Hindi Kavita
हिंदी कविता
महाराणा का महत्त्व - जयशंकर प्रसाद
Maharana Ka Mahatva - Jaishankar Prasad
"क्यों जी कितनी दूर अभी वह दुर्ग है ?"- Jaishaankar Prasad
शिविका में से मधुर शब्द यह सुन पड़ा।
दासी ने उन सैनिक लोगों से यही
-यथा प्रतिध्वनि दुहराती है शब्द को-
प्रश्न किया जो साथ-साथ थे चल रहे ।
कानन में पतझड़ भी कैसा फैल के
भीषण निज आतंक दिखाता था, कड़े
सूखे पत्तों के ही 'खड़-खड़' शब्द से
अपना कुत्सित क्रोध प्रकट था कर रहा ।
प्रबल प्रभंजन वेगपूर्ण था चल रहा
हरे-हरे द्रुमदल को खूब लथेड़ता
घूम रहा था, कर सदृश उस भूमि में।
जैसी हरियाली थी वैसी ही वहाँ-
सूखे काँटे पत्ते बिखरे ढेर-से
बड़े मनुष्यों के पैरों से दीन-सम
जो कुचले जाते थे, हय-पद-वज्र से।
धूल उड़ रही थी, जो घुसकर आँख में
पथ न देखने देती सैनिक वृन्द को,
जिन वृक्षों में डाली ही अवशिष्ट थी
अपहृत था सर्वस्व यहाँ तक, पत्र भी-
एक न थे उनमें, कुसुमों की क्या कथा !
नव वसंत का आगम था बतला रहा
उनका ऐसा रूप, जगत-गति है यही ।
पूर्ण प्रकृति की पूर्ण नीति है क्या भली,
अवनति को जो सहन करे गंभीर हो
धूल सदृश भी नीच चढ़े सिर तो नहीं
जो होता उद्विग्न, उसे ही समय में
उस रज-कण को शीतल करने का अहो
मिलता बल है, छाया भी देता वही ।
निज पराग को मिश्रित कर उनमें कभी
कर देता है उन्हे सुगंधित, मृदुल भी।
देव दिवाकर भी असह्य थे हो रहे
यह छोटा-सा झुंड सहन कर ताप को,
बढ़ता ही जाता है अपने मार्ग में।
शिविका को घेरे थे वे सैनिक सभी
जो गिनती में शत थे, प्रण में वीर थे ।
मुगल चमूपति के अनुचर थे, साथ में
रक्षा करते थे स्वामी के 'हरम' की।
दासी ने भी वही प्रश्न जब फिर किया-
"क्यों जी कितनी दूर अभी वह दुर्ग है ?"
सैनिक ने बढ़ करके तब उत्तर दिया-
"अभी यहाँ से दूर निरापद स्थान है,
यह नवाब साहब की आज्ञा है कड़ी-
मत रुकना तुम क्षण भर भी इस मार्ग में
"क्योंकि महाराणा की विचरण-भूमि है
वहाँ मार्ग में कहीं; मिलेगी क्षति तुम्हें
यदि ठहरोगे; रुकता हूँ इससे नहीं।"
दासी ने फिर कहा-"जरा ठहरो यहीं
क्योंकि प्यास ऐसी बेगम को है लगी,
चक्कर-सा मालूम हो रहा है उन्हें ।"
सैनिक ने फिर दूर दिखा संकेत से
कहा कि वह जो झुरमुट-सा है दीखता
वृक्षों का, उस जगह मिलेगा जल, उसी
घाटी तक बस चली-चलो, कुछ दूर है।"
विस्तृत तरु-शाखाओं के ही बीच में
छोटी-सी सरिता थी, जल भी स्वच्छ था;
कल कल ध्वनि भी निकल रही संगीत-सी
व्याकुल को आश्वासन-सा देती हुई।
ठहरा, फिर वह दल उसके ही पुलिन में
प्रखर ग्रीष्म का ताप मिटाता था वही
