नक़्शे-फ़रियादी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ Nakshay faryadi Faiz Ahmad Faiz

Hindi Kavita

नक़्शे-फ़रियादी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Nakshay faryadi Faiz Ahmad Faiz

चश्मे-मयगूं ज़रा इधर कर दे

चश्मे-मयगूँ ज़रा इधर कर दे

दस्ते-कुदरत को बे-असर कर दे

 तेज़ है आज दर्दे-दिल साक़ी

तल्ख़ी-ए-मय को तेज़तर कर दे

जोशे-वहशत है तिश्नःकाम अभी

चाक-दामन को ता-जिगर कर दे

 

मेरी क़िस्मत से खेलनेवाले

मुझको क़िस्मत से बेख़बर कर दे

 

लुट रही है मिरी मताए-नियाज़

काश वह इस तरफ़ नज़र कर दे

 

'फ़ैज़' तकमीले-आरज़ू मा'लूम

हो सके तो यूँ ही बसर कर दे 

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

दोनों जहान तेरी मोहब्बत मे हार के

वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के

 

वीराँ है मयकदः ख़ुमो-सागर उदास हैं

तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के

 

इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली, वो भी चार दिन

देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के

 

दुनिया ने तेरी याद से बेगानः कर दिया

तुम से भी दिलफ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

 

भूले से मुस्कुरा तो दिये थे वो आज ’फ़ैज़’

मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दःकार के

 

(मयकदः=शराबघर, ख़ुमो-सागर=सुराही

और जाम, परवरदिगार=ख़ुदा, नाकर्दःकार=

अनुभवहीन)

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हर हकीकत मजाज़ हो जाए

हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए

काफ़िरों की नमाज़ हो जाए

 

दिल रहीने-नियाज़ हो जाए

बेकसी कारसाज़ हो जाए

 

मिन्नते-चाराःसाज़ कौन करे

दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए

 

इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो

लब पे आए तो राज़ हो जाए

 

लुत्फ़ का इन्तज़ार करता हूँ

जौर ता-हद्दे-नाज़ हो जाए

 

उम्र बे-सूद कट रही है 'फ़ैज़'

काश अफ़शां-ए-राज़ हो जाए

 

(मजाज़=भ्रम, रहीने-नियाज़=

श्रद्धा से पूर्ण, रुस्वा=बदनाम, जौर=

अत्याचार, अफ़शां-ए-राज़=रहस्योदघाटन)

हिम्मते-इल्तिजा नहीं बाकी

हिम्मते-इल्तिजा नहीं बाक़ी

ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी

 

इक तिरी दीद छिन गई मुझसे

वरनः दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

 

अपनी मश्क़े-सितम से हाथ न खैंच

मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी

 

तेरी चश्मे-अलमनवाज़ की ख़ैर

दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी

 

हो चुका ख़त्म अ'हदे-हिज्रो-विसाल

ज़िंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी

 

(मश्क़े-सितम=अत्याचार का अभ्यास,

चश्मे-अलमनवाज़=दुख को पूछने वाली

आँख, अ'हदे-हिज्रो-विसाल=विरह और

मिलन के दिन) 

हुस्न-मरहूने-जोशे-बादः-ए-नाज़

हुस्न-मरहूने-जोशे-बादः-ए-नाज़

इश्क़ मिन्नतकशे-फ़ुसूने-नियाज़

 

दिल का हर तार लरज़िशे-पैहम

जाँ का हर रिश्तः वक़्फ़े-सोज़ो-गुदाज़

 

सोज़िशे-दर्दे-दिल-किसे मालूम

कौन जाने किसी के इश्क़ का राज़

 

मेरी ख़ामोशियों में लरज़ाँ है

मेरे नालों की गुमशुदा आवाज़

 

हो चुका इ'श्क़ अब हवस ही सही

क्या करें फ़र्ज़ है अदा-ए-नमाज़

 

तू है और इक तग़ाफ़ुले-पैहम

मैं हूँ और इंतज़ारे-बेअंदाज़

 

ख़ौफ़े-नाकामी-ए-उमीद है 'फ़ैज़'

वरनः दिल तोड़ दे तिलिस्मे-मजाज़

(मरहूने-जोशे-बादः-ए-नाज़=शराब

और सौन्दर्य की उमंग में डूबा हुआ,

मिन्नतकशे-फ़ुसूने-नियाज़=दर्शन के

जादू का अभिलाषी, लरज़िशे-पैहम=

निरंतर कंपन, वक़्फ़े-सोज़ो-गुदाज़=

जलन और नर्मी पर निछावर, तग़ाफ़ुले-

पैहम=निरंतर उपेक्षा, तिलिस्मे-मजाज़=

संसार का भ्रम, मायाजाल)

इश्क मिन्नतकशे-करार नहीं

इश्क़ मिन्नतकशे-क़रार नहीं

हुस्न मज़बूरे-इंतज़ार नहीं

 

तेरी रंजिश की इंतिहा मालूम

हसरतों का मिरी शुमार नहीं

 

अपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी

मय ब‍अंदाज़ः-ए-ख़ुमार नहीं

 

ज़ेरे-लब है अभी तबस्सुमे-दोस्त

मुन्तशिर जल्वः-ए-बहार नहीं

 

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

वरनः तुझसे तो मुझको प्यार नहीं

 

चारः-ए-इंतज़ार कौन करे

तेरी नफ़रत भी उस्तवार नहीं

 

'फ़ैज़' ज़िंदा रहें वो हैं तो सही

क्या हुआ गर वफ़ाशेआ'र नहीं

 

(मिन्नतकशे-क़रार=चैन का इच्छुक,

ब‍अंदाज़ः-ए-ख़ुमार=उतरा नशा पूरा

करने भर को, मुन्तशिर=बिखरा हुआ,

तकमील=पूर्ति, चारः-ए-इंतज़ार=प्रतीक्षा

का समधान, वफ़ाशेआ'र=वफ़ा करने वाला)

 

कई बार इसका दामन भर दिया हुस्ने-दो-आलम से

कई बार इसका दामन भर दिया हुस्ने-दो-आलम से

मगर दिल है केः उसकी ख़ानःविरानी नहीं जाती

 

कई बार इसकी ख़ातिर ज़र्रे-ज़र्रे का जिगर चीरा

मगर ये चश्मे-हैराँ, जिसकी हैरानी नहीं जाती

 

नहीं जाती मताए'-लालो-गौहर की गराँयाबी

मताए'-ग़ैरतो-ईमाँ की अरज़ानी नहीं जाती

 

मिरी चश्मे-तन आसाँ को बसीरत मिल गई जब से

बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती

 

सरे-ख़ुसरव से नाज़े-कजकुलाही छिन भी जाता है

कुलाहे-ख़ुसरवी से बू-ए-सुल्तानी नहीं जाती

 

बजुज़ दीवानगी वाँ और चारः ही कहो क्या है

जहाँ अक़्लो-ख़िरद की एक भी मानी नहीं जाती

 

