Shabd Bhakt Ravidas Ji शब्द संत रविदास जी

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Shabd Bhakt Ravidas Ji
शब्द संत रविदास जी

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    1. बेगम पुरा सहर को नाउ

    बेगम पुरा सहर को नाउ ॥
    दूखु अंदोहु नही तिहि ठाउ ॥
    नां तसवीस खिराजु न मालु ॥
    खउफु न खता न तरसु जवालु ॥1॥
    अब मोहि खूब वतन गह पाई ॥
    ऊहां खैरि सदा मेरे भाई ॥1॥ रहाउ ॥
    काइमु दाइमु सदा पातिसाही ॥
    दोम न सेम एक सो आही ॥
    आबादानु सदा मसहूर ॥
    ऊहां गनी बसहि मामूर ॥2॥
    तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै ॥
    महरम महल न को अटकावै ॥
    कहि रविदास खलास चमारा ॥
    जो हम सहरी सु मीतु हमारा ॥3॥2॥345॥

    2. दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ

    दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ ॥
    फूलु भवरि जलु मीनि बिगारिओ ॥1॥
    माई गोबिंद पूजा कहा लै चरावउ ॥
    अवरु न फूलु अनूपु न पावउ ॥1॥ रहाउ ॥
    मैलागर बेर्हे है भुइअंगा ॥
    बिखु अम्रितु बसहि इक संगा ॥2॥
    धूप दीप नईबेदहि बासा ॥
    कैसे पूज करहि तेरी दासा ॥3॥
    तनु मनु अरपउ पूज चरावउ ॥
    गुर परसादि निरंजनु पावउ ॥4॥
    पूजा अरचा आहि न तोरी ॥
    कहि रविदास कवन गति मोरी ॥5॥1॥525॥

    3. माटी को पुतरा कैसे नचतु है

    माटी को पुतरा कैसे नचतु है ॥
    देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरतु है ॥1॥ रहाउ ॥
    जब कछु पावै तब गरबु करतु है ॥
    माइआ गई तब रोवनु लगतु है ॥1॥
    मन बच क्रम रस कसहि लुभाना ॥
    बिनसि गइआ जाइ कहूं समाना ॥2॥
    कहि रविदास बाजी जगु भाई ॥
    बाजीगर सउ मुहि प्रीति बनि आई ॥3॥6॥487॥

    4. मेरी संगति पोच सोच दिनु राती

    मेरी संगति पोच सोच दिनु राती ॥
    मेरा करमु कुटिलता जनमु कुभांती ॥1॥
    राम गुसईआ जीअ के जीवना ॥
    मोहि न बिसारहु मै जनु तेरा ॥1॥ रहाउ ॥
    मेरी हरहु बिपति जन करहु सुभाई ॥
    चरण न छाडउ सरीर कल जाई ॥2॥
    कहु रविदास परउ तेरी साभा ॥
    बेगि मिलहु जन करि न बिलांबा ॥3॥1॥345॥

    5.नामु तेरो आरती मजनु मुरारे

    नामु तेरो आरती मजनु मुरारे ॥
    हरि के नाम बिनु झूठे सगल पासारे ॥1॥ रहाउ ॥
    नामु तेरो आसनो नामु तेरो उरसा नामु तेरा केसरो ले छिटकारे ॥
    नामु तेरा अम्मभुला नामु तेरो चंदनो घसि जपे नामु ले तुझहि कउ चारे ॥1॥
    नामु तेरा दीवा नामु तेरो बाती नामु तेरो तेलु ले माहि पसारे ॥
    नाम तेरे की जोति लगाई भइओ उजिआरो भवन सगलारे ॥2॥
    नामु तेरो तागा नामु फूल माला भार अठारह सगल जूठारे ॥
    तेरो कीआ तुझहि किआ अरपउ नामु तेरा तुही चवर ढोलारे ॥3॥
    दस अठा अठसठे चारे खाणी इहै वरतणि है सगल संसारे ॥
    कहै रविदासु नामु तेरो आरती सति नामु है हरि भोग तुहारे ॥4॥3॥694॥

