ये कैसी लीला त्रिपुरारी
ये कैसा ताँडव भोले
भयभीत हैं मन
आज असहाय हर जन
त्रस्त तन- मन !
पड़ी विपदा भारी
है कैसी ये मजबूरी
कोई भी साथ नहीं
अपनों का काँधा भी
आज नसीब नहीं
अस्पतालों में बैड नहीं
मसानों में भी अब
जगह बची नहीं
सब हिम्मत हारे
बाँधे हाथ सब अपने
भीगी आँखों से
मजबूर दूर खड़े निहारें
प्रसन्न हो आशुतोष
रोको अपना डमरू
रोको अपना नर्तन
बन्द करो त्रिनेत्र
एक-एक साँस को
तड़पते मानव की
लौटा दो साँसें अब
हाँ... मानते हैं
हम हैं अपराधी
अब दया करो, क्षमा करो
हे महेश्वर भूल हमारी
तुम्हारे ही इष्ट राम का वास्ता
देती हूँ मैं तुम्हें
बाँधती हूँ आज
होकर विकल तुम्हें
रक्षासूत्र से-
"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल !!”
-उषा किरण
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