चमन में फूल तूने खिलाये

 

आता है सुबह-शाम, अंबर से यह पैगाम

चांद तारों में है खुशबू, फूलों के जहन में

 

प्यार की दौलत है चमन की खुशबू

भँवरे ही जानते हैं, चमन की खुशबू

 

परिन्दों ने उड़ उड़कर उमंगो को सीख दी

कोयल की कूक ने, गीतों को राग दी

 

तेरे दिल की धड़कन, गीत गाते हैं प्यार के

नज़रों से जो कोई पिये, तो खुद ही जान ले

 

'अकेला' लेता हूँ तेरा नाम, सुबह और शाम

धड़कता है अब यह दिल, तेरे ही नाम

  

आमों के बौरों से......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

आमों के चौरों से चली पुरवाई

कोयल की कूक से, बसंत ऋतु आई

 

सांसों की सरगम से, तेरा-मेरा साथ है।

पथरीली राहों पर, मुझे चलने का बुखार है

आमों के बौरों से..

 

वादियों ने पैगाम भेजा, प्यार के मधुमास की

हम तो दीवाने हुए तेरी, जुल्फ की घटाओं की

 

बुलबुल की तान मुझे, फीके लगने लगे

नयना तेरे द्वरश को, रह-रह मचलने लगे

आमों के बौरों से...

 

सिंदूरी आभास हुआ, अफसाने में तेरे

शबनम शर्मा के छुप गई, सिंदूरी रंग से

 

आमों के बौरों से चली पुरवाई

वसंत ऋतु कदम-कदम, तेरी करे अगुवाई

  

जलता है बदन क्यों....."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

जलता है बदन क्यों, तेरी आशिकी में

दिलवर से बुझे क्यों आग तन-मन के

 

क्यों बनी है दूरियाँ तन-मन अलग है

आशिकी में जल-जल यह तन धुवाँ है

 

करता हूँ मैं सदा हुश्न की बंदगी

आती है फिजां में, तुझसे रवानगी

 

फिजां के फूल से, घोला रंग और खुशबू

छन-छन कर आ रही है तेरे जिस्म से खुशबू

 

मुस्कराई हैं अभी बाग में कलियाँ

भँवरे गुनगनाकर बजा रहें हैं तालियाँ

 

तेरे दुपटट्रे को उड़ा, हवा कर रहा अठखेलियाँ

आशिकी में नजरें, रह-रह करे ठिठोलियाँ

  

सांझ ढली, फिर रात......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

सांझ ढली, फिर रात हो गयी

किसने ली अँगड़ाई

बेचैनी ने करवट बदली

रात.... यूँ ही गँवायी

सांझ ढली, फिर रात..

 

अन्जाने में जाम पी गया

नज़र से किसी हसीना की

रात-रात भर करवट बदली

चैन गई जज़बातों की

सांझ ढली, फिर रात..

 

कस्में-वादे तोड़ गयी वह

तूफां दिल में छोड़ गयी वह

नादानी अपनी ही थी

बैठ गये.... कश्ती में उसकी

सांझ ढली, फिर रात..

 

पीछा न छोड़ा नज़र ने उसकी

जितना भी हम दूर गये

नज़रों-नज़रों से हम अबतक

न जाने कितना पी भी चुके

सांझ ढली, फिर रात......

 

मैंने तो बस जाम पीया था

दिलकश तेरे नज़रों की

पैमाना बस हाथ रह गया

ज़ाम तो तेरी नज़र ले गयी

सांझ ढली, फिर रात....

  

मौत से मरता नही......."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

मौत से मरता नहीं है आदमी

जान देकर ही अमर होता है आदमी

मौत से मरता नहीं.

 

जीने वाले मौत से डरा नहीं करते

ज़हर पीकर भी अमर रहते हैं

मौत से मरता नहीं..

 

प्यार करने वाले मौत से क्यों डरे

शमां पर परवाने ही जलते हैं

मौत से मरता नहीं..