    6. तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा

    तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा ॥
    कनक कटिक जल तरंग जैसा ॥1॥
    जउ पै हम न पाप करंता अहे अनंता ॥
    पतित पावन नामु कैसे हुंता ॥1॥ रहाउ ॥
    तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी ॥
    प्रभ ते जनु जानीजै जन ते सुआमी ॥2॥
    सरीरु आराधै मो कउ बीचारु देहू ॥
    रविदास सम दल समझावै कोऊ ॥3॥93॥

    7. तुम चंदन हम इरंड बापुरे संगि तुमारे बासा

    तुम चंदन हम इरंड बापुरे संगि तुमारे बासा ॥
    नीच रूख ते ऊच भए है गंध सुगंध निवासा ॥1॥
    माधउ सतसंगति सरनि तुम्हारी ॥
    हम अउगन तुम्ह उपकारी ॥1॥ रहाउ ॥
    तुम मखतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा ॥
    सतसंगति मिलि रहीऐ माधउ जैसे मधुप मखीरा ॥2॥
    जाती ओछा पाती ओछा ओछा जनमु हमारा ॥
    राजा राम की सेव न कीनी कहि रविदास चमारा ॥3॥3॥486॥

    8. घट अवघट डूगर घणा इकु निरगुणु बैलु हमार

    घट अवघट डूगर घणा इकु निरगुणु बैलु हमार ॥
    रमईए सिउ इक बेनती मेरी पूंजी राखु मुरारि ॥1॥
    को बनजारो राम को मेरा टांडा लादिआ जाइ रे ॥1॥ रहाउ ॥
    हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु ॥
    मै राम नाम धनु लादिआ बिखु लादी संसारि ॥2॥
    उरवार पार के दानीआ लिखि लेहु आल पतालु ॥
    मोहि जम डंडु न लागई तजीले सरब जंजाल ॥3॥
    जैसा रंगु कसुमभ का तैसा इहु संसारु ॥
    मेरे रमईए रंगु मजीठ का कहु रविदास चमार ॥4॥1॥345॥

    9. कूपु भरिओ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ

    कूपु भरिओ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ ॥
    ऐसे मेरा मनु बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सूझ ॥1॥
    सगल भवन के नाइका इकु छिनु दरसु दिखाइ जी ॥1॥ रहाउ ॥
    मलिन भई मति माधवा तेरी गति लखी न जाइ ॥
    करहु क्रिपा भ्रमु चूकई मै सुमति देहु समझाइ ॥2॥
    जोगीसर पावहि नही तुअ गुण कथनु अपार ॥
    प्रेम भगति कै कारणै कहु रविदास चमार ॥3॥1॥346॥

    10. सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार

    सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार ॥
    तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥1॥
    पारु कैसे पाइबो रे ॥
    मो सउ कोऊ न कहै समझाइ ॥
    जा ते आवा गवनु बिलाइ ॥1॥ रहाउ ॥
    बहु बिधि धरम निरूपीऐ करता दीसै सभ लोइ ॥
    कवन करम ते छूटीऐ जिह साधे सभ सिधि होइ ॥2॥
    करम अकरम बीचारीऐ संका सुनि बेद पुरान ॥
    संसा सद हिरदै बसै कउनु हिरै अभिमानु ॥3॥
    बाहरु उदकि पखारीऐ घट भीतरि बिबिधि बिकार ॥
    सुध कवन पर होइबो सुच कुंचर बिधि बिउहार ॥4॥
    रवि प्रगास रजनी जथा गति जानत सभ संसार ॥
    पारस मानो ताबो छुए कनक होत नही बार ॥5॥
    परम परस गुरु भेटीऐ पूरब लिखत लिलाट ॥
    उनमन मन मन ही मिले छुटकत बजर कपाट ॥6॥
    भगति जुगति मति सति करी भ्रम बंधन काटि बिकार ॥
    सोई बसि रसि मन मिले गुन निरगुन एक बिचार ॥7॥
    अनिक जतन निग्रह कीए टारी न टरै भ्रम फास ॥
    प्रेम भगति नही ऊपजै ता ते रविदास उदास ॥8॥1॥ 346॥

