लोक गीत सोहर अवधी Lok Geet Sohar -Awadhi

Hindi Kavita

लोक गीत सोहर अवधी
Lok Geet Sohar -Awadhi

चैत मास तिथि नौमी - Awadhi Sohar lok geet

चैत मास तिथि नौमी, त रामा जग्य रोपन्ही रे

अरे बिनु सितला जज्ञि सून, त को जज्ञि देखै रे 

सोने के खडउन्हा बशिष्ट धरे, सभवा अरज करैं रे

रामा सीता का लाओ बोलाई, त को जज्ञि देखै रे 

अगवां के घोड़वा बसिष्ठ मुनि, पिछवां के लछिमन रे

दुइनो हेरैं लागे ऋषि के मड़ईयाँ, जहां सीता ताप करैं रे

 

नहाई धोई सीता ठाढ़ी भई, झरोखन चित गवा रे

ऋषि आवत गुरु जी हमार, औ लछिमन देवर रे

 

गंगा से जल भर लाइन, औ थार परोसें रे

सीता गुरु जी के चरण पखारें, त माथे लगावैं रे

 

इतनी अकिल सीता तुम्हरे, जो सब गुन आगरि रे

सीता अस के तज्यो अजोध्या, लौटि नहि चितयू रे

 

काह कहौं मैं गुरु जी, कहत दुःख लागे सुनत दुःख लागे रे

ऐसा त्याग किया राम ने मेरा की सपने में भी नहीं आते

गुरु इतनी सांसत रामा डारैं, की सपन्यो न आवैं रे

 

सुधि करैं रामा वही दिनवां, की जौने दिना ब्याह करैं रे

रामा अस्सी मन केरा धनुस, त निहुरी उठावैं रे

 

सुधि करैं रामा वही दिनवां, की जौने दिना गौना लायें रे

रामा फुल्वन सेजिया सजावें, हिरदय मा लई के स्वावै रे

 

सुधि करैं रामा वही दिनवां, की जौने दिना बन चले रे

रामा हमका लिहिन संग साथ, साथ नहीं छोडें रे

 

सवना भादौना क रतिया, मैं गरुए गरभ से रे

गुरु ऊई रामा घर से निकारें, लौटि नहीं चितवहि रे?

 

गुरु जी का कहना न मेटबे, पैग दस चलबे रे

गुरु फाटै जो धरती समाबे, अजोध्या नहीं जाबै रे

गुरु फेर हियें चली औबे, राम नहीं देखबै रे

बंसी तो बाजी मेरे रंग-महल में - Awadhi Sohar lok geet

बंसी तो बाजी मेरे रंग-महल में

lok-geet-sohar-awadhi

सासू जो ऐहैं राजा चढ़वा चढ़न को,

उनहूँ को नेग दे देना मोरे अच्छे राजा,

उनहूँ को नेग दे देना मोरे भोले राजा,

मोती से उजले राजा,

फूलों से हलके राजा,

तारों से पतले राजा,

नैनों से नैन मिलाना, मुखड़े से हँस बतलाना,

रंग-महल में ।

 

जिठनी जो अइहैं राजा, पिपरी पिसन को…

ननदी जो अइहैं राजा छठिया धरन को…

देवर जो अइहैं राजा बंसी बजन को

चलो चली सखिया सहेलिया - Awadhi Sohar lok geet

चलो चली सखिया सहेलिया त हिलि मिलि सब चली हो

सखी जमुना का निर्मल नीर कलस भरि लाई हो

 

कोउ सखी हाथ मुख धोवें त कोउ सखी घैला बोरै हो

अरे जसुदा जी ठाढ़ी ओनावै कन्हैया कतौ रोवें हो

 

घैला त धरिन घिनूची पर गेडुरी तखत पर हो

जसुदा झपटि के चढ़ी महलिया कन्हैया कहाँ रोवै हो

 

चलो चली सखिया सहेलिया त हिलि मिलि सब चली हो

सखी जसुदा के बिछुड़े कन्हैया उन्हें समुझैबे हो

 

