पूज्य ताताजी,
याद करती हूँ जब भी आप को तो मेरी स्मृतियों में मोंगरा महक उठता है। आप सुबह ही क्यारी से मोंगरे के फूल तोड़ कर तकिए के पास या मेज पर रख लेते थे... महकता रहता सारा दिन आपका कमरा।
आज तक हम ये रहस्य हम नहीं समझ पाते कि वो आपकी चादर,कपड़ों,से दिव्य महक कैसे आती थी । आप कपड़े धोने को देते तो हम नाक लगा कर सूँघते कि ये पसीना चन्दन सा इतना कैसे महकता है... हम हैरान होते ..सच में दिव्य पुरुष ही थे आप !
बहुत सोच समझ कर कम बोलते और बेहद नफ़ासत पसन्द व्यक्तित्व था आपका। आपके बोलने, चलने, खाने-पीने, हंसने सभी में आभिजात्य झलकता।
मुझे याद है आपके पास कम ही कपड़े होते थे पर उस समय भी ब्राँडेड शर्ट ही पहनते थे । कपड़ों को इतना संभाल कर पहनते कि वो दसियों साल चल जाते ।
आपके जाने के बाद इतने कम कपड़े थे कि उनको बाँटने में कोई परेशानी नहीं हुई मुझे । मैं अक्सर अपनी बेटी से कहती हूँ कि मेरे बाद तुम्हारी हालत खराब हो जाएगी मेरा कबाड़ बाँटते- बाँटते ।
ताताजी की बैडशीट में एक भी सिलवट हो तो सो नहीं सकते थे। नौकर-चाकर होने पर भी अपनी बैडशीट खुद बिछाते और फिर सेफ्टिपिन्स से चारों तरफ से खींच कर पिनअप कर देते। कभी जब शीट गन्दी देख अम्माँ बदलतीं तो पिन निकालते- निकालते भुनभुनाती रहतीं। ये जीन्स मेरे बेटे में आए हैं बचपन से ही वो भी उठ-उठ कर चादर की सिलवटें निकालता रहता है।
आप भागलपुरी चादर सिर से पैर तक तान कर सोते थे। बेटी मिट्ठू जब छोटी थी और जब मैं घर जाती तब चुपके से वो आपकी चादर खींच कर उतार लेती और लेकर भाग जाती ।उसे आपकी चादर का सॉफ्ट टच और खुशबू बहुत भाती थी । नाक लगा कर सूँघती, गाल पर लगा कर कहती `ममा कितना सॉफ्ट-सॉफ्ट!’ जब मैं वापिस मेरठ लौट रही थी पैकिंग करते समय आपने वो चादर मुझे देकर कहा`रख लो बेटी मिट्ठू को बहुत पसंद है ‘कहते आपका चेहरा ममता और भावुकता से भीग गया था आपमें बहुत ममत्व था।
बस एक रोटी ,दो चम्मच चावल ही खाते थे। अम्माँ जब आपकी थाली लगातीं तो लगता जैसे ठाकुर जी का भोग लगा रही हों कपड़े से पोंछने के बाद अपनी धुली सूती धोती के पल्लू से भी एक बार पोछतीं फिर रच-रच कर अपने हाथ का अमृततुल्य स्वादिष्ट भोजन बिना हड़बड़ी के बहुत धैर्य से लगातीं। छोटी सी कटोरी में एक चम्मच घी और एक छोटी कटोरी में ताजी सिल पर पिसी चटनी,सलाद, गुड़ का टुकड़ा या कोई मिठाई या आम के मौसम में आम काट कर भी रखतीं। उनको थाली लगाते हम बड़े मनोयोग से देखते फिर हमें बहुत संभाल के थमातीं कहीं जरा भी कोई छींट या बूँद न रहे ये ध्यान रखतीं।हम लोग भी हाथों में बहुत साध कर ले जाते।
आप कभी डाँटते नहीं थे हम लोगों को। बस अम्माँ से कहलवा देते जो बात पसंद न आती तो।मुझसे गल्ती बहुत होती थीं, जाने ध्यान कहाँ-कहाँ उड़ा रहता। कभी बर्तन तोड़ देती, तो कभी कुछ बिखेर देती और कभी कहीं कुछ छोड़ आती। मेरी गलती पर `पूरी फिलॉस्फर हो तुम ‘इतना ही कहते ।
छोटी बहन निरुपमा खूब पटर-पटर बोलती थी। जैसे ही आप ऑफिस से आते फ्रैश होकर कॉफी पीते सारे दिन के सब समाचार सुनाने बैठ जाती। कहते `आओ भाई सेक्रेटरी क्या खबरें हैं ‘और बस वो शुरु...।
मेरी और सब भाई-बहनों की उपलब्धियों पर जी भर कर सराहते ।जब भी मैं कोई पेंटिंग बनाती तो शाबाशी भी देते । कोई कहानी या कविता छपती तो बहुत खुश होते थे। पता नहीं क्यों मैं पहले जब कुछ बड़ी हुई तो डरती थी आपसे ।फिर सब डर निकल गया जब अम्माँ ने आपको बताया तो आप मुझसे ज्यादा बातें करने लगे ।प्राय: हम भाई-बहनों को कभी-कभी खुद पढ़ाते भी थे ।
इतने कड़क अफसर... पर फिल्म देख कर कोई इमोशनल सीन आने पर चुपके से रोते थे, खास कर माँ का कोई सीन होता तो बहुत भावुक हो जाते थे। हमने दादी को नहीं देखा पर उनके लिए जो श्रद्धा थी... भक्ति थी आपके मन में वो हमने देखी।