    11. म्रिग मीन भ्रिंग पतंग कुंचर एक दोख बिनास

    म्रिग मीन भ्रिंग पतंग कुंचर एक दोख बिनास ॥
    पंच दोख असाध जा महि ता की केतक आस ॥1॥
    माधो अबिदिआ हित कीन ॥
    बिबेक दीप मलीन ॥1॥ रहाउ ॥
    त्रिगद जोनि अचेत स्मभव पुंन पाप असोच ॥
    मानुखा अवतार दुलभ तिही संगति पोच ॥2॥
    जीअ जंत जहा जहा लगु करम के बसि जाइ ॥
    काल फास अबध लागे कछु न चलै उपाइ ॥3॥
    रविदास दास उदास तजु भ्रमु तपन तपु गुर गिआन ॥
    भगत जन भै हरन परमानंद करहु निदान ॥4॥1॥486॥

    12. संत तुझी तनु संगति प्रान

    संत तुझी तनु संगति प्रान ॥
    सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव ॥1॥
    संत ची संगति संत कथा रसु ॥
    संत प्रेम माझै दीजै देवा देव ॥1॥ रहाउ ॥
    संत आचरण संत चो मारगु संत च ओल्हग ओल्हगणी ॥2॥
    अउर इक मागउ भगति चिंतामणि ॥
    जणी लखावहु असंत पापी सणि ॥3॥
    रविदासु भणै जो जाणै सो जाणु ॥
    संत अनंतहि अंतरु नाही ॥4॥2॥486॥

    13. कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु

    कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु ॥
    प्रेमु जाइ तउ डरपै तेरो जनु ॥1॥
    तुझहि चरन अरबिंद भवन मनु ॥
    पान करत पाइओ पाइओ रामईआ धनु ॥1॥ रहाउ ॥
    स्मपति बिपति पटल माइआ धनु ॥
    ता महि मगन होत न तेरो जनु ॥2॥
    प्रेम की जेवरी बाधिओ तेरो जन ॥
    कहि रविदास छूटिबो कवन गुन ॥3॥4॥487॥

    14. हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे

    हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे ॥
    हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे ॥1॥ रहाउ ॥
    हरि के नाम कबीर उजागर ॥
    जनम जनम के काटे कागर ॥1॥
    निमत नामदेउ दूधु पीआइआ ॥
    तउ जग जनम संकट नही आइआ ॥2॥
    जन रविदास राम रंगि राता ॥
    इउ गुर परसादि नरक नही जाता ॥3॥5॥487॥

    15. जब हम होते तब तू नाही अब तूही मै नाही

    जब हम होते तब तू नाही अब तूही मै नाही ॥
    अनल अगम जैसे लहरि मइ ओदधि जल केवल जल मांही ॥1॥
    माधवे किआ कहीऐ भ्रमु ऐसा ॥
    जैसा मानीऐ होइ न तैसा ॥1॥ रहाउ ॥
    नरपति एकु सिंघासनि सोइआ सुपने भइआ भिखारी ॥
    अछत राज बिछुरत दुखु पाइआ सो गति भई हमारी ॥2॥
    राज भुइअंग प्रसंग जैसे हहि अब कछु मरमु जनाइआ ॥
    अनिक कटक जैसे भूलि परे अब कहते कहनु न आइआ ॥3॥
    सरबे एकु अनेकै सुआमी सभ घट भुगवै सोई ॥
    कहि रविदास हाथ पै नेरै सहजे होइ सु होई ॥4॥1॥658॥