 

खुदा का शुक्र है प्यार अबतक है जिन्दा

जिन्दादिल ही प्यार किया करते है

मौत से मरता नहीं.

  

उतरकर कौन आया......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

उतरकर कौन आया दिल में हौले-हौले

हो रहा है दिल में प्यार.. . बल्ले-बल्ले

उतरकर कौन आया..

 

शमा दिल की जलाके जाना हौले-हौले

दिल में कुछ हो रहा है..... बल्ले-बल्ले

उतरकर कौन आया..

 

जान' जा रही है नज़र मिलने से हौले-हौले

ज़िगर में शरूर आ रहा है.. . बल्ले-बल्ले

उतरकर कौन आया...

 

रूख से सरकती है नकाब हौले-हौले

दम निकल रहा मेरा बल्ले-बल्ले

उतरकर कौन आया..

  

मैने खरीदा है गम......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

मैने खरीदा है

गम को उधार में

मिलती है, कभी-कभी

देखा है प्यार में

मैने खरीदा है गम..

 

गम भी है,

गम की इन्तजारी में

जिन्दगी गुजर रही

'अकेला' बेकरारी में

मैनें खरीदा है गम.

 

जिन्दगी कट रही

अपनी इन्तजारी में

दुकानदारी चल रही

अपनी उधारी में

 

मैने खरीदा है गम को उधार में

मिलता है यह कभी-कभी 'अकेला' की दुकान मे

 

गम भी अलग अलग हैं

लोगों की नसीब में

रखने को लोग रखते हैं

अपने करीब में

मैने खरीदा है गम

 

जो लिखी है कलाम-ए-दर्द स्याही से

न होगी कभी फ़ना, 'अकेला' की कलम से

 

कभी होती है शायरी, तेरे लबो की शान पर

होती हैं मेहरबान जब, किसी के नाम पर

 

करता है इन्तजार कोई, तेरी आन में

निकली है जान फिर, तेरी शान में

 

तेरे बगैर जवानी भी, क्या करे

हुस्न की तस्दीक, जवानी ही करे

  

हर आईने में दिखता है........"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

हर आईने में दिखता है.... चेहरा

हर आईने में एक सा चेहरा नहीं दिखता

हर आईने में दिखता है...

 

होने को हर दिल में, खुदा होता है

बता. . वह क्यों बाहर नहीं दिखता

हर आईने में दिखता है..

 

कहने को

हर दिल में प्यार होता है

पर दिल को, हर दिल से प्यार नहीं होता

हर आईने दिखता है....

 

हर फूल में खुशबू होती है

पर हर खुशबू एक सा नहीं होता पर

हर आईने में दिखता है..

 

माना

हर दिल, दिल होता है।

पर हर दिल में गिला नहीं होता

हर आईने में दिखता है...

 

अपना दिल. 'अकेला' जैसा भी हो.

तेरे दिल जैसा दिल नही मिलता

हर आईने में दिखता है…

 

वह मेरी हों, तो क्यों हों...."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

वह मेरी हों, तो क्यों हों

उनको क्यों बदनाम करें

प्यार भले वह निभा न पायें

उनको क्यों बदनाम करें

वह मेरी हों, तो क्यों हों.

 

प्यास हमारी, दूर न हो तो

नदिया को क्यों, बदनाम करें

फूल हमारी, चाहत भर है

फूल को क्यों बदनाम करें,

वह मेरी हों, तो क्यों हों..

 

बादल का है, काम बरसना,

घर बरसे न मेरे तो

उनको क्यों बदनाम करें

वह मेरी हों, तो क्यों हों...

 

चाहत सबकी अलग-अलग है।

उनकी चाहत को, क्यों बदनाम करें

वह मेरी हों, तो क्यों हों..

  

दो नयनों में प्यार लिये......"महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

दो नयनों में प्यार लिये

ओंठों पर मुस्कान लिये

बाग-बाग में फिरती हो

बोलो क्या अरमान लिये

दो नयनों में प्यार लिये.....