आपकी और देवानन्द की जन्मतिथि एक ही थी जब आप ये बताते तो मैं कहती "यदि वो थोड़ा ग्रेसफुल होता तो वो आप जैसा दिखता “इस पर कितना हंसते थे।
जब कभी मुझे कॉलेज छोड़ने जाते तो मेरी फ्रैंड पूछतीं वो भाई थे तुम्हारे? मैं बताती कि मेरे पापा थे तो यक़ीन नहीं करती थीं। क्योंकि आप बहुत स्मार्ट और उम्र से बहुत यंग लगते थे।
आप हमेशा टिप-टॉप रहते। सन्डे में भी नहा धोकर पैंट शर्ट पहन कर अच्छी तरह से तैयार होते थे। सारे दिन न्यूज सुनते । प्राय: बी बी सी न्यूज सुनते और कैप्सटन के पेपर व तम्बाकू से सिगरेट बना कर सिगरेट-केस में रखते जाते ।
बचपन में मैं और भैया एक दो सिगरेट पार कर लेते और छिपा कर सुट्टे लगाते कभी-कभी और सोचते थे आपको पता नहीं चलता होगा पर आपको पता होता था। ये मुझे मेरी शादी के बाद बताया आपने। मैंने पूछा आपको कैसे पता चलता था, तो बोले मैं गिन कर रखता था । आज तक ताज्जुब है कि आपने कभी कुछ नहीं कहा बचपन में। शायद भरोसा था कि बच्चों की शैतानी है, वो ये समझते थे।
हम लोगों को जब भी बुखार आता तो दवा देना, थर्मामीटर लगाना,सिर पर पट्टी रखने का काम आप ही करते थे कितना परेशान हो जाते हमारी तकलीफ देख कर।
हम नैनीताल या मसूरी घूमने जाते तो थकने पर चढ़ाई पर बारी- बारी से हम चारों को कुछ- कुछ देर के लिए गोद में उठा लेते।छुट्टियों में कभी नैनीताल, मसूरी, शिमला ले जाते क्योंकि पहाड़ बहुत पसंद थे और कभी गाँव में ताऊजी ताईजी के पास जहाँ हम जम कर मस्ती करते और आप लखनवी कुर्ता और धोती पहन दोस्तों से मिलने जब निकलते तो आपका वो रूप कितना बेफिक्र, भव्य होता ।गाँव में भी लोगों की बहुत मदद करते थे। बहुत इज्जत और प्यार करते थे वहाँ सब आपकी। हम जहाँ से निकलते सब कहते `अरे बे सन्त की लली हैं ऊसा ?’
हम तीनों बहनों को लेकर आप बहुत संवेदनशील थे। अम्माँ बताती हैं मैं बचपन में सबसे ज्यादा जिद्दी थी। बहुत रोती और रोती तो रोती ही चली जाती जोर -जोर से।अम्माँ सहायकों को कहतीं 'साहब के पास ले जा उठा कर ‘और मैं आपके पास जाते ही चुप हो जाती, हंसने लगती। अम्माँ को ही सुनना पड़ता कि वो मेरा ध्यान नहीं रखती हैं।आप अक्सर कहते `उषा बिल्कुल मुझ पर गई है मैं भी बहुत जिद्दी था।’
बेटी मिट्ठू के जन्म के एक महिने बाद ही मैं ग़ाज़ियाबाद अपने घर आ गई थी। बहुत सुबह ही अम्माँ के उठने से भी पहले आप मिट्ठू को उठा कर अपने कमरे में ले जाते और कह जाते "अब तुम सो लो आराम से !” सबसे कहते शोर मत करना वो सो नहीं पाई होगी रात में। और सारी रात की जागी मैं दो तीन घंटे खूब चैन से सो पाती पैर पसार कर ।
नाम भर के नहीं आप सच में `सन्त' थे ताताजी। आप कृष्ण के परम भक्त थे। अंतिम समय में, कोमा में जाने से पहले तक भी निर्विकार रूप से"ओम् नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप कर रहे थे । कितना दुर्लभ है पूरा जीवन ऐश्वर्यशाली जीवन जीने के बाद अंतिम समय यदि स्मरण रहे प्रभु नाम और बाकी कुछ भी ममता बाकी न रहे
हमारा सौभाग्य कि हम आपके बच्चे थे। कितना कुछ लिखना चाहती हूँ पर ज़्यादा नहीं लिख पाती, बहुत तकलीफ़ होती है परन्तु लिखे बिना भी बेचैनी होती है बहुत...। आपके हिस्से का एक जगमगाता आसमान बसता है मेरे अंदर आज भी।
आज आपके 96th जन्मदिवस पर हमारा शत- शत नमन... यदि अगला जन्म हो तो आपके आस-पास ही रहें हम। आप जहाँ कहीं हों हमपर आशीर्वाद बनाए रखिएगा..... ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी आत्मा को शाँति प्रदान करें और अपने चरणों में स्थान दें !!
आपकी फिलॉस्फर बेटी
दिनाँक-7. 4. 2021
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