    16. जउ हम बांधे मोह फास हम प्रेम बधनि तुम बाधे

    जउ हम बांधे मोह फास हम प्रेम बधनि तुम बाधे ॥
    अपने छूटन को जतनु करहु हम छूटे तुम आराधे ॥1॥
    माधवे जानत हहु जैसी तैसी ॥
    अब कहा करहुगे ऐसी ॥1॥ रहाउ ॥
    मीनु पकरि फांकिओ अरु काटिओ रांधि कीओ बहु बानी ॥
    खंड खंड करि भोजनु कीनो तऊ न बिसरिओ पानी ॥2॥
    आपन बापै नाही किसी को भावन को हरि राजा ॥
    मोह पटल सभु जगतु बिआपिओ भगत नही संतापा ॥3॥
    कहि रविदास भगति इक बाढी अब इह का सिउ कहीऐ ॥
    जा कारनि हम तुम आराधे सो दुखु अजहू सहीऐ ॥4॥2॥658॥

    17. दुलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेकै

    दुलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेकै ॥
    राजे इंद्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै ॥1॥
    न बीचारिओ राजा राम को रसु ॥
    जिह रस अन रस बीसरि जाही ॥1॥ रहाउ ॥
    जानि अजान भए हम बावर सोच असोच दिवस जाही ॥
    इंद्री सबल निबल बिबेक बुधि परमारथ परवेस नही ॥2॥
    कहीअत आन अचरीअत अन कछु समझ न परै अपर माइआ ॥
    कहि रविदास उदास दास मति परहरि कोपु करहु जीअ दइआ ॥3॥3॥658॥

    18. सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जा के

    सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जा के ॥
    चारि पदार्थ असट दसा सिधि नव निधि कर तल ता के ॥1॥
    हरि हरि हरि न जपहि रसना ॥
    अवर सभ तिआगि बचन रचना ॥1॥ रहाउ ॥
    नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अखर मांही ॥
    बिआस बिचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही ॥2॥
    सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बडै भागि लिव लागी ॥
    कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी ॥3॥4॥658॥

    19. जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा

    जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा ॥
    जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा ॥1॥
    माधवे तुम न तोरहु तउ हम नही तोरहि ॥
    तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि ॥1॥ रहाउ ॥
    जउ तुम दीवरा तउ हम बाती ॥
    जउ तुम तीर्थ तउ हम जाती ॥2॥
    साची प्रीति हम तुम सिउ जोरी ॥
    तुम सिउ जोरि अवर संगि तोरी ॥3॥
    जह जह जाउ तहा तेरी सेवा ॥
    तुम सो ठाकुरु अउरु न देवा ॥4॥
    तुमरे भजन कटहि जम फांसा ॥
    भगति हेत गावै रविदासा ॥5॥5॥659॥

    20. जल की भीति पवन का थ्मभा रक्त बुंद का गारा

    जल की भीति पवन का थ्मभा रक्त बुंद का गारा ॥
    हाड मास नाड़ीं को पिंजरु पंखी बसै बिचारा ॥1॥
    प्रानी किआ मेरा किआ तेरा ॥
    जैसे तरवर पंखि बसेरा ॥1॥ रहाउ ॥
    राखहु कंध उसारहु नीवां ॥
    साढे तीनि हाथ तेरी सीवां ॥2॥
    बंके बाल पाग सिरि डेरी ॥
    इहु तनु होइगो भसम की ढेरी ॥3॥
    ऊचे मंदर सुंदर नारी ॥
    राम नाम बिनु बाजी हारी ॥4॥
    मेरी जाति कमीनी पांति कमीनी ओछा जनमु हमारा ॥
    तुम सरनागति राजा राम चंद कहि रविदास चमारा ॥5॥6॥659॥

    21. चमरटा गांठि न जनई

    चमरटा गांठि न जनई ॥
    लोगु गठावै पनही ॥1॥ रहाउ ॥
    आर नही जिह तोपउ ॥
    नही रांबी ठाउ रोपउ ॥1॥
    लोगु गंठि गंठि खरा बिगूचा ॥
    हउ बिनु गांठे जाइ पहूचा ॥2॥
    रविदासु जपै राम नामा ॥
    मोहि जम सिउ नाही कामा ॥3॥7॥659॥