(दो-आलम=लोक-परलोक, मताए'-लालो-गौहर=

हीरे-मोती की दौलत, गराँयाबी=महँगापन, मताए'-

ग़ैरतो-ईमाँ=स्वाभिमान और सच्चाई कीदौलत,

अरज़ानी=सस्तापन, आसाँ=आलसी, बसीरत=

देखने की ताक़त, सरे-ख़ुसरव=बादशाह का सर,

नाज़े-कजकुलाही=राजत्व का गौरव, कुलाहे-ख़ुसरवी=

बादशाह का ताज, अक़्लो-ख़िरद=समझ-बूझ)

 

कुछ दिन से इंतज़ारे-सवाले-दिगर में है

कुछ दिन से इंतज़ारे-सवाले-दिगर में है

वह मुज़्महिल हया जो किसी की नज़र में है

 

सीखी यहीं मिरे दिले-काफ़िर ने बंदगी

रब्बे-करीम है तो तिरी रहगुज़र में है

 

माज़ी में जो मज़ा मिरी शामो-सहर में था

अब वह फ़क़त तसव्वुरे-शामो-सहर में है

 

क्या जाने किसको किससे है अब दाद की तलब

वह ग़म जो मेरे दिल में है तेरी नज़र में है

 

(इंतज़ारे-सवाले-दिगर=दूसरे सवाल की प्रतीक्षा,

मुज़्महिल=बुझी हुई,क्षीण)

 

नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं

नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं

क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं

 

जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है

सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं

 

अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो

केः लुटने-लुटाने के दिन आ रहे हैं

 

टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती

निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं

 

सबा फिर हमें पूछती फिर रही है

चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं

 

चलो ’फ़ैज़’ फिर से कहीं दिल लगायें

सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं

 

फिर हरीफ़े-बहार हो बैठे

फिर हरीफ़े-बहार हो बैठे

जाने किस-किस को आज रो बैठे

 

थी मगर इतनी रायगाँ भी न थी

आज कुछ ज़िन्दगी से खो बैठे

 

तेरे दर तक पहुँच के लौट आए

इ’श्क़ की आबरू डुबो बैठे

 

सारी दुनिया से दूर हो जाए

जो ज़रा तेरे पास हो बैठे

 

न गई तेरी बे-रुख़ी न गई

हम तिरी आरज़ू भी खो बैठे

 

फ़ैज़ होता रहे जो होना है

शे’र लिखते रहा करो बैठे

 

(हरीफ़=दुश्मन, रायगाँ=व्यर्थ)

 

फिर लौटा है ख़ुरशीदे-जहांताब सफ़र से

फिर लौटा है ख़ुरशीदे-जहाँताब सफ़र से

फिर नूरे-सहर दस्तो-गरेबाँ है सहर से

 

फिर आग भड़कने लगी हर साज़े-तरब से

फिर शो'ले लपकने लगे हर दीदः-ए-तर से

 

फिर निकला है दीवानः कोई फूँक के घर को

कुछ कहती है हर राह हर इक राहगुज़र से

 

वो रंग है इमसाल गुलिस्ताँ की फ़ज़ा का

ओझल हुई दीवारे-क़फ़स हद्दे-नज़र से

 

साग़र तो खनकते हैं शराब आए न आए

बादल तो गरजते हैं घटा बरसे न बरसे

 

पापोश की क्या फ़िक्र है, दस्तार सँभालो

पायाब है जो मौज गुज़र जाएगी सर से

 

(ख़ुरशीदे-जहाँताब=दुनिया को रौशनी देने

वाला सूरज, नूरे-सहर=सुबह की रौशनी,

दस्तो-गरेबाँ=उलझी हुई,गरेबाँ हाथ में पकड़े

हुए, साज़े-तरब=मस्ती का साज़, दीदः-ए-तर=

भीगी आँख, पापोश=जूता, दस्तार=पगड़ी,

पायाब=पैर तक)

 

राज़े-उल्फ़त छुपा के देख लिया

राज़े-उल्फ़त छुपा के देख लिया

दिल बहुत कुछ जला के देख लिया

 

और क्या देखने को बाक़ी है

आप से दिल लगा के देख लिया

 

वो मिरे हो के भी मेरे न हुए

उनको अपना बना के देख लिया

 

आज उनकी नज़र में कुछ हमने

सबकी नज़रें बचा के देख लिया

 

'फ़ैज़' तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी

इश्क़ को आज़मा के देख लिया

 

आस उस दर से टूटती ही नहीं

जा के देखा, न जा के देख लिया

 

(तक़्मील-ए-ग़म=दुख की पूर्ति)

 

वफ़ा-ए-वा'दः नहीं, वा'दः-ए-दिगर भी नहीं

वफ़ा-ए-वा'दः नहीं, वा'दः-ए-दिगर भी नहीं

वो मुझसे रूठे तो थे, लेकिन इस क़दर भी नहीं

 

बरस रही है हरीमे-हवस मे दौलते-हुस्न

गदा-ए-इश्क़ के कासे मे इक नज़र भी नहीं

 

न जाने किसलिए उम्मीदवार बैठा हूँ

इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

 

निगाहे-शौक़ सरे-बज़्म बे-हिजाब न हो

वो बे-ख़बर ही सही, इतने बे-ख़बर भी नहीं

 

ये अ'हदे-तर्क़े-मोहब्बत है किसलिये आख़िर

सुकूने-क़ल्ब इधर भी नहीं, उधर भी नहीं

 

(हरीमे-हवस=वासना का घर, गदा-ए-इश्क़=

प्रेम का भिखारी, बे-हिजाब=निर्लज्ज, अ'हदे-तर्क़े-

मोहब्बत=प्रेम को त्याग देने का प्रण, सुकूने-क़ल्ब=

हृदय की शान्ति)

 

वो अहदे-ग़म की काहिशहा-ए-बेहासिल को क्या समझे

वो अह्दे-ग़म की काहिशहा-ए-बेहासिल को क्या समझे

जो उनकी मुख़्तसर रूदाद भी सब्र-आज़मा समझे

 

यहाँ वाबस्तगी, वाँ बरहमी , क्या जानिए क्यों है

न हम अपनी नज़र समझे, न हम उनकी अदा समझे

 

फ़रेबे-आरज़ू की सह‍ल-अंगारी नहीं जाती

हम अपने दिल की धड़कन को तिरी आवाज़े-पा समझे

 

तुम्हारी हर नज़र से मुनसलिक है रिश्तः-ए-हस्ती

मगर ये दूर की बातें कोई नादान क्या समझे

 

न पूछो अह्दे-उल्फ़त की, बस इक ख़्वाबे-परीशाँ था

न दिल को राह पर लाए, न दिल को मुद्द‍आ समझे

 

(अह्दे-ग़म=दुख के दिन, काहिशहा-ए-बेहासिल=

व्यर्थ वेदना, सब्र-आज़मा=उकता देने वाला, बरहमी=

नाराज़गी, सह‍ल-अंगारी=सुगमता की खोज, मुनसलिक=

बँधा हुआ, ख़्वाबे-परीशाँबिखरा हुआ सपना, मुद्द‍आ= उद्देश्य)

 