कई लियो तेलवा फुलेलवा आँखिन केरा कजरा हो

जसुदा कई लियो सोरहो सिंगार कन्हैया जानो नहीं भये हो

 

नीर बहे दूनो नैन दुनहु थन दूधा बहे हो

सखी भीजै चुनरिया का टोक मैं कैसे जानू नहीं भये हो

रामलला नहछू - Awadhi Sohar lok geet

आदि सारदा गनपति गौरि मनाइय हो।

रामलला कर नहछू गाइ सुनाइय हो।।

जेहि गाये सिधि होय परम निधि पाइय हो।

कोटि जनम कर पातक दूरि सो जाइय हो ।।१।।

 

कोटिन्ह बाजन बाजहिं दसरथ के गृह हो ।

देवलोक सब देखहिं आनँद अति हिय हो।।

नगर सोहावन लागत बरनि न जातै हो।

कौसल्या के हर्ष न हृदय समातै हो ।।२।।

 

आले हि बाँस के माँड़व मनिगन पूरन हो।

मोतिन्ह झालरि लागि चहूँ दिसि झूलन हो।।

गंगाजल कर कलस तौ तुरित मँगाइय हो।

जुवतिन्ह मंगल गाइ राम अन्हवाइय हो ।।३।।

 

गजमुकुता हीरामनि चौक पुराइय हो।

देइ सुअरघ राम कहँ लेइ बैठाइय हो।।

कनकखंभ चहुँ ओर मध्य सिंहासन हो।

मानिकदीप बराय बैठि तेहि आसन हो ।।४।।

 

बनि बनि आवति नारि जानि गृह मायन हो।

बिहँसत आउ लोहारिनि हाथ बरायन हो।।

अहिरिनि हाथ दहेड़ि सगुन लेइ आवइ हो।

उनरत जोबनु देखि नृपति मन भावइ हो ।।५।।

 

रूपसलोनि तँबोलिनि बीरा हाथहि हो।

जाकी ओर बिलोकहि मन तेहि साथहि हो।।

दरजिनि गोरे गात लिहे कर जोरा हो।

केसरि परम लगाइ सुगंधन बोरा हो ।।६।।

 

मोचिनि बदन-सकोचिनि हीरा माँगन हो।

पनहि लिहे कर सोभित सुंदर आँगन हो।।

बतिया कै सुधरि मलिनिया सुंदर गातहि हो।

कनक रतनमनि मौरा लिहे मुसुकातहि हो।।७।।

 

कटि कै छीन बरिनिआँ छाता पानिहि हो।

चंद्रबदनि मृगलोचनि सब रसखानिहि हो।।

नैन विसाल नउनियाँ भौं चमकावइ हो।

देइ गारी रनिवासहि प्रमुदित गावइ हो ।।८।।

 

कौसल्या की जेठि दीन्ह अनुसासन हो।

"नहछू जाइ करावहु बैठि सिंहासन हो"।।

गोद लिहे कौसल्या बैठी रामहि बर हो।

सोभित दूलह राम सीस पर आँचर हो ।।९।।

 

नाउनि अति गुनखानि तौ बेगि बोलाई हो।

करि सिँगार अति लोन तो बिहसति आई हो।।

कनक-चुनिन सों लसित नहरनी लिये कर हो।

आनँद हिय न समाइ देखि रामहि बर हो ।।१०।।

 

काने कनक तरीवन, बेसरि सोहइ हो।

गजमुकुता कर हार कंठमनि मोहइ हो।।

कर कंचन, कटि किंकिन, नूपुर बाजइ हो।

रानी कै दीन्हीं सारी तौ अधिक बिराजइ हो ।।११।।

 

काहे रामजिउ साँवर, लछिमन गोर हो।

कीदहुँ रानि कौसलहि परिगा भोर हो।।

राम अहहिं दसरथ कै लछिमन आन क हो।

भरत सत्रुहन भाइ तौ श्रीरघुनाथ क हो ।।१२।।

 