छोटा-सा शुचि स्रोत, हटाता क्रोध को
जैसे छोटा मधुर शब्द, हो एक ही।
अभी देर भी हुई नहीं उस भूमि में
उन दर्पोद्धत यवनों के उस वृन्द को,
कानन घोषित हुआ अश्व-पद-शब्द से,
'लू' समान कुछ राजपूत भी आ गये।
लगे झुलसने यवनों को निज तेज से
हुए सभी सन्नद्ध युद्ध आरम्भ था-
पण प्राणों का लगा हुआ-सा दीखता।
युवक एक जो उनका नायक था वहाँ
राजपूत था; उसका बदन बता रहा
जैसी भौ थी चढ़ी ठीक वैसा कड़ा
चढ़ा धनुष था, वे जो आँखें लाल थीं
तलवारों का भावी रंग बता रही।
यवन पथिक का झुण्ड बहुत घबरा गया
इन कानन-केसरियों की हुङ्कार से ।
कहा युवक ने आगे बढ़ कर जोर से
"शस्त्र हमें जो दे देगा वह प्राण को
पावेगा प्रतिफल मे, होगा मुक्त भी।"
यवन-चमूनायक भी कुछ कायर न था,
कहा--"मरूँगा करते ही कर्तव्य को-
वीर शस्त्र को देकर भीख न माँगते ।"
मचा द्वन्द तब घोर उसी रणभूमि में
दोनों ही के अश्व हुए रथचक्र रो
रण शिक्षा, कैसा, कर लाघव था भरा।
यवन वीर ने माला निज कर में लिया
और चलाया वेग सहित, पर क्या हुआ
राजपूत तो उसके सिर पर है खड़ा
निज हय पर, कर में भी असि उन्मुक्त है।
यवन-वीर भी घूम पड़ा असि खींच के
गुथी बिजलियाँ दो मानो रण व्योम में
वर्षा होने लगी रक्त के विन्दु की;
युगल द्वितीया चन्द्र उदित अथवा हुए
धूलि-पटल को जलद-जाल-सा काट के।
किन्तु यवन का तीक्ष्ण वार अति प्रबल था
जिसे रोकना 'राजपूत' का काम था,
रुधिर फुहारा-पूर्ण-यवन-कर कट गया
असि जिसम था, वेग-सहित वह गिर पड़ा
पुच्छल तारा सदृश, केतु-आकार का।
अभी देर भी हुई नहीं शिर रुण्ड से
अलग जा पड़ा यवन-वीर का भूमि में ।
बचे हुए सब यवन वही अनुगत हुए
घेर लिया शिविका को क्षत्रिय सैन्य ने ।
"जय कुमार श्री अमरसिंह!"-के नाद से
कानन घोपित हुआ, पवन भी त्रस्त हो
करने लगा प्रतिध्वनि उस जय शब्द की।
राजपूत वन्दी गण को लेकर चले।
दिन-भर के विश्रांत विहग कुल नीड़ से
निकल-निकल कर लगे डाल पर बैठने ।
पश्चिम निधि में दिनकर होते अरत थे
विपुल शैल माला अर्बुदगिरि की घनी-
शान्त हो रही थी, जीवन के शेष में
कर्मयोगरत मानव को जैसी सदा
मिलती है शुभ शांति । भली कैसी छटा
प्रकृति-करों से निर्मित कानन देश की
स्निग्ध उपल शुचि स्रोत सलिल से धो गये,
जैसे चंद्रप्रभा में नीलाकाश भी
उज्ज्वल हो जाता है छुटी मलीनता ।
महाप्राण जीवों के कीर्ति सुकेतु से
ऊँचे तरुवर खड़े शैल पर झूमते ।
आर्य जाति के इतिहासों के लेख-सी,
जल-स्रोत-सी बनी चित्र रेखावली
शैल-शिखाओं पर सुंदर है दीखती।
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