Hanso Aur Mar Jao Ashok Chakradhar हंसो और मर जाओ अशोक चक्रधर

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Hanso Aur Mar Jao Ashok Chakradhar
हंसो और मर जाओ अशोक चक्रधर

1. हंसो और मर जाओ - अशोक चक्रधर

हंसो, तो
बच्चों जैसी हंसी,
हंसो, तो
सच्चों जैसी हंसी।
इतना हंसो
कि तर जाओ,
हंसो
और मर जाओ।
हँसो और मर जाओ
 
चौथाई सदी पहले
लगभग रुदन-दिनों में
जिनपर
हम
हंसते-हंसते मर गए
उन
प्यारी बागेश्री को
समर-पति की ओर
स-समर्पित
 
श्वेत या श्याम
छटांक का ग्राम
धूम या धड़ाम
अविराम या जाम,
जैसा भी है
ये था उन दिनों का-
काम

2. ओज़ोन लेयर अशोक चक्रधर

पति-पत्नी में
बिलकुल नहीं बनती है,
बिना बात ठनती है।
खिड़की से निकलती हैं
आरोपों की बदबूदार हवाएं,
नन्हे पौधों जैसे बच्चे
खाद-पानी का इंतज़ाम
किससे करवाएं?
 
होते रहते हैं
शिकवे-शिकायतों के
कंटीले हमले,
सूख गए हैं
मधुर संबंधों के गमले।
नाली से निकलता है
घरेलू पचड़ों के कचरों का
मैला पानी,
नीरस हो गई ज़िंदगानी।
संबंध
लगभग विच्छेद हो गया है,
घर की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।
ashok-chakradhar
 
सब्ज़ी मंडी से
ताज़ी सब्ज़ी लाए गुप्ता जी
तो खन्ना जी मुरझा गए,
पांडे जी
कृपलानी के फ़्रिज को
आंखों-ही-आंखों में खा गए
जाफ़री के
नए-नए सोफ़े को
काट गई
कपूर साहब की
नज़रों की कुल्हाड़ी,
सुलगती ही रहती है
मिसेज़ लोढ़ा की
ईर्ष्या की काठ की हांडी।
 
सोने का सैट दिखाया
सरला आंटी ने
तो कट के रह गईं
मिसेज़ बतरा,
उनकी इच्छाओं की क्यारी में
नहीं बरसता है
ऊपर की कमाई के पानी का
एक भी क़तरा।
 
मेहता जी का
जब से प्रमोशन हुआ है,
शर्मा जी के अंदर कई बार
ज़बर्दस्त भूक्षरण हुआ है।
बीहड़ हो गई है
आपस की राम-राम,
बंजर हो गई है
नमस्ते दुआ सलाम।
 
बस ठूंठ-जैसा
एक मक़सद-विहीन सवाल है—
‘क्या हाल है?’
जवाब को भी जैसे
अकाल ने छुआ है
मुर्दनी अंदाज़ में—
‘आपकी दुआ है।’
 
अधिकांश लोग नहीं करते हैं
चंदा देकर
एसोसिएशन की सिंचाई,
सैक्रेट्री
प्रैसीडेंट करते रहते हैं
एक दूसरे की खिंचाई।
खुल्लमखुल्ला मतभेद हो गया है,
कॉलोनी की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।
 
बरगद जैसे बूढ़े बाबा को
मार दिया बनवारी ने
बुढ़वा मंगल के दंगल में,
रमतू भटकता है
काले कोटों वाली कचहरी के
जले हुए जंगल में।
अभावों की धूल
और अशिक्षा के धुएं से
काले पड़ गए हैं
गांव के कपोत
सूख गए हैं
 
चौधरियों की उदारता के
सारे जलस्रोत।
उद्योग चाट गए हैं
छोटे-मोटे धंधे,
कमज़ोर हो गए हैं
बैलों के कंधे।
छुट्टल घूमता है
सरपंच का बिलौटा,
रामदयाल
मानसून की तरह
शहर से नहीं लौटा।
 
सुजलाम् सुफलाम्
शस्य श्यामलाम् धरती जैसी
अल्हड़ थी श्यामा।
सब कुछ हो गया
लेकिन न शोर हुआ
न हंगामा।
दिल दरक गया है
लाखों हैक्टेअर
परती धरती की तरह
श्यामा का चेहरा
सफ़ेद हो गया है,
गांव की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।

3. जंगल गाथा अशोक चक्रधर

1.
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।
2.
पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया.
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?
मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है.
बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है.
कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है.

4. सुविचार अशोक चक्रधर

मन में इसी सुविचार का सुविचार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो
जनतंत्र के जज़्बात को जीमें नहीं
जोगी की या जुदेव की नाराज़गियाँ
नभ में कबूतर तो दिलेरी से उड़ें
ना हो दलेरों की कबूतर बाजियाँ
कौवों का गिद्धों का न स्वेच्छाचार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो
 
रूखे पड़े दिल बेरुखी से भर गए
पड़ती नहीं है प्रेम की परछाइयाँ
सब तेल घी तो तेलगी जी पी गए
बाकी कहाँ है स्नेह की चिकनाइयाँ
चिकनाइयों पर यों ना अत्याचार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो
 
खंदक में खुंदक से किया बंधक जिसे
लो तेल लेकिन गंध गंधक की न हो
सहमे हुए दहले हुए दिल में कभी
आतंक से बढ़ती हुई धक-धक न हो
दिल में गुणों की गुनगुनी गुंजार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो
 

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