 

तन सुन्दर, महकी सांसो में

छन-छन नूपुर तेरे पग के

झंकृत करती मन वीणा के

अनछुए हर तार-तार के

दो नयनों में प्यार लिये...

 

ओंठ खिलें कलियां मुस्काई

गीत-गज़ल के बोल बन गये

विस्मृत कर दें, दर्द के पहलू

और अतीत के प्यार जगा दें

दो नयनों में प्यार लिये..

  

हो...बैरी पिया....."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

हो..... बैरी पिया, पिया, पिया

नयना नहीं लड़ाना, लड़ाना, लड़ाना

अभी तो है मोरी, बाली रे उमरिया

बैरी पिया पिया पिया...

 

खन खन मोरा कंगना खनके

ऊपर से बैरिन, चूड़ी झनके

छनन-छनन मोरी पायल, छनके

ऐसे में मोरा जियरा धड़के

बैरी पिया... पिया-पिया.

 

कैसे मैं तुझको समझाऊँ

खुद को कैसे, मैं भी मनाऊँ

नहीं आना अभी, मोरी अटरिया

अभी तो है मोरी, बाली रे उमरिया

बैरी पिया... .. पिया-पिया..

 

कोई लगाये दिल पर निशाना

कोई करे, प्यार का बहाना

कोई कहें मैं, तेरा रे दीवाना

समझ न आये, यह अफसाना

बैरी पिया पिया, पिया...

 

बैरी है सारा जमाना

ओ पिया पिया

नयना नहीं लड़ाना, लड़ाना

अभी तो है मोरी बाली रे उमरिया

बैरी पिया पिया, पिया…

  

चार दिन की जिन्दगी है.."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

चार दिन की जिन्दगी है।

तू यहाँ, मेहमान है

प्यार से मिल ले अगर

मुझ पर तेरा अहसान है

चार दिन की जिन्दगी है.

 

फूल खिल मुरझा गये

खुशबू तो फैले हर तरफ

चन्द लम्हें प्यार के

जीने की रौनक है, मगर

चार दिन की जिन्दगी है...

 

आँसू अगर हों आँख में

सुख से गिरें, तो हम जियें

नज़रों के तुम हो सामने

तो प्यार से हम जी सकें

चार दिन की जिन्दगी है..

 

सर्द मौसम क्या करें

फूल खिलते बाग में

रौनके महफिल यहाँ है

आज तेरे साथ में

चार दिन की जिन्दगी है...

 

बागवाँ खुश है अगर

गुल खिले गुलशन तले

खुशबू फैले रात भर

रात-रानी जब खिले

चार दिन की जिन्दगी है....

  

"जरा एक बार फिर..."महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला 

जरा एक बार फिर

घूँघट उठाके देख लूँ

जी चाहता है, जी भर

तेरी प्यारी नज़र में, आज खों जाऊँ

जरा एक बार फिर.

 

न मय मैंने पी थी

न पीने की तमन्ना है।

पर तेरी नज़र ने

जो पिलाया है

तेरी दिल की धड़कन ने

जो जो सुनाया है

उसी धड़कन की कसम..

जरा एक बार फिर.. घूँघट उठाके देख

जरा एक बार फिर..

 

रातें आई बहुत, सपने भी आये बहुत

पर नज़रों का नज़रा, देखा जो तेरा

दिल का खजाना पाया जो तेरा.....

 

लब का फसाना, बनाया जो मेरा

उसी फसाने की कसम

जरा एक बार फिर घूँघट उठा के देख लूँ

 

जुल्फों की छाँव में मुझको सुलाया जो

धड़कते सीने से, मुझको लगाया जो

श्वांसो की खुशबू, मेरे जिगर में बसाया जो

उसी खुशबू की कसम

जरा एक बार फिर.. .घूँघट उठा के देख लूँ

 

दुबारा आयेगी न रात यह

दुबारा होगी न बात यह

सुहागरात की रात है, जानम

इसी सुहागरात की कसम

जरा एक बार फिर... घूँघट उठा के देख लूँ

तेरी नज़रों को चूम लूँ .

 

 

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