ख़ुदा वह वक्त न लाये

ख़ुदा वह वक्त न लाये कि सोगवार हो तू

सुकूं की नींद तुझे भी हराम हो जाये

तिरी मसर्रत-ए-पैहम तमाम हो जाये

तिरी हयात तुझे तलख़ जाम हो जाये

 

ग़मों से आईना-ए-दिल गुदाज़ हो तेरा

हुजूम-ए-यास से बेताब होके रह जाये

वफ़ूर-ए-दर्द से सीमाब होके रह जाये

तिरा शबाब फ़कत ख्वाब होके रह जाये

 

गुरूर-ए-हुस्न सरापा नयाज़ हो तेरा

तवील रातों में तू भी करार को तरसे

तिरी निगाह किसी ग़मगुसार को तरसे

ख़िज़ांरसीदा तमन्ना बहार को तरसे

 

कोई जबीं न तिरे संग-ए-आसतां पे झुके

कि जिनस-ए-इजज़ो-अकीदत से तुझको शाद करे

फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्दा पे ऐतमाद करे

ख़ुदा वह वक्त न लाये कि तुझको याद आये

 

वह दिल कि तेरे लिए बेकरार अब भी है

वह आंख जिसको तिरा इंतज़ार अब भी है

 

(मसर्रत-ए-पैहम=लगातार ख़ुशी, गुदाज़=भारी,

हुजूम-ए-यास=निराशायों की भीड़,, वफ़ूर=अति,

सीमाब=पारा, नयाज़=श्रद्धा, संग-ए-आसतां=

चौखट का पत्थर, जिनस-ए-इजज़ो-अकीदत=नम्रता

और श्रद्धा, फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्दा=भविष्य के वादे का धोखा)

 

इंतेहा-ए-कार

पिन्दार के ख़ूगर को

नाकाम भी देखोगे

आग़ाज़ से वाकिफ़ हो

अंजाम भी देखोगे

 

रंगीनी-ए-दुनिया से

मायूस-सा हो जाना

दुखता हुआ दिल लेकर

तनहायी में खो जाना

 

तरसी हुयी नज़रों को

हसरत से झुका लेना

फ़रियाद के टुकड़ों को

आहों में छुपा लेना

 

रातों की ख़ामोशी में

छुपकर कभी रो लेना

मजबूर जवानी के

मलबूस को धो लेना

 

जज़बात की वुसअत को

सिजदों से बसा लेना

 

भुली हुयी यादों को

सीने से लगा लेना

 

(इंतेहा-ए-कार=काम का

अंत, पिन्दार=अहंकार,

ख़ूगर=आदत से, मलबूस=

कपड़े, वुसअत=फैलाव)

 

अंजाम

हैं लबरेज़ आहों से ठंडी हवाएं

उदासी में डूबी हुयी हैं घटाएं

 

मुहब्बत की दुनिया में शाम आ चुकी है

सियहपोश हैं ज़िन्दगी की फ़ज़ाएं

 

मचलती हैं सीने में लाख आरज़ूएं

तड़पती हैं आंखों में लाख इलतिजाएं

 

तग़ाफ़ुल के आग़ोश में सो रहे हैं

तुमहारे सितम और मेरी वफ़ाएं

 

मगर फिर भी ऐ मेरे मासूम कातिल

तुमहें पयार करती हैं मेरी दुआएं

 

(लबरेज़=भरीं हुई, इलतिजा=

बेनती, तग़ाफ़ुल =अनदेखी करना)

 

सरोदे-शबाना

-1

गुम है इक कैफ़ में फ़ज़ा-ए-हयात

ख़ामुशी सिजदा-ए-नियाज़ में है

हुसन-ए-मासूम ख़वाब-ए-नाज़ मैं है

 

ऐ कि तू रंग-ओ-बू का तूफ़ां है

ऐ कि तू जलवागर बहार में है

ज़िन्दगी तेरे इख़तियार में है

 

फूल लाखों बरस नहीं रहते

दो घड़ी और है बहार-ए-शबाब

आ कि कुछ दिल की सुन सुना लें हम

आ मुहब्बत के गीत गा लें हम

 

मेरी तनहाईयों पे शाम रहे

हसरत-ए-दीद नातमाम रहे

 

दिल में बेताब है सदा-ए-हयात

आंख गौहर निसार करती है

आसमां पर उदास हैं तारे

चांदनी इंतज़ार करती है

 

आ कि थोड़ा-सा पयार कर लें हम

ज़िन्दगी ज़रनिगार कर लें हम

 

(सरोद-ए-शबाना=रात का संगीत, कैफ़=नशा,

सिजदा-ए-नियाज़=श्रद्धा के साथ झुकना, निसार=

कुर्बान, ज़रनिगार=सुनहरी)

 

आख़िरी ख़त

वह वक्त मेरी जान बहुत दूर नहीं है

जब दर्द से रुक जायेंगी सब ज़ीसत की राहें

और हद से गुज़र जायेगा अन्दोह-ए-नेहानी

थक जायेंगी तरसी हुयी नाकाम निगाहें

छिन जायेंगे मुझसे मिरे आंसू, मिरी आहें

छिन जायेगी मुझसे मिरी बेकार जवानी

 

शायद मिरी उल्फ़त को बहुत याद करोगी

अपने दिल-ए-मासूम को नाशाद करोगी

आओगी मिरी गोर पे तुम अश्क बहाने

नौख़ेज़ बहारों के हसीं फूल चढ़ाने

 

शायद मिरी तुरबत को भी ठुकराके चलोगी

शायद मिरी बे-सूद वफ़ायों पे हंसोगी

इस वज़ए-करम का भी तुमहें पास न होगा

लेकिन दिल-ए-नाकाम का एहसास न होगा

 

अलकिस्सा मआल-ए-ग़म-ए-उल्फ़त पे हंसो तुम

या अश्क बहाती रहो फ़रियाद करो तुम

माज़ी पे नदामत हो तुम्हें या कि मसर्रत

ख़ामोश पड़ा सोयेगा वामांदा-ए-उल्फ़त 

हसीना-ए-ख्याल से

मुझे दे दो

रसीले होंठ, मासूमाना पेशानी, हसीं आंखें

कि मैं इक बार फिर रंगीनियों में ग़र्क हो जाऊं

मिरी हसती को तेरी इक नज़र आग़ोश में ले ले

हमेशा के लिए इस दाम में महफ़ूज़ हो जाऊं

ज़िया-ए-हुस्न से ज़ुल्मात-ए-दुनिया में न फिर आऊं

 

गुज़शता हसरतों के दाग़ मेरे दिल से धुल जायें

मैं आनेवाले ग़म की फ़िक्र से आज़ाद हो जाऊं

मिरे माज़ी-ओ-मुस्तकबिल सरासर महव हो जायें

मुझे वह इक नज़र, इक जाविदानी-सी नज़र दे दे

 

(बराऊनिंग)

 

(दाम=जाल, ज़िया-ए-हुस्न=रूप की ज्योति,

माज़ी-ओ-मुस्तकबिल=भूत-भविष्य, जाविदानी=

अमर)

 