    22. हम सरि दीनु दइआलु न तुम सरि अब पतीआरु किआ कीजै

    हम सरि दीनु दइआलु न तुम सरि अब पतीआरु किआ कीजै ॥
    बचनी तोर मोर मनु मानै जन कउ पूरनु दीजै ॥1॥
    हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने ॥
    कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥
    बहुत जनम बिछुरे थे माधउ इहु जनमु तुम्हारे लेखे ॥
    कहि रविदास आस लगि जीवउ चिर भइओ दरसनु देखे ॥2॥1॥694॥

    23. चित सिमरनु करउ नैन अविलोकनो स्रवन बानी सुजसु पूरि राखउ

    चित सिमरनु करउ नैन अविलोकनो स्रवन बानी सुजसु पूरि राखउ ॥
    मनु सु मधुकरु करउ चरन हिरदे धरउ रसन अमृत राम नाम भाखउ ॥1॥
    मेरी प्रीति गोबिंद सिउ जिनि घटै ॥
    मै तउ मोलि महगी लई जीअ सटै ॥1॥ रहाउ ॥
    साधसंगति बिना भाउ नही ऊपजै भाव बिनु भगति नही होइ तेरी ॥
    कहै रविदासु इक बेनती हरि सिउ पैज राखहु राजा राम मेरी ॥2॥2॥694॥

    24. नाथ कछूअ न जानउ

    नाथ कछूअ न जानउ ॥
    मनु माइआ कै हाथि बिकानउ ॥1॥ रहाउ ॥
    तुम कहीअत हौ जगत गुर सुआमी ॥
    हम कहीअत कलिजुग के कामी ॥1॥
    इन पंचन मेरो मनु जु बिगारिओ ॥
    पलु पलु हरि जी ते अंतरु पारिओ ॥2॥
    जत देखउ तत दुख की रासी ॥
    अजौं न पत्याइ निगम भए साखी ॥3॥
    गोतम नारि उमापति स्वामी ॥
    सीसु धरनि सहस भग गांमी ॥4॥
    इन दूतन खलु बधु करि मारिओ ॥
    बडो निलाजु अजहू नही हारिओ ॥5॥
    कहि रविदास कहा कैसे कीजै ॥
    बिनु रघुनाथ सरनि का की लीजै ॥6॥1॥710॥

    25. सह की सार सुहागनि जानै

    सह की सार सुहागनि जानै ॥
    तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै ॥
    तनु मनु देइ न अंतरु राखै ॥
    अवरा देखि न सुनै अभाखै ॥1॥
    सो कत जानै पीर पराई ॥
    जा कै अंतरि दरदु न पाई ॥1॥ रहाउ ॥
    दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी ॥
    जिनि नाह निरंतरि भगति न कीनी ॥
    पुर सलात का पंथु दुहेला ॥
    संगि न साथी गवनु इकेला ॥2॥
    दुखीआ दरदवंदु दरि आइआ ॥
    बहुतु पिआस जबाबु न पाइआ ॥
    कहि रविदास सरनि प्रभ तेरी ॥
    जिउ जानहु तिउ करु गति मेरी ॥3॥1॥793॥

    26. जो दिन आवहि सो दिन जाही

    जो दिन आवहि सो दिन जाही ॥
    करना कूचु रहनु थिरु नाही ॥
    संगु चलत है हम भी चलना ॥
    दूरि गवनु सिर ऊपरि मरना ॥1॥
    किआ तू सोइआ जागु इआना ॥
    तै जीवनु जगि सचु करि जाना ॥1॥ रहाउ ॥
    जिनि जीउ दीआ सु रिजकु अम्मबरावै ॥
    सभ घट भीतरि हाटु चलावै ॥
    करि बंदिगी छाडि मै मेरा ॥
    हिरदै नामु सम्हारि सवेरा ॥2॥
    जनमु सिरानो पंथु न सवारा ॥
    सांझ परी दह दिस अंधिआरा ॥
    कहि रविदास निदानि दिवाने ॥
    चेतसि नाही दुनीआ फन खाने ॥3॥2॥794॥

