त्रिवेणी गुलज़ार Triveni Gulzar

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हिंदी कविता

त्रिवेणी गुलज़ार
Triveni Gulzar

त्रिवेणी बह निकली - Gulzar

शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी - त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती

 

जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है

तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।

१९७२/७३ में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे, तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं

और अब त्रिवेणी को बालिग़ होते-होते सत्ताईस-अट्ठाईस साल लग गए

बोस्की के लिए - Gulzar

कुछ ख़्वाबों के ख़त इन में , कुछ चाँद के आईने ,

सूरज की शुआएँ हैं

नज़मों के लिफाफ़ों में कुछ मेरे तजुर्बे हैं,

कुछ मेरी दुआएँ हैं

निकलोगे सफ़र पर जब यह साथ में रख लेना,

शायद कहीं काम आएँ

त्रिवेणी-1 - Gulzar

उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा

देर तक हाथ हिलती रही वह शाख़ फ़िज़ा में

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अलविदा कहने को ? या पास बुलाने के लिए ?

त्रिवेणी-2 - Gulzar

क्या पता कब कहाँ मारेगी ?

बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ

मौत का क्या है, एक बार मारेगी

त्रिवेणी-3 - Gulzar

सब पे आती है सब की बारी से

मौत मुंसिफ़ है कम-ओ-बेश नहीं

 

ज़िंदगी सब पे क्यों नहीं आती ?

त्रिवेणी-4 - Gulzar

कौन खायेगा ? किसका हिस्सा है

दाने-दाने पे नाम लिख्खा है

 

सेठ सूद चंद, मूल चंद जेठा

त्रिवेणी-5 - गुलज़ार

भीगा-भीगा सा क्यों है अख़बार

अपने हॉकर को कल से चेंज करो

"पांच सौ गाँव बह गए इस साल"

त्रिवेणी-6 - Gulzar

चौदहवें चाँद को फिर आग लगी है देखो

फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा

 

राख हो जाएगा जब फिर से अमावस होगी

त्रिवेणी-7 - Gulzar

गोले, बारूद, आग, बम, नारे

बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है

बंध खोलो कि आज सब "बंद" है

 

त्रिवेणी-8 - Gulzar

रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था-

चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर

सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना

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