मिरी जां अब भी अपना हुस्न फेर दे मुझको

मिरी जां अब भी अपना हुस्न फेर दे मुझको

अभी तक दिल में तेरे इश्क की कन्दील रौशन है

तिरे जलवों से बज़मे-ज़िन्दगी जन्नत-ब-दामन है

मिरी रूह अब भी तन्हायी में तुझको याद करती है

हर इक तारे-नफ़स में आरज़ू बेदार है अब भी

हर इक बेरंग साअत मुंतज़िर है तेरी आमद की

निगाहें बिछ रही हैं रास्ता ज़रकार है अब भी

 

मगर जाने-हज़ीं सदमे सहेगी आख़िरश कब तक

तिरी बे-मेहर्यों पे जान देगी आख़िरश कब तक

तिरी आवाज़ में सोयी हुयी शीरीनीयां आख़िर

मिरे दिल की फ़सुरद खिलवतों में न पायेंगी

ये अश्कों की फ़रावानी में धुन्दलायी हुयी आंखें

तिरी रानाईयों की तमकनत को भूल जायेंगी

 

पुकारेंगे तुझे तो लब कोई लज़्ज़त न पायेंगे

गुलू में तेरी उल्फ़त के तराने सूख जायेंगे

 

मबादा यादहा-ए-अहदे-माज़ी महव हो जायें

ये पारीना फ़साने मौजहा-ए-ग़म में खो जायें

मिरे दिल की तहों से तेरी सूरत धुल के बह जाये

हरीमे-इश्क की शमअ-ए-दरख़शां बुझके रह जाये

मबादा अजनबी दुनिया की ज़ुल्मत घेर ले तुझको

मिरी जां अब भी अपना हुस्न फेर दे मुझको

 

(तारे-नफ़स=साँसों की डोर, ज़रकार=सुनहरी

काम वाला, जाने-हज़ीं=दुखी जान, फ़सुरद=उदास,

ख़िलवत=एकांत, फ़रावानी=अधिक, रानाईयों=

सुन्दरता, तमकनत=तड़क-भड़क, मबादा=कहीं

ऐसा न हो, पारीना=पुराने, मौजहा-ए-ग़म=दुख

की लहरें, हरीमे-इश्क =प्रेम-घर)

 

बाद अज़ वक़्त

दिल को एहसास से दो चार न कर देना था

साज़े-ख्वाबीदा को बेदार न कर देना था

 

अपने मासूम तबस्सुम की फ़रावानी को

वुसअत-ए-दीद पे गुलबार न कर देना था

 

शौके-मजबूर को बस इक झलक दिखलाकर

वाकिफ़े-लज़्ज़ते-तकरार न कर देना था

 

चश्मे-मुश्ताक की ख़ामोश तमन्नायों को

यक-ब-यक मायले-गुफ़तार न कर देना था

 

जलवा-ए-हुस्न को मसतूर ही रहने दो

हसरते-दिल को गुनहगार न कर देना था

 

(साज़े-ख्वाबीदा=सोया साज़, गुलबार=फूल

बरसाना, चश्मे-मुश्ताक=चाहतीं आँखें, मायले-

गुफ़तार=बोलने के लिए तैयार, मसतूर=गुप्त)

 

सरोदे-शबाना

-2

नीम शब, चांद, ख़ुद-फ़रामोशी

महफ़िले-हस्ती-बूद वीरां है

पैकरे-इल्तिजा है ख़ामोशी

बज़मे-अंजुम फ़सुरदा-सामां है

आबशारे-सुकूत जारी है

चार सू बेख़ुदी सी तारी है

ज़िन्दगी जुज़वे-ख्वाब है गोया

सारी दुनिया सराब है गोया

सो रही है घने दरख़तों पर

चांदनी की थकी हुयी आवाज़

कहकशां नीम-वा निगाहों से

कह रही है हदीसे-शौके-नयाज़

साज़े-दिल के ख़ामोश तारों से

छन रहा है ख़ुमारे-कैफ़ आगीं

आरज़ू ख्वाब, तेरा रू-ए-हसीं

 

(महफ़िले-हस्ती-बूद=है और

था की दुनिया, पैकरे-इल्तिजा=

विनती का रूप, बज़मे-अंजुम=

तारों की महफिल, फ़सुरदा-सामां=

बुझी हुई, आबशारे-सुकूत=शान्ति

का झरना, सराब=मृग-त्रिशना,

ख़ुमारे-कैफ़ आगीं=मादक नशा,

रू=मुँह)

 

इंतज़ार

गुज़र रहे हैं सबो-रोज़ तुम नहीं आतीं

 

रियाज़े-ज़ीसत है आज़ुरदा-ए-बहार अभी

मिरे ख्याल की दुनिया है सोगवार अभी

जो हसरतें तिरे ग़म की कफ़ील हैं, प्यारी

 

अभी तलक मिरी तन्हाईयों में बसती हैं

तवील रातें अभी तक तवील हैं, प्यारी

उदास आंखें तिरी दीद को तरसती हैं

 

बहारे-हुस्न पे पाबन्दी-ए-जफ़ा कब तक

ये आज़मायशे-सबरे-गुरेज़पा कब तक

कसम तुम्हारी, बहुत ग़म उठा चुका हूं मैं

 

ग़लत था दाव-ए-सबरो-शकेब आ जाओ

करारे-ख़ातिरे-बेताब थक गया हूं मैं

 

(रियाज़े-ज़ीसत=ज़िंदगी का अभ्यास,

आज़ुरदा=सताया हुआ, कफ़ील=बंद,

आज़मायशे-सबरे-गुरेज़पा=बार बार

टूटने वाले सबर का इम्तिहान, सबरो-

शकेब=धीरज, करारे-ख़ातिरे-बेताब=

बेचैन दिल की शान्ति)

 

तहे-नुज़ूम

तहे-नुज़ूम कहीं चांदनी के दामन में

हुजूमे-शौक से इक दिल है बे-करार अभी

ख़ुमारे-ख्वाब से लबरेज़ अहमरी आंखें

सफ़ेद रुख़ पे परीशान अम्बरी आंखें

छलक रही है जवानी हर इक बुने-मू से

रवां हो बरगे-गुले-तर से जैसे सैले-शमीम

ज़िया-ए-मह में दमकता है रंगे-पैराहन

अदा-ए-इजज़ से आंचल उड़ा रही है नसीम

दराज़ कद की लचक से गुदाज़ पैदा है

उदास आंखों में ख़ामोश इल्तिजाएं हैं

दिले-हजीं में कई जां-ब-लब दुआएं हैं

तहे-नुज़ूम कहीं चांदनी के दामन में

किसी का हुस्न है मसरूफ़े-इंतज़ार अभी

कहीं ख्याल के आबादकरदा गुलशन में

है एक गुल कि नावाकिफ़े-बहार अभी

 

(तहे-नुजूम=तारों के नीचे, अहमरी=लाल,

अम्बरी=सुगंधित, बुने-मू=रोम-रोम, सैले-

शमीम=ठंडी हवा का झोंका, ज़िया=रोशनी,

अदा-ए-इजज़=कोमलता, हजीं=दुखी)

 