    27. ऊचे मंदर साल रसोई

    ऊचे मंदर साल रसोई ॥
    एक घरी फुनि रहनु न होई ॥1॥
    इहु तनु ऐसा जैसे घास की टाटी ॥
    जलि गइओ घासु रलि गइओ माटी ॥1॥ रहाउ ॥
    भाई बंध कुट्मब सहेरा ॥
    ओइ भी लागे काढु सवेरा ॥2॥
    घर की नारि उरहि तन लागी ॥
    उह तउ भूतु भूतु करि भागी ॥3॥
    कहि रविदास सभै जगु लूटिआ ॥
    हम तउ एक रामु कहि छूटिआ ॥4॥3॥794॥

    28. दारिदु देखि सभ को हसै ऐसी दसा हमारी

    दारिदु देखि सभ को हसै ऐसी दसा हमारी ॥
    असट दसा सिधि कर तलै सभ क्रिपा तुमारी ॥1॥
    तू जानत मै किछु नही भव खंडन राम ॥
    सगल जीअ सरनागती प्रभ पूरन काम ॥1॥ रहाउ ॥
    जो तेरी सरनागता तिन नाही भारु ॥
    ऊच नीच तुम ते तरे आलजु संसारु ॥2॥
    कहि रविदास अकथ कथा बहु काइ करीजै ॥
    जैसा तू तैसा तुही किआ उपमा दीजै ॥3॥1॥ 858॥

    29. जिह कुल साधु बैसनौ होइ

    जिह कुल साधु बैसनौ होइ ॥
    बरन अबरन रंकु नही ईसुरु बिमल बासु जानीऐ जगि सोइ ॥1॥ रहाउ ॥
    ब्रह्मन बैस सूद अरु ख्यत्री डोम चंडार मलेछ मन सोइ ॥
    होइ पुनीत भगवंत भजन ते आपु तारि तारे कुल दोइ ॥1॥
    धंनि सु गाउ धंनि सो ठाउ धंनि पुनीत कुट्मब सभ लोइ ॥
    जिनि पीआ सार रसु तजे आन रस होइ रस मगन डारे बिखु खोइ ॥2॥
    पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि अउरु न कोइ ॥
    जैसे पुरैन पात रहै जल समीप भनि रविदास जनमे जगि ओइ ॥3॥2॥858॥

    30. मुकंद मुकंद जपहु संसार

    मुकंद मुकंद जपहु संसार ॥
    बिनु मुकंद तनु होइ अउहार ॥
    सोई मुकंदु मुकति का दाता ॥
    सोई मुकंदु हमरा पित माता ॥1॥
    जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ॥
    ता के सेवक कउ सदा अनंदे ॥1॥ रहाउ ॥
    मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ॥
    जपि मुकंद मसतकि नीसानं ॥
    सेव मुकंद करै बैरागी ॥
    सोई मुकंदु दुर्बल धनु लाधी ॥2॥
    एकु मुकंदु करै उपकारु ॥
    हमरा कहा करै संसारु ॥
    मेटी जाति हूए दरबारि ॥
    तुही मुकंद जोग जुग तारि ॥3॥
    उपजिओ गिआनु हूआ परगास ॥
    करि किरपा लीने कीट दास ॥
    कहु रविदास अब त्रिसना चूकी ॥
    जपि मुकंद सेवा ताहू की ॥4॥1॥875॥

    31. जे ओहु अठसठि तीर्थ न्हावै

    जे ओहु अठसठि तीर्थ न्हावै ॥
    जे ओहु दुआदस सिला पूजावै ॥
    जे ओहु कूप तटा देवावै ॥
    करै निंद सभ बिरथा जावै ॥1॥
    साध का निंदकु कैसे तरै ॥
    सरपर जानहु नरक ही परै ॥1॥ रहाउ ॥
    जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति ॥
    अरपै नारि सीगार समेति ॥
    सगली सिम्रिति स्रवनी सुनै ॥
    करै निंद कवनै नही गुनै ॥2॥
    जे ओहु अनिक प्रसाद करावै ॥
    भूमि दान सोभा मंडपि पावै ॥
    अपना बिगारि बिरांना सांढै ॥
    करै निंद बहु जोनी हांढै ॥3॥
    निंदा कहा करहु संसारा ॥
    निंदक का परगटि पाहारा ॥
    निंदकु सोधि साधि बीचारिआ ॥
    कहु रविदास पापी नरकि सिधारिआ ॥ 4॥2॥875॥