आजु अवधपुर आनँद नहछू राम क हो।

चलहू नयन भरि देखिय सोभा धाम क हो।।

अति बड़भाग नउनियाँ छुऐ नख हाथ सों हों

नैनन्ह करति गुमान तौ श्रीरघुनाथ सों हो ।।१३।।

 

जो पगु नाउनि धोवइ राम धोवावइँ हो।

सो पगधूरि सिद्ध मुनि दरसन पावइ हो।।

अतिसय पुहुप क माल राम-उर सोहइ हो।।

तिरछी चितिवनि आनँद मुनिमुख जोहइ हो ।।१४।।

 

नख काटत मुसुकाहिं बरनि नहिं जातहि हो।

पदुम-पराग-मनिमानहुँ कोमल गातहि हो।।

जावक रचि क अँगुरियन्ह मृदुल सुठारी हो।

प्रभू कर चरन पछालि तौ अनि सुकुमारी हो ।।१५।।

 

भइ निवछावरि बहु बिधि जो जस लायक हो ।

तुलसिदास बलि जाउँ देखि रघुनायक हो।।

राजन दीन्हे हाथी, रानिन्ह हार हो।

भरि गे रतनपदारथ सूप हजार हो ।।१६।।

 

भरि गाड़ी निवछावरि नाऊ लेइ आवइ हो।

परिजन करहिं निहाल असीसत आवइ हो।।

तापर करहिं सुमौज बहुत दुख खोवहिँ हो।

होइ सुखी सब लोग अधिक सुख सोवहिं हो ।।१७।।

 

गावहिं सब रनिवास देहिं प्रभु गारी हो।

रामलला सकुचाहिं देखि महतारी हो।।

हिलिमिलि करत सवाँग सभा रसकेलि हो।

नाउनि मन हरषाइ सुगंधन मेलि हो ।।१८।।

 

दूलह कै महतारि देखि मन हरषइ हो।

कोटिन्ह दीन्हेउ दान मेघ जनु बरखइ हो।।

रामलला कर नहछू अति सुख गाइय हो।

जेहि गाये सिधि होइ परम निधि पाइय हो ।।१९।।

 

दसरथ राउ सिंहसान बैठि बिराजहिं हो।

तुलसिदास बलि जाहि देखि रघुराजहि हो।।

जे यह नहछू गावैं गाइ सुनावइँ हो।

ऋद्धि सिद्धि कल्यान मुक्ति नर पावइँ हो ।।२०।।

(तुलसीदास)

द्वारे से राजा आए - Awadhi Sohar lok geet

द्वारे से राजा आए, मुस्की छांटत आए, बिरवा कूचत आए हो

रानी अब तोरे दिन नागिचाने, बहिनिया का आनी लावों हो

 

हमरे अड़ोस हवे, हमरे पड़ोस हवे, बूढी अईया घरही बाटे हो,

राजा तुम दुई भौरा लगायो त वहे हम खाई लेबै, ननदी का काम नहीं हो

हम तो सोचेन राजा हाट गे हैं, हाट से बजार गें हैं हो

राजा गएँ बैरिनिया के देस, त हम्मै बगदाय गए हो

 

छानी छपरा तूरे डारें, बर्तन भडुआ फोरे डारें,बूढा का ठेर्राय डारे हो

बहिनी आए रही बैरन हमारी, त पर्दा उड़त हवे हो

 

अंग अंग मोरा बांधो, त गरुए ओढाओ, काने रुइया ठूसी दियो हो,

बहिनी हमरे त आवे जूडी ताप, ननदिया का नाम सुनी हो

 

अपना त अपना आइहैं, सोलह ठाईं लरिका लैहै,घर बन चुनी लैहैं,

कुआँ पर पंचाईत करिहैं हो बहिनी यह घर घलिनी ननदिया त हमका उजाड़ी जाई हो. 


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