Hindi Kavita
हिंदी कविता
Mahavir Aur Gadiwan Suryakant Tripathi Nirala
महावीर और गाड़ीवान सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
एक गाड़ीवान अपनी भरी गाड़ी लिए जा रहा था। गली में कीचड़ था। गाड़ी के पहिए एक खंदक में धँस गए। बैल पूरी ताकत लगाकर भी पहियों को निकाल न सके। बैलों को जुए से खोल देने की जगह गाड़ीवान ऊँचे स्वर में चिल्ला-चिल्लाकर इस बुरे वक्त में देवताओं की मदद माँगने लगा कि वे उसकी गाड़ी में हाथ लगाएँ। उसी समय सबसे बली देवता महावीर गाड़ीवान के सामने आकर खड़े हो गए, क्योंकि उसने उनका नाम लेकर कई दफे उन्हें पुकारा था।
उन्होंने कहा, ''अरे आलसी आदमी! पैंजनी से अपना कंधा लगा, और बैलों को बढ़ने के लिए ललकार। अगर इस तरह गाड़ी नहीं निकली, तब तेरा काम देवताओं को पुकारना होता है। क्या तुम्हारे विचार में यह आता है कि जब तुम खड़े हो, उन्हें तुम्हारे लिए काम करना पड़ता है? यह अनुचित है।''
जो अपनी मदद करता है, ईश्वर उसी की मदद करते हैं।
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