हुस्न और मौत

जो फूल सारे गुलसितां में सबसे अच्छा हो

फ़रोग़े-नूर हो जिससे फ़ज़ा-ए-रंगीं में

ख़िज़ां के जौरो-सितम को न जिसने देखा हो

बहार ने जिसे ख़ूने-जिगर से पाला हो

वो एक फूल समाता है चश्में-गुलचीं में

 

हज़ार फूलों से आबाद बाग़े-हसती है

अजल की आंख फ़कत एक को तरसती है

कई दिलों की उम्मीदों का जो सहारा हो

फ़ज़ा-ए-दहर की आलूदगी से बाला हो

जहां में आके अभी जिसने कुछ न देखा हो

न कहते-ऐशो-मसर्रत, न ग़म की अरज़ानी

 

कनारे-रहमते-हक में उसे सुलाती है

सुकूते-शब में फ़रिशतों की मरसीये:ख़वानी

तवाफ़ करने को सुबहे-बहार आती है

सबा चढ़ाने को जन्नत के फूल लाती है

 

(फ़रोग़े-नूर=रौशनी का विस्तार, जौरो-

सितम=ज़ुल्म, अजल=मौत, फ़ज़ा-ए-दहर=

दुनिया की हवा, आलूदगी=लिप्त होना, कहते-

ऐशो-मसर्रत=सुख की कमी, अरज़ानी=सस्तापण,

कनारे-रहमते-हक=ईश्वर की दयालू गोद, सुकूते-

शब=रात का सन्नाटा, तवाफ़=परिक्रमा)

 

तीन मंज़र

तसव्वुर

 

शोख़ियां मुज़तर निगाहे-दीदा-ए-सरशार में

इशरतें ख्वाबीदा रंगे-ग़ाजा-ए-रुख़सार में

सुरख़ होठों पर तबस्सुम की ज़ियाएं, जिस तरह

यासमन के फूल डूबे हों मये-गुलनार में

 

सामना

 

छनती हुयी नज़रों से जज़बात की दुनियाएं

बेख्वाबीयां, अफ़साने, महताब, तमन्नाएं

कुछ उलझी हुयी बातें, कुछ बहके हुए नग़मे

कुछ अश्क जो आंखों से बे-वजह छलक जायें

रुख़सत

 

फ़सुरदा रुख़, लबों पर इक नयाज़-आमेज़ ख़ामोशी

तबस्सुम मुज़महल था, मरमरी हाथों में लरज़िश थी

वो कैसी बेकसी थी तेरी पुर तमकीं निगाहों में

वो क्या दुख था तिरी सहमी हुयी ख़ामोश आहों में

 

(तसव्वुर=कलपना, मुज़तर=मचलता,

ज़ियाएं=ज्योति, फ़सुरदा=उदास, नयाज़-

आमेज़=श्रद्धा भरी, मुज़महल=बुझी हुई)

 

सरोद

मौत अपनी, न अमल अपना, न जीना अपना

खो गया शोरिशे-गेती में करीना अपना

नाख़ुदा दूर, हवा तेज़, करीं कामे-नेहंग

वक्त है फेंक दे लहरों में सफ़ीना अपना

अरस-ए-दहर के हंगामे तहे-ख्वाब सही

गरम रख आतिशे-पैकार से सीना अपना

साकीया रंज न कर जाग उठेगी महफ़िल

और कुछ देर उठा रखते हैं पीना अपना

बेशकीमत है ये ग़महा-ए-मुहब्बत मत भूल

ज़ुल्मते-यास को मत सौंप ख़ज़ीना अपना

 

(शोरिशे-गेती=दुनिया का कोलाहल, नाख़ुदा=

मल्लाह, करीं=नज़दीक, कामे-नेहंग=घड़ियाल

का जबड़ा, सफीना=किश्ती, आतिशे-पैकार=

जंग की आग, ज़ुल्मते-यास=निराशा का अंधेरा)

 

यास

बरबते-दिल के तार टूट गये

हैं ज़मीं-बोस राहतों के महल

मिट गये किस्साहा-ए-फ़िक्रो अमल

बज़मे-हसती के जाम फूट गये

छिन गया कैफ़े-कौसरो-तसनीम

 

ज़हमते-गिरीया-ओ-बुका बे-सूद

शिकवा-ए-बख़ते-नारसा बे-सूद

हो चुका ख़त्म रहमतों का नुजूल

बन्द है मुद्दतों से बाबे-कुबूल

बे-नियाज़े-दुआ है रब्बे-करीम

 

बुझ गई शमए-आरज़ू-ए-जमील

याद बाकी है बेकसी की दलील

इंतज़ारे-फ़ज़ूल रहने दे

राज़े-उल्फ़त निबाहने वाले

काविशे-बे-हुसूल रहने दे

 

(यास=निराशा, बरबते-दिल=

दिल का साज़, ज़मीं-बोस=ढह गए,

कैफ़े-कौसरो-तसनीम=सुरगी नहरों

का नशा, ज़हमते-गिरीया-ओ-बुका=

रोने-कराहने का दुख, शिकवा-ए-बख़ते-

नारसा=बदकिस्मती का दुख, नुजूल=

पैदा होना, शमए-आरज़ू-ए-जमील=सुंदर

कामना का दीया, काविशे-बे-हुसूल=

बेअर्थ खोज)

 

आज की रात

आज की रात साज़े-दर्द न छेड़

 

दुख से भरपूर दिन तमाम हुए

और कल की ख़बर किसे मालूम

दोशो-फ़र्दा की मिट चुकी है हदूद

हो न हो अब सहर किसे मालूम

ज़िन्दगी हेच लेकिन आज की रात

एज़दीयत है मुमकिन आज की रात

आज की रात साज़े-दर्द न छेड़

 

अब न दुहरा फ़सानहा-ए-अलम

अपनी किसमत पे सोगवार न हो

फ़िक्रे-फ़र्दा उतार दे दिल से

उम्रे-रफ्ता पे अश्कबार न हो

अहदे-ग़म की हिकायतें मत पूछ

हो चुकीं सब शिकायतें मत पूछ

आज की रात साज़े-दर्द न छेड़

 

(दोशो-फ़र्दा=गुज़री रात और

आने वाला कल, एज़दीयत=ख़ुदाई,

अलम=दुख, फ़िक्रे-फ़र्दा= कल की

चिंता, उम्रे-रफ्ता=गुज़री ज़िंदगी,

अहदे-ग़म =दुख के दिन)

 

एक रहगुज़र पर

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ

वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ

 

हज़ार फित्ने तहे-पा-ए-नाज़ ख़ाकनशीं

हर एक निगाह ख़मारे-शबाब से रंगीं

 

शबाब, जिससे तख़य्युल पे बिजलियाँ बरसें

विक़ार जिसकी रक़ाबत को शोख़ियाँ तरसें

 

अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा पर क़यामतें क़ुर्बां

बयाज़े-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां

 

सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्तः नकहतों का हुजूम

तवील रातों की ख़्वाबीदः राहतों का हुजूम

 

वो आँख जिसके बना’व पे ख़ालिक इतराये

ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये

 

वो होंठ फ़ैज़ से जिनके बहारे-लालःफरोश

बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील ब-दोश

 

गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे

दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही नमाज़ करे

 

ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं

वो हुस्न जिसका तस्सवुर बशर का काम नहीं

 

किसी ज़माने में इस रहगुज़र से गुज़रा था

ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल इधर से गुज़रा था

 

और अब ये राहगुज़र भी है दिलफरेब-ओ-हसीं

है इसकी ख़ाक मे कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र मकीं

 

हवा मे शोख़ी-ए-रफ़्तार की अदाएँ हैं

फ़ज़ा मे नर्मी-ए-गुफ़्तार की सदाएँ हैं

 

गरज़ वो हुस्न अब इस जा का ज़ुज़्वे-मंज़र है

नियाज़-ए-इश्क़ को इक सिज्दःगह मयस्सर है

 

(मसर्रतें=ख़ुशियाँ, पिन्हाँ=छुपी, फित्ने=उपद्रव,

तहे-पा-ए-नाज़=सुंदरता के पैर के नीचे, ख़मारे-

शबाब=यौवन-मद, तख़य्युल=कल्पना, विक़ार=

गरिमा, रक़ाबत=साथ, अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा=पैरों

के काँपने का ढंग, बयाज़े-रुख़=चेहरे का गोरा

रंग, सबाहतें=सफ़ेदी,रौशनी, वारफ़्तः=बहती हुई,

नकहतों=सुगंध, ख़ालिक=सृष्टा, बहिश्त-ओ-कौसर-

ओ-तसनीम-ओ-सलसबील=जन्नत और उसकी

नहरें, ब-दोश=कंधे पर लिए हुए, सर्वे-सही=सर्व

के सीधे पेड़, मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम=परिचय

या नाम का मुहताज, बशर=मनुष्य, ब-सद-ग़ुरूरो-

तजम्मुल=सैकड़ों अभिमान और रूप लेकर, कैफ़=

मादकता, मकीं=बसा हुआ, शोख़ी-ए-रफ़्तार=चाल

की चंचलता, नर्मी-ए-गुफ़्तार=वाणी की कोमलता,

ज़ुज़्वे-मंज़र=दृश्य का अंश, नियाज़-ए-इश्क़=प्रेम

की कामना)

 

एक मंज़र

बाम-ओ-दर ख़ामशी के बोझ से चूर

आसमानों से जू-ए-दर्द रवां

चांद का दुख-भरा फ़साना-ए-नूर

शाहराहों की ख़ाक में गलतां

ख्वाबगाहों में नीम-तारीकी

मुज़महल लय रुबाबे-हस्ती को

हल्के-हल्के सुरों में नौहा कुनां

 

(जू=धारा, गलतां=डूबा हुआ,

मुज़महल=नीरस, रुबाबे-हस्ती=

जीवन वीणा)

 

मेरे नदीम

ख्यालो-शे'र की दुनिया में जान थी जिनसे

फ़ज़ा-ए-फ़िक्रो-अमल अरग़वान थी जिनसे

वो जिनके नूर से शादाब थे महो-अंजुम

जुनूने-इश्क की हिम्मत जवान थी जिनसे

वो आरज़ूएं कहां सो गयी हैं, मेरे नदीम

 

वो ना-सुबूर निगाहें, वो मुंतज़िर राहें

वो पासे-ज़ब्त से दिल में दबी हुयी आहें

वो इंतज़ार की रातें, तवील, तीर:-ओ-तार

वो नीम ख्वाब शबिशतां, वो मख़मली बांहें

कहानियां थीं कहां खो गयी हैं, मेरे नदीम

 

मचल रहा है रगे-ज़िन्दगी में ख़ूने-बहार

उलझ रहे हैं पुराने ग़मों से रूह के तार

चलो कि चलके चिराग़ां करें दयारे-हबीब

हैं इंतज़ार में अगली मुहब्बतों के मज़ार

मुहब्बतें जो फ़ना हो गयी हैं, मेरे नदीम

 

(अरग़वान=रंगीन, महो-अंजुम=चाँद-तारे,

नदीम=साथी, ना-सुबूर=बेचैन, पासे-ज़ब्त=

धीरज का फ़िक्र, तीर:-ओ-तार=काली,

दयारे-हबीब=दोस्त का घर)

 

मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न मांग

मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न मांग

मैनें समझा था कि तू है तो दरख़शां है हयात

तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात

तेरी आखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है

तू जो मिल जाये तो तकदीर नगूं हो जाये

यूं न था, मैनें फ़कत चाहा था यूं हो जाये

 

और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं वसल की राहत के सिवा

 

अनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिसम

रेशमो-अतलसो-किमख्वाब में बुनवाए हुए

जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म

ख़ाक में लिबड़े हुए, ख़ून में नहलाये हुए

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से

पीप बहती हुयी गलते हुए नासूरों से

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे

अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे

 

और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं वसल की राहत के सिवा

मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न मांग

 

(दरख़शां=चमकदार, हयात=जीवन, ग़मे-दहर=

दुनिया का दुख, सबात=स्थिरता, नगूं=बदल जाना,

वसल=मिलना, बहीमाना=पशु जैसे,

अमराज़=बीमारियाँ)

 

सोच

क्यों मेरा दिल शाद नहीं है क्यों ख़ामोश रहा करता हूं

छोड़ो मेरी राम कहानी मैं जैसा भी हूं अच्छा हूं

 

मेरा दिल ग़मगीं है तो क्या ग़मगीं यह दुनिया है सारी

ये दुख तेरा है ना मेरा हम सबकी जागीर है प्यारी

 

तू गर मेरी भी हो जाये दुनिया के ग़म यूं ही रहेंगे

पाप के फन्दे, ज़ुल्म के बंधन अपने कहे से कट ना सकेंगे

 

ग़म हर हालत में मुहलिक है अपना हो या और किसी का

रोना-धोना, जी को जलाना यूं भी हमारा, यूं भी हमारा

 

क्यों न जहां का ग़म अपना लें बाद में सब तदबीरें सोचें

बाद में सुख के सपने देखें सपनों की ताबीरें सोचें

 

बे-फ़िक्रे धन-दौलतवाले ये आख़िर क्यों ख़ुश रहते हैं

इनका सुख आपस में बांटें ये भी आख़िर हम जैसे हैं

 

हमने माना जंग कड़ी है सर फूटेंगे, ख़ून बहेगा

ख़ून में ग़म भी बह जायेंगे हम न रहें, ग़म भी न रहेगा

 

(मुहलिक=घातक, ताबीरें=सत्य करना)

 

रक़ीब से

आ, के वाबस्तः हैं उस हुस्न की यादें तुझ से

जिसने इस दिल को परीखानः बना रखा था

जिसकी उल्फ़त में भुला रखी थी दुनिया हमने

दह्र को दह्र का अफ़साना बना रखा था

 

आशना हैं तेरे क़दमों से वो राहें जिन पर

उसकी मदहोश जवानी ने इ’नायत की है

कारवाँ गुज़रे हैं जिनसे उसी रा'नाई के

जिसकी इन आँखों ने बे-सूद इ’बादत की है

 