    32. पड़ीऐ गुनीऐ नामु सभु सुनीऐ अनभउ भाउ न दरसै

    पड़ीऐ गुनीऐ नामु सभु सुनीऐ अनभउ भाउ न दरसै ॥
    लोहा कंचनु हिरन होइ कैसे जउ पारसहि न परसै ॥1॥
    देव संसै गांठि न छूटै ॥
    काम क्रोध माइआ मद मतसर इन पंचहु मिलि लूटे ॥1॥ रहाउ ॥
    हम बड कबि कुलीन हम पंडित हम जोगी संनिआसी ॥
    गिआनी गुनी सूर हम दाते इह बुधि कबहि न नासी ॥2॥
    कहु रविदास सभै नही समझसि भूलि परे जैसे बउरे ॥
    मोहि अधारु नामु नाराइन जीवन प्रान धन मोरे ॥3॥1॥974॥

    33. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै

    ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ॥
    गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥1॥ रहाउ ॥
    जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ॥
    नीचह ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥1॥
    नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै ॥
    कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै ॥2॥1॥1106॥

    34. सुख सागर सुरितरु चिंतामनि कामधेन बसि जा के रे

    सुख सागर सुरितरु चिंतामनि कामधेन बसि जा के रे ॥
    चारि पदार्थ असट महा सिधि नव निधि कर तल ता कै ॥1॥
    हरि हरि हरि न जपसि रसना ॥
    अवर सभ छाडि बचन रचना ॥1॥ रहाउ ॥
    नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अछर माही ॥
    बिआस बीचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही ॥2॥
    सहज समाधि उपाधि रहत होइ बडे भागि लिव लागी ॥
    कहि रविदास उदास दास मति जनम मरन भै भागी ॥3॥॥2॥15॥1106॥

    35. खटु करम कुल संजुगतु है हरि भगति हिरदै नाहि

    खटु करम कुल संजुगतु है हरि भगति हिरदै नाहि ॥
    चरनारबिंद न कथा भावै सुपच तुलि समानि ॥1॥
    रे चित चेति चेत अचेत ॥काहे न बालमीकहि देख ॥
    किसु जाति ते किह पदहि अमरिओ राम भगति बिसेख ॥1॥ रहाउ ॥
    सुआन सत्रु अजातु सभ ते क्रिस्न लावै हेतु ॥
    लोगु बपुरा किआ सराहै तीनि लोक प्रवेस ॥2॥
    अजामलु पिंगुला लुभतु कुंचरु गए हरि कै पासि ॥
    ऐसे दुरमति निसतरे तू किउ न तरहि रविदास ॥3॥1॥1124॥

    36. बिनु देखे उपजै नही आसा

    बिनु देखे उपजै नही आसा ॥
    जो दीसै सो होइ बिनासा ॥
    बरन सहित जो जापै नामु ॥
    सो जोगी केवल निहकामु ॥1॥
    परचै रामु रवै जउ कोई ॥
    पारसु परसै दुबिधा न होई ॥1॥ रहाउ ॥
    सो मुनि मन की दुबिधा खाइ ॥
    बिनु दुआरे त्रै लोक समाइ ॥
    मन का सुभाउ सभु कोई करै ॥
    करता होइ सु अनभै रहै ॥2॥
    फल कारन फूली बनराइ ॥
    फलु लागा तब फूलु बिलाइ ॥
    गिआनै कारन करम अभिआसु ॥
    गिआनु भइआ तह करमह नासु ॥3॥
    घ्रित कारन दधि मथै सइआन ॥
    जीवत मुकत सदा निरबान ॥
    कहि रविदास परम बैराग ॥
    रिदै रामु की न जपसि अभाग ॥4॥1॥1167॥

