Hindi Kavita
हिंदी कविता
हारे को हरिनाम रामधारी सिंह 'दिनकर'
Haare Ko Harinaam Ramdhari Singh Dinkar
हारे को हरिनाम - रामधारी सिंह 'दिनकर'
सब शोकों का एक नाम है क्षमा
[१]
दहक उठे जो अंगारे बन नए
कुसुम-कोमल सपने थे
अंतर में जो गाँस मार गए
अधिक सबसे अपने थे
अब चल, उसके द्वार सहज जिसकी करुणा है
और कहाँ, किसका आंसू कब थमा?
ह्रदय, आकुल मत होना
[२]
आघातों से विषण्ण म्रियमाण
गान मत छोड़ अभय का
और न कर अब अधिक मार्ग-संधान
सिद्धि का, दैहिक जय का
सुख निद्रा की निशा, विपद जागरण प्रात का
किरणों पर चढ़ पकड़ प्रकृति उत्तमा
ह्रदय, आकुल मत होना
[३]
उषः लोक का पुलकाकुल कल रोर
मधुर जिसका प्रसाद है
दुर्दिन की झंझा में वज्र-कठोर
उसी का शंखनाद है
जिसका दिवस ललाट, उसी का निशा चिकुर है
रम उसमें, जो है दिगंत में रमा
ह्रदय, आकुल मत होना
हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं - रामधारी सिंह 'दिनकर'
हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
इतनी जगहों पर मिलती है
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
संसार संसार नहीं,
बेवकूफ़ियों का मेला है।
हर ज़िन्दगी एक सूत है
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है ।
मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
वह हर सूत की किस्मत को
पहचानता है।
सूत के टेढ़े या सीधे चलने का
क्या रहस्य है,
बुनकर इसे खूब जानता है।
राम, तुम्हारा नाम - रामधारी सिंह 'दिनकर'
राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,
दुख से त्राण नहीं माँगूँ।
माँगू केवल शक्ति दुख सहने की,
दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया
अकातर ध्यानमग्न रहने की।
देख तुम्हारे मृत्यु दूत को डरूँ नहीं,
न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं।
तुम चाहो, दूँ वही,
कृपण हौ प्राण नहीं माँगूँ।
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