तुझसे खेली हैं वो महबूब हवाएँ जिनमें

उसकी मलबूस की अफ़सुर्दः महक बाक़ी है

तुझ पर भी बरसा है उस बाम से महताब का नूर

जिसमें बीती हुई रातों की कसक बाक़ी है

 

तूने देखी है वो पेशानी वो रुख़सार वो होंठ

ज़िन्दगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने

तुझ पे उट्ठी हैं वो खोई हुई साहिर आँखें

तुझको मा’लूम है क्यों उ’म्र गँवा दी हमने

 

हम पे मुश्तरिका हैं एहसान ग़मे-उल्फ़त के

इतने एहसान केः गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँ

हमने इस इश्क़ मेम क्या खोया है क्या सीखा है

जुज़ तेरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ

 

आजिज़ी सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखी

यासो-हिरमान के दुख-दर्द के मा’नी सीखे

ज़ेरदस्तों के मसाइब को समझना सीखा

सर्द आहों के रुख़े-ज़र्द के मा’नी सीखे

 

जब कहीं बैठ के रोते हैं वो बेकस जिनके

अश्क आँखों में बिलकते हुए सो जाते हैं

नातवानों के निवालों पे झपटते हैं उक़ाब

बाजू तोले हुए मँडलाते हुए आते हैं

 

जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का ग़ोश्त

शाहराहों पे ग़रीबों का लहू बहता है

या कोई तोंद का बढ़ता हुआ सैलाब लिए

फ़ाक़ामस्तों को डुबोने के लिए कहता है

आग-सी सीने में रह-रह के उबलती है न पूछ

अपने दिल पर मुझे काबू ही नहीं रहता है

 

(वाबस्तः=जुड़ी हुई, दह्र=दुनिया, रा'नाई=

छटा, बे-सूद=व्यर्थ, मलबूस=वस्त्र, अफ़सुर्दः=

उदास, पेशानी=माथा, रुख़सार=गाल, तसव्वुर=

कल्पना, साहिर=जादूगर मुश्तरिका=समान,

जुज़=अतिरिक्त, यासो-हिरमान=आशा-निराशा,

ज़ेरदस्तों के मसाइब=निर्बलों की व्यथाएँ, रुख़े-

ज़र्द=पीला चेहरा, नातवानों=शक्तिहीन, शाहराहों=

राजपथ, फ़ाक़ामस्तों=भूख में मस्त रहने वाला)

 

तनहाई

फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहीं

राहरौ होगा, कहीं और चला जायेगा

ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का ग़ुबार

लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदः चिराग़

सो गई रस्तः तक-तक के हरइक राहगुज़ार

अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिये क़दमों के सुराग़

गुल करो शम्‍एँ, बढ़ा दो मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़

अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो

अब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा

 

(राहरौ=पथिक, ग़ुबार=धूल, ऐवानों=महलों,

मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़=शराब, सुराही और

प्याला, मुक़फ़्फ़ल=ताला लगाना)

 

चन्द रोज़ और मिरी जान

चन्द रोज़ और मिरी जान फ़कत चन्द ही रोज़

ज़ुल्म की छांव में दम लेने पे मज़बूर हैं हम

और कुछ देर सितम सह लें, तड़प लें, रो लें

अपने अजदाद की मीरास हैं माज़ूर हैं हम

जिस्म पर कैद है, जज़बात पे ज़ंजीरें हैं

फ़िक्र महबूस है, गुफ़तार पे ताज़ीरें हैं

अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जीये जाते हैं

ज़िन्दगी क्या किसी मुफ़लिस की कबा है जिस्में

हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं

लेकिन अब ज़ुल्म की मीयाद के दिन थोड़े हैं

इक ज़रा सबर, कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं

अरसा-ए-दहर की झुलसी हुयी वीरानी में

हमको रहना है तो यूं ही तो नहीं रहना है

अजनबी हाथों के बे-नाम गरांबार सितम

आज सहना है हमेशा तो नहीं सहना है

ये तिरे हुस्न से लिपटी हुयी आलाम की गर्द

अपनी दो-रोज़ा जवानी की शिकसतों का शुमार

चांदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द

दिल की बे-सूद तड़प, जिस्म की मायूस पुकार

चन्द रोज़ और मिरी जान फ़कत चन्द ही रोज़

 

(अजदाद=पुरखे, मीरास=देने, माज़ूर=लाचार,

महबूस=बंदी, ताज़ीर=रोक, अरसा-ए-दहर=

संसार का मैदान, गरांबार=बोझल, आलाम=दुख)

 

मरगे-सोज़े-मुहब्बत

आयो कि मरगे-सोज़े-मुहब्बत मनायें हम

आयो कि हुस्न-ए-माह से दिल को जलायें हम

ख़ुश हों फ़िराके-कामतो-रुख़सारे-यार से

सरवो-गुलो-समन से नज़र को सतायें हम

वीरानी-ए-हयात को वीरानतर करें

ले नासेह आज तेरा कहा मान जायें हम

फिर ओट ले के दामने-अबरे-बहार की

दिल को मनायें हम, कभी आँसू बहायें हम

सुलझायें बे-दिली से ये उलझे हुए सवाल

वां जाएँ या न जाएँ, न जाएँ कि जाएँ हम

फिर दिल को पासे-ज़ब्त की तलकीन कर चुके

और इम्तहाने-ज़ब्त से फिर जी चुरायें हम

आयो कि आज ख़त्म हुयी दास्ताने-इश्क

अब ख़त्मे-आशिकी के फ़साने सुनायें हम

 

(मरगे-सोज़े-मोहब्बत=प्रेम की जलन का

अंत, माह=चाँद, फ़िराके-कामतो-रुख़सारे-यार=

प्रेमिका के कद और गाल की कलपना, हयात=

जीवन, नासेह=प्रचारक, तलकीन=नसीहत)

 

कुत्ते

ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते

कि बख़शा गया जिनको ज़ौके-गदाई

ज़माने की फिटकार सरमाया इनका

जहां-भर की धुतकार इनकी कमाई

 

न आराम शब को, न राहत सवेरे

ग़लाज़त में घर, नालियों में बसेरे

जो बिगड़ें तो इक दूसरे से लड़ा दो

ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो

 

ये हर एक की ठोकरें खाने वाले

ये फ़ाकों से उकता के मर जाने वाले

ये मज़लूम मख़लूक गर सर उठायें

तो इंसान सब सरकशी भूल जायें

 

ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें

ये आकायों की हड्डियां तक चबा लें

कोई इनको एहसासे-ज़िल्लत दिला दे

कोई इनकी सोयी हुयी दुम हिला दे

 

(ज़ौके-गदाई=भिक्षा मांगने की रुचि,

सरमाया=पूँजी, ग़लाज़त=गन्दगी,

मख़लूक=प्राणी, सरकशी=अहंकार,

आकायों=मालिकों की, ज़िल्लत=

अपमान)

 

बोल

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

बोल, जबां अब तक तेरी है

तेरा सुतवां जिस्म है तेरा

बोल कि जां अब तक तेरी है

देख कि अहनगर की दुकां में

तुन्द हैं शोले, सुर्ख हैं आहन

खुलने लगे कुफलों के दहाने

फैला हर ज़ंजीर का दामन

 