    37. तुझहि सुझंता कछू नाहि

    तुझहि सुझंता कछू नाहि ॥
    पहिरावा देखे ऊभि जाहि ॥
    गरबवती का नाही ठाउ ॥
    तेरी गरदनि ऊपरि लवै काउ ॥1॥
    तू कांइ गरबहि बावली ॥
    जैसे भादउ खूमबराजु तू तिस ते खरी उतावली ॥1॥ रहाउ ॥
    जैसे कुरंक नही पाइओ भेदु ॥
    तनि सुगंध ढूढै प्रदेसु ॥
    अप तन का जो करे बीचारु ॥
    तिसु नही जमकंकरु करे खुआरु ॥2॥
    पुत्र कलत्र का करहि अहंकारु ॥
    ठाकुरु लेखा मगनहारु ॥
    फेड़े का दुखु सहै जीउ ॥
    पाछे किसहि पुकारहि पीउ पीउ ॥3॥
    साधू की जउ लेहि ओट ॥
    तेरे मिटहि पाप सभ कोटि कोटि ॥
    कहि रविदास जु जपै नामु ॥
    तिसु जाति न जनमु न जोनि कामु ॥4॥1॥1196॥

    38. नागर जनां मेरी जाति बिखिआत चमारं

    नागर जनां मेरी जाति बिखिआत चमारं ॥
    रिदै राम गोबिंद गुन सारं ॥1॥ रहाउ ॥
    सुरसरी सलल क्रित बारुनी रे संत जन करत नही पानं ॥
    सुरा अपवित्र नत अवर जल रे सुरसरी मिलत नहि होइ आनं ॥1॥
    तर तारि अपवित्र करि मानीऐ रे जैसे कागरा करत बीचारं ॥
    भगति भागउतु लिखीऐ तिह ऊपरे पूजीऐ करि नमसकारं ॥2॥
    मेरी जाति कुट बांढला ढोर ढोवंता नितहि बानारसी आस पासा ॥
    अब बिप्र प्रधान तिहि करहि डंडउति तेरे नाम सरणाइ रविदासु दासा ॥3॥1॥1293॥

    39. हरि जपत तेऊ जना पदम कवलास पति तास सम तुलि नही आन कोऊ

    हरि जपत तेऊ जना पदम कवलास पति तास सम तुलि नही आन कोऊ॥
    एक ही एक अनेक होइ बिसथरिओ आन रे आन भरपूरि सोऊ ॥ रहाउ ॥
    जा कै भागवतु लेखीऐ अवरु नही पेखीऐ तास की जाति आछोप छीपा ॥
    बिआस महि लेखीऐ सनक महि पेखीऐ नाम की नामना सपत दीपा ॥1॥
    जा कै ईदि बकरीदि कुल गऊ रे बधु करहि मानीअहि सेख सहीद पीरा ॥
    जा कै बाप वैसी करी पूत ऐसी सरी तिहू रे लोक परसिध कबीरा ॥2॥
    जा के कुट्मब के ढेढ सभ ढोर ढोवंत फिरहि अजहु बंनारसी आस पासा ॥
    आचार सहित बिप्र करहि डंडउति तिन तनै रविदास दासान दासा ॥3॥2॥1293॥

    40. मिलत पिआरो प्रान नाथु कवन भगति ते

    मिलत पिआरो प्रान नाथु कवन भगति ते ॥
    साधसंगति पाई परम गते ॥ रहाउ ॥
    मैले कपरे कहा लउ धोवउ ॥
    आवैगी नीद कहा लगु सोवउ ॥1॥
    जोई जोई जोरिओ सोई सोई फाटिओ ॥
    झूठै बनजि उठि ही गई हाटिओ ॥2॥
    कहु रविदास भइओ जब लेखो ॥
    जोई जोई कीनो सोई सोई देखिओ ॥3॥1॥3॥1293॥

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