वन्दना Vandana
जय सरस्वती जय गणपति देवा।
जय दुर्गे जय शंकर देवा ।
सकल चराचर त्रिभुवन नायक ।
विघ्न-हरण मंगल-सुख दायक।
वन्दना प्रभु आपकी , मैं शरण तेरे पड़ा।
दुख-दर्द अगणित जो सहे, सब आपको पावन कृपा।
तप कर बना जो तुम्हीं से, वह चढ़ाया सब तुम्हें ।
अपना बना लो दास मुझको, भक्ति मुझको दीजिये ।
ले लो शरण हे नाथ, मुरारी, बिहारी, गिरिधारी तुम्हीं हो ।
चैन की बंशी बजा दो, तान कुछ ऐसी सुना दो।
भूल कर सारे जगत को बन मैं शरणागत तुम्हारा।
भय नहीं कोई हमें अब दिल में जो मेरे बसे हो।
भक्ति का देके सहारा तार दो मझधार से।
वन्दना प्रभु आपकी मैं शरण तेरे पड़ा ।
Jane Mane Kavi