बोल, ये थोडा वक़्त बहुत है

जिस्मो जबां के मौत से पहले

बोल कि सच जिंदा है अब तक

बोल कि जो कहना है कह ले

 

(सुतवां=तना हुआ, अहनगर=

लोहार, तुन्द=तेज़, आहन=लोहा,

कुफलों के दहाने=तालों के मुंह)

 

इक़बाल

आया हमारे देस में इक ख़ुशनवा फ़कीर

आया और अपनी धुन में ग़ज़लख़वां गुज़र गया

सुनसान राहें ख़ल्क से आबाद हो गईं

वीरान मयकदों का नसीबा संवर गया

थीं चन्द ही निगाहें जो उस तक पहुंच सकीं

पर उसका गीत सबके दिलों में उतर गया

 

अब दूर जा चुका है वो शाहे-गदानुमा

और फिर से अपने देस की राहें उदास हैं

चन्द इक को याद है कोई उसकी अदा-ए-ख़ास

दो इक निगाहें चन्द अज़ीज़ों के पास हैं

पर उसका गीत सबके दिलों में मुकीम है

और उसकी लय से सैंकड़ों लज़्ज़तशनास हैं

 

इस गीत के तमाम महासिन हैं ला-ज़वाल

इसका वफ़ूर, इसका ख़रोश इसका सोज़ो-साज़

ये गीत मिसले-शोला-ए-जव्वाल: तुन्दो-तेज़

इसकी लपक से बादे-फ़ना का जिगर गुदाज़

जैसे चिराग़ वहशते-सरसर से बे-ख़तर

या शमए-बज़म सुबह की आमद से बे-ख़बर

 

(ख़ुशनवा=मीठा बोलने वाला, शाहे-गदानुमा=

ग़रीब जैसा राजा, महासिन=सुन्दरता, वफ़ूर=

अधिक होना, खरोश=उत्साह)

 

मौज़ू-ए-सुख़न

गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शाम

धुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए महताब से रात

और मुश्ताक़ निगाहों से सुनी जाएगी

और उन हाथों से मस होंगे यह तरसे हुए हाथ

उनका आँचल है कि रूख़सार कि पैराहन है

कुछ तो है जिससे हुई जाती है चिलमन रंगीं

जाने उस ज़ुल्फ़ की मौहूम घनी छाओं में

टिमटिमाता है वो आवेज़ा अभी तक कि नहीं

 

आज फिर हुस्नेदिल आरा की वही धज होगी

वही ख़्वाबीदा सी आँखें, वही काजल की लकीर

रंगे रुख़सार पे हल्का सा वो ग़ाज़े का गु़बार

संदली हाथ पे धुँदली-सी हिना की तहरीर

 

अपने अफ़्कार की, अशआर की दुनिया है यही

जाने-मज़मूं है यही, शाहिदे-माना है यही

आज तक सुर्ख़-ओ-सियह सदियों के साए के तले

आदम-ओ-हव्वा की औलाद पे क्या गुज़री है

मौत और ज़ीस्त की रोज़ाना सफ़ आराई में

हम पे क्या गुज़रेगी, अजदाद पे क्या गुज़री है?

इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़लूक़

क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है

यह हसीं खेत फटा पड़ता है जोबन जिनका

किस लिए इनमें फ़क़त भूख उगा करती है?

यह हर इक सम्त, पुर-असरार कड़ी दीवारें

जल बुझे जिनमें हज़ारों की जवानी के चराग़

यह हर इक गाम पे उन ख़्वाबों की मक़्तल गाहें

जिनके पर-तव से चराग़ाँ हैं हज़ारों के दिमाग़

 

यह भी हैं, ऐसे कई और भी मज़मूँ होंगे।

लेकिन उस शोख़ के आहिस्ता से ख़ुलते हुए होंठ !

हाय उस जिस्म के कमबख़्त, दिलावेज़ ख़ुतूत !

आप ही कहिए, कहीं ऐसे भी अफ़्सूँ होंगे

 

अपना मौजू-ए-सुख़न इनके सिवा और नहीं

तब'अ-ए-शायर का वतन इन के सिवा और नहीं

 

(मुश्ताक=उत्सुक, मस=छुवन, पैराहन=कपड़े,

मौहूम =धुन्दली, आवेज़ा=कानों का कुंडल, हुस्नेदिल

आरा=मनमोहक रूप, अफ़्कार=लेखन, शाहिदे-माना=

अर्थ की सुंदरता, अजदाद=पुरखे, फ़रावाँ=बहुसंख्यक,

मक़्तल गाहें=कत्लगाहें, पर-तव=परछावें, अफ़्सूँ=जादू,

तब'अ-ए-शायर=कवि का स्वभाव)

 

हम लोग

दिल के ऐवाँ में लिए गुमशुदा शम्मा'ओं की क़तार

नूरे-ख़ुर्शीद से सहमे हुए, उकताए हुए

हुस्ने-महबूब के सइयाल तसव्वुर की तरह

अपनी तारीकी को भींचे हुए, लिपटाए हुए

ग़ायते सूद-ओ-ज़ियाँ, सूरते आग़ाज़-ओ-मआल

वही बेसूद तजस्सुस, वही बेक़ार सवाल

मुज़महिल, सा'अते-इमरोज़ की बेरंगी से

यादे माज़ी से ग़मीं , दहशते-फर्दा से निढाल

तिश्ना अफ़्कार, जो तस्कीन नहीं पाते हैं

सोख़्ता अश्क जो आँखों में नहीं आते हैं

इक कड़ा दर्द कि जो गीत में ढलता ही नहीं

दिल के तारीक शिगाफ़ों से निकलता ही नहीं

और इक उलझी हुई मोहूम-सी दरमाँ की तलाश

दश्त-ओ-ज़िंदाँ की हवस, चाक-गिरेबाँ की तलाश

 

(गुलशुदा=बुझी हुई, नूरे-ख़ुर्शीद=चाँद की रौशनी,

सइयाल तसव्वुर=तरल कल्पना, ग़ायते सूद-ओ-ज़ियाँ=

लाभ हानि का कारन, सूरते आग़ाज़-ओ-मआल=आदि-अंत

का स्वरूप, बेसूद तजस्सुस =फ़िज़ूल की उतसुकता,

साअते-इमरोज़=आज के पल, दहशते-फर्दा=कल

का डर, तिश्ना अफ़्कार=प्यारे विचार, तस्कीन=संतोष,

तारीक शिगाफ़ों=अंधी दराड़ें, दरमाँ=ढारस, दश्त-ओ-ज़िंदाँ=

जंगल और जेल)

 

शाहराह

एक अफ़सुरदा शाहराह है दराज़

दूर उफ़क पर नज़र जमाये हुए

सर्द मिट्टी के अपने सीने के

सुरमगी हुस्न को बिछाये हुए

जिस तरह कोई ग़मज़दा औरत

अपने वीरांकदे में महवे-ख्याल

वसले-महबूब के तसव्वुर में

मू-ब-मू चूर, अज़ो-अज़ो निढाल  


Jane Mane Kavi

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