Hindi Kavita
हिंदी कविता
बारीक सी पर गहन
जो पावन धारा बहती अन्तस में...
गुप्त गोदावरी फेनिल तरंगों में
सबसे छिपा करती निरन्तर समाहित
सारा कल्मष
सारा विष
सबका वमन
ध्यानस्थ... मंथर गति से प्रवाहित !
कि अतृप्त प्यास ही हो जाए जब तृप्ति...
कि विष ही बन जाए जब अमृत..
कि दाह ही हो जाए चंदन...
कि अमावस लगे पूर्णमासी ...
कि अन्त में ही हो पूर्णता का भास...
कि फकीराना मस्ती में रमता जोगी मन ही
समृद्ध हो जाए जब ...
तो और क्या चाहे कोई, किसी से ?
तो क्यूँ माँगे कोई किसी से भी ?
न चाँद
न सूरज
न आँचल भर सितारे
पूर्णता की उपलब्धता पाकर
खिल कर ... सुवासित हो ...
सामने शाख से छूट कर
गिरी है अभी जो धूल में
वो मदमस्त शेफाली होना चाहती हूँ...!!
— उषा किरण
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Usha Kiran) #icon=(link) #color=(#2339